Thursday, 22 June 2017

एक लोकोक्ति, सावन में जनमल सियार आ भादों में आइल बाढ़ - सन्दर्भ योग दिवस / विजय शंकर सिंह

कल 21 जून को दो विधाओं का दिवस मनाया गया । एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और दूसरा विश्व संगीत दिवस । योग दिवस की धूम रही और लोगों ने योग किया , लोगों में जागृति उत्पन्न हुयी,  कुछ ने चेहरा दिखाया तो कुछ ने खानापूर्ति की । दुनिया भर में यह आयोजन हुआ । लन्दन और अमेरिका में भी । लन्दन के मेयर मु सादिक़ ने योग आयोजन का नेतृत्व किया और कुछ मित्रों ने इस पर ख़ुशी ज़ाहिर की कि उन्होंने ॐ के स्वर से प्राणायाम किया । कुछ को इसमें हिंदुत्व पर गर्व हुआ, तो कुछ के लिए सादिक़ साहब का ईमान खतरे में दिखा । कुल मिला कर बड़ा मनसायन रहा । दिन बढ़िया बीता ।

संगीत को इस दिन , वह प्रचार नहीं मिला । मैंने कुमार गंधर्व द्वारा गाया, कबीर का ' उड़ जाएगा हंस अकेला ' निर्गुण यूट्यूब से ले कर शेयर किया । जिन मित्रों  को रुचि थी उन्होंने सुना । शेष स्किप कर गए । इतने सारे स्टेटस को कौन कहाँ तक पढ़े । वैसे योग और संगीत में एक चीज़ या भाव समान है । वह है एकाग्रता और श्वास पर नियंत्रण । बिना एकाग्र हुये और श्वास पर नियंत्रण किये संगीत की गंभीर साधना हो ही नहीं सकती है । चाहे वह ध्रुपद जैसी कठिन गायकी हो या पॉप संगीत ।

कल मेरे योग पर लिखे पोस्ट पर कुछ मित्र इनबॉक्स में भी तशरीफ़ लाये और उन्होंने मुझे यह समझाने का प्रयास किया कि योग को इस मुक़ाम तक लाने में , सरकार को भी योग के प्रति जागरूक करने में बाबा रामदेव की बड़ी भूमिका है । उन्ही के प्रयासों से योग के टीचर सभी स्कूलों में नियुक्त हो रहे हैं । उनके ज्ञान और बाबा के प्रति भक्ति भाव की क़द्र करता हूँ पर यह बात सही नहीं हैं।

1964 में मैं यूपी कॉलेज में आया था । यूपी कॉलेज वाराणसी में है । यह एक रेजिडेंशियल कॉलेज है । उस समय क्लास 8 th में था । यूपी कॉलेज में उस समय जिम और योग की शिक्षा दी जाती थी । घुड़सवारी की भी सिखलाई होती थी । यह परम्परा 1909 से जब  यूपी कॉलेज की स्थापना हुयी थी तब से ही है । अब घुड़सवारी नहीं रही । उस समय हमारे योग शिक्षक स्व. ब्रज मोहन सिंह निडर थे । निडर उनका उपनाम था । वे हर साल विद्यालय के संस्थापक दिवस समारोह में आग पर चलवाते थे । पहली बार हम चमत्कृत रह गए । किसी ने कहा कि, यह जादू है तो किसी ने कहा कि नहीं आग को बाँध दिया गया । पर यह योग था या क्या यह मैं नहीं बता पाउँगा । बाद में मुहर्रम के दौरान आग का मातम बहुत देखा है हमने । लगभग हर स्कूल में एक पीटी टीचर होता था, अब भी यह व्यवस्था होगी । यह टीचर योग भी सिखाता है ।

1970 के बाद  एक और योगी का राजनीति में पदार्पण हुआ । वह स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी थे । स्वामी जी योग की शिक्षा इंदिरा जी को देते थे । उनकी सत्ता के गलियारे में जितनी हनक थी उतनी रामदेव की भी नहीं है । यह अलग बात है कि मुझे रामदेव योग शिक्षक, व्यापारी और कुछ हद तक लालची व्यक्तित्व लगते हैं । जिस तरह से ये व्यापारिक सौदे करते हैं, ज़मीनों का जुगाड़ करते हैं , योग शिविर में , राजनीतिक नेताओं की चापलूसी करते हैं , उस से मेरी यह धारणा बनी है , हो सकता है आप सब की अलग हो । धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का योग शिक्षा का कार्यक्रम रोज़ सुबह श्वेत श्याम दूरदर्शन प्रसारित करता था । धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उसकी बारीकियां बताते थे । ऐसा नहीं कि धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने सत्ता का लाभ नहीं उठाया । उन्होंने बंदूकों का कारखाना जम्मू में खड़ा किया और उनके पास निजी वायुयान भी था । उनके बारे में तब के अखबारों में कई बार रोचक खबरें भी छपती थीं । कुछ अखबार उन्हें रासपुटिन के नाम से भी लिखते थे । इंदिरा गांधी को ज़ारीना कहते थे । ज़ारीना , ज़ार जो रूस का सम्राट था, की रानी को कहा जाता था, और रासपुटिन एक पादरी था, जिसका प्रभाव ज़ारीना पर बहुत ही अधिक था ।

इसके पहले भी ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद, महर्षि महेश योगी , स्वामी योगानंद परमानन्द, काशी के लाहिड़ी महाशय, पॉन्डिचेरी के  अरविंदो, दक्षिण भारत रमण महर्षि जो अमेरिका में ही बस गए थे, आदि आदि महानुभाव इस प्राच्य गुह्य विद्या में अपना दखल दे चुके थे । लेकिन वे योग शिक्षक नहीं थे आध्यात्मिक गुरु थे । योगासन अष्ठांग योग के आठ अंगों यम , नियम , प्रत्याहार , आसन, प्राणायाम , ध्यान , धारणा और समाधि का मात्र एक अंग है ।शेष भी योग साधना के लिये ज़रूरी है । लेकिन आज जो योग प्रचलित है और जिसका गुणगान किया जा रहा है वह मात्र आसन और प्राणायाम के कुछ प्रकार हैं । योग जब तक अपने अष्ठांग रूप में न अपनाया जाय तब तक उसका लाभ नहीं मिल सकता है ।

रामदेव का योगदान योगासनों और योग के प्रचार में है । पहले यह विधा गोपन रहती थी । गुरु शिष्य परम्परा से होती हुयी फैलती रहती थी । गुरु सिर्फ आसन सिखा कर, देह यष्टि को ही नहीं साधता था बल्कि वह मस्तिष्क को भी ध्यान से नियंत्रित करना सिखलाता था । गुरु राज्याश्रय से दूर रहता था । वह गुरु ही नहीं एक बल्कि एक दार्शनिक पथ प्रदर्शक भी होता है । मैं बाबा रामदेव में इस प्रकार के गुरुत्व का अभाव पाता हूँ । पर उन्होंने आधुनिक संचार के साधनों और मार्केटिंग विज्ञान की टेकनीक का उपयोग कर योग को ज़रूर लोकप्रिय बनाया । उनका यह कृत्य प्रशंसनीय है ।

लेकिन बाबा रामदेव को ही योग विस्तार और प्रसार का श्रेय देना , उन सभी महान योग के साधकों के प्रति अन्याय होगा जो अपने तपोवन या घर जैसे तपोवन में ही बैठ कर योग की साधना में लीन थे और यह भी सम्भव है कि, अभी भी ऐसे अज्ञात योगी ऐसी ही  साधना में रमे हों । सोशल मीडिया पर सक्रिय युवा मित्र पढ़ने लिखने से थोडा कतराते हैं । उन्हें जो भी आज हो रहा है वह अजूबा दीखता है और वे उसके चकाचौंध से चमत्कृत हो जाते हैं । जब कि ऐसा नहीं है । ऐसे ही लोगों के लिए हमारी तरफ भोजपुरी में एक कहावत प्रचलित है, सावन में जनमल सियार आ भादों में आइल बाढ़ !!  आज कल भावनायें थोड़ी भुरभुरी हो रही हैं, वे ज़मीन से कम जुडी होने लगी हैं , जल्दी जल्दी आहत हो जाती है , दुर्वासा भाव जाग्रत कर देती हैं इस लिए यह स्पष्ट कर दूँ कि यह कहावत सभी मित्रों के लिये नहीं है, उनके लिये हैं जो बिना तथ्यों में गए अनर्गल अपनी बात कहते रहते हैं ।

( विजय शंकर सिंह )

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