1857 , की 10 मई। मेरठ सैनिक छावनी में विद्रोह। लोग चल पड़े , दिल्ली की और। उधर बैरकपुर , कोलकाता से 15 किलोमीटर उत्तर , एक सैनिक छावनी में , मंगल पाण्डेय का आक्रोश जन्म ले चुका था। अवध पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया था। वाज़िद अली शाह , नवाब अवध को , ऐय्याश और दुर्व्यसनी और एक निकम्मा शासक प्रचारित कर दिया गया था। अवध के ताल्लुकेदार , कुछ को छोड़ कर , उबल चुके थे। '' मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी '' कह कर रानी लक्ष्मी बाई , अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ विद्रोह का बिगुल बजा चुकीं थीँ । नाना राव पेशवा , धूं धूं पंत , कानपुर के पास बिठूर में चुप चाप अंग्रेज़ों के खिलाफ तैयारी कर रहे थे। एक और नाम आता है इन महान नेताओं के साथ साथ , वकील अज़ीमुल्ला खान।
यह एक प्रतिभावान वकील थे। अंग्रेज़ी और फ्रेंच में अपनी बात कह सकते थे। इंग्लॅण्ड और फ्फ्रंस सहित अनेक यूरोपीय मुल्क़ों में उनकी अपनी मित्र मंडली थी। उनकी हनक और प्रभाव भी बहुत था। नाना राव पेशवा , अज़ीमुल्ला खान , और बेगम हज़रत महल की तिकड़ी ने इस विद्रोह को देश में प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बदल दिया। पर कुछ स्याह पक्ष भी इस आंदोलन के रहे हैं। ग्वालियर के सिंधिया , पंजाब के सिख , और गुरखे इस विप्लव से दूर रहे। विप्लव का मुख्या क्षेत्र , उत्तर भारत ही रहा। विप्लव के कारण , प्रभाव और इसके परिणाम पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गयीं हैं। आगे भी लिखी जाती रहेंगी।
कुछ लोग 1857 के विद्रोह को , सिपाही विद्रोह , या स्थानीय सामंतों की व्यक्तिगत लड़ाई कह कर इस के प्रभाव को सीमित करते हैं। पर इस एक जुट संघर्ष ने अंग्रेज़ों को अपनी रणनीति बदलने पर बाध्य कर दिया था। यह पहला संघर्ष था , जिसमें हिन्दू मुसलामानों ने एक जुट हो कर फिरंगी ताक़त के खिलाफ जंग लड़ी। अंग्रेज़ों ने इसी एकजुटता से यह सीखा , कि अगर यह सांप्रदायिक एकजुटता बनी रही तो देश पर शासन करना मुश्किल होगा। तब साम्राज्यवाद का एक नयी नीति फूट डालो और राज करो का जन्म हुआ। अंग्रेज़ों ने फिर धर्म के आधार पर कभी इन्हे तो कभी उन्हें तरजीह देते रहे। इसका दुष्परिणाम , भारत विभाजन के रूप में तो आया ही , पर साथ ही साथ , वह ज़हर आज भी ज़िंदा है। ब्रिटिश प्रधान मंत्री डिजरायली ने ब्रिटश हाउस ऑफ़ कॉमन्स में इसे राष्ट्रीय विद्रोह कहा था। सावरकर ने इसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा।
इस विप्लव ने देश के इतिहास को ही नहीं , बल्कि , समाज व्यवस्था , राजनीतिक स्थिति , वैचारिक क्रान्ति , और साहित्य पर भी व्यापक असर डाला है। वकील अज़ीमुल्ला खान , द्वारा लिखित यह प्रयाण गीत पढ़ें , इस से यह प्रमाणित होता है कि , 1857 की राष्ट्रीय चेतना कितनी मुखर थी। थका और कुचला हुआ भारत कैसी उठ खड़ा हुआ था। यह सब उस काल का इतिहास बताता है। अज़ीमुल्ला खान के इसी क़ौमी गीत को गाते हुए मेरठ के बहादुर क्रांतिकारी सिपाहियों ने प्रयाण किया था।
1857 की जंग ए आज़ादी का क़ौमी गीत !
हम हैं इसके मालिक , हिन्दुस्तान हमारा ,
पाक वतन है क़ौम का , जन्नत से भी प्यारा ,
ये है हमारी मिलकियत , हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रूहानियत से रोशन है , जग सारा।
पाक वतन है क़ौम का , जन्नत से भी प्यारा ,
ये है हमारी मिलकियत , हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रूहानियत से रोशन है , जग सारा।
कितनी क़दीम , कितनी नईम , सब दुनिया से न्यारा ,
करती है , जरखेज जिसे , गंग ओ जमुन की धारा ,
ऊपर बर्फीला परवत , पहरेदार हमारा।
नीचे साहिल पर बजता , सागर का नक्कारा।
करती है , जरखेज जिसे , गंग ओ जमुन की धारा ,
ऊपर बर्फीला परवत , पहरेदार हमारा।
नीचे साहिल पर बजता , सागर का नक्कारा।
इसकी खानें उगल रहीं हैं , सोना, हीरा, पारा,
इसकी शान ओ शौकत का ,दुनिया में जयकारा ,
आया फिरंगी दूर से , ऐसा मंतर मारा ,
लूटा दोनों हांथों से , प्यारा वतन हमारा।
इसकी शान ओ शौकत का ,दुनिया में जयकारा ,
आया फिरंगी दूर से , ऐसा मंतर मारा ,
लूटा दोनों हांथों से , प्यारा वतन हमारा।
आज शहीदों ने है तुमको , अहल ए वतन ललकारा ,
तोड़ गुलामी की जंजीरें , बरसाओ अंगारा ,
हिन्दू, मुसलमाँ , सिख हमारा , भाई भाई प्यार ,
यह है आज़ादी का झंडा , इसे सलाम हमारा।
( अज़ीमुल्ला खान )
तोड़ गुलामी की जंजीरें , बरसाओ अंगारा ,
हिन्दू, मुसलमाँ , सिख हमारा , भाई भाई प्यार ,
यह है आज़ादी का झंडा , इसे सलाम हमारा।
( अज़ीमुल्ला खान )
यह गीत उस समय का प्रयाण गीत था । उसके बाद कई गीत लिखे गए । सबसे प्रसिद्ध ' वंदे मातरम् ' जिसे वंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास आनंद मठ में लिखा । फिर अल्लामा इक़बाल का क़ौमी तराना, ' सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ', फिर कानपुर के श्याम लाल गुप्त पार्षद जी का ' झंडा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ' प्रसिद्ध हुआ । इसके अतिरिक्त नेता जी सुभाष चंद्र बोस के आज़ाद हिन्द फ़ौज़ का प्रयाण गीत, ' कदम क़दम बढाए जा, ख़ुशी के गीत गाये जा,यह ज़िन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पर लुटाए जा,' बहुत प्रसिद्ध। उत्तर प्रदेश पुलिस के बैंड कंपनी के डी एस पी कैप्टन राम सिंह ने इसकी धुन बनायी थे । वे आज़ाद हिन्द फ़ौज़ में नेता जी के साथ थे । वहाँ से वह आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस में डी एस पी के पद पर नियुक्त हुए । प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर राम सिंह आजीवन डी एस पी बने रहे । यह सम्भवतः देश का अकेला उदाहरण होगा जब कि कोई मृत्यु पर्यन्त ही सेवा में रहा हो। मैं जब पुलिस सेवा में 1980 में आया था तो वे बड़ी परेड या अन्य सेरीमोनियल अवसरों पर ' कदम कदम बढाए जा ' और ' सारे जहां से अच्छा ' झूम कर बजाते थे । जयशंकर ' प्रसाद' के नाटक ' चन्द्रगुप्त ' में एक बहुत ही प्रेरक और गेय प्रयाण गीत है,' हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती ', पर यह बहुत लोकप्रिय नहीं हुआ । आज 1857 को बीते 159 साल हो रहे हैं। जो स्वतंत्रता की चेतना उस समय जन्मी थी, उसका परिणाम ही बाद का आज़ादी के संघर्ष की पीठिका बनी ।
( विजय शंकर सिंह )
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