कुछ प्रतिभाएं कालजयी होती है। वक़्त की गर्द कम पड़ती है उन पर। ऐसी ही एक प्रतिभा है चार्ली चैपलिन। चार्ली मूक फिल्मों के युग के महानायक थे। मूक फिल्मों में संवाद और संगीत नहीं होता है। अभिनय में संवाद अदायगी जो पूर्णता लाती है उसका अभाव था। फिल्मों का वह शैशव काल था। फिल्म तकनीक तब विकसित हो रही थी। चार्ली अपने गरीब माँ की सहायता के लिए अचानक एक दिन थियेटर पर उतरे और उनकी प्रतिभा दामिनी की तरह चमक गयी। बेहद गरीबी में बचपन गुज़ारने वाला यह व्यक्तित्व विश्व सिनेमा का लीजेंड बना। चार्ली ने पूरी दुनिया को हंसाया। राजा से ले कर रंक तक सभी इनके दीवाने थे। अमेरिका से ले कर चीन तक इनकी अभिनय प्रतिभा का प्रकाश दीप्त हुआ। ढीला ढाला ,मुड़ा तुड़ा कोट , सरकती हुयी पेंट , कमीज पर खिसकती हुयी बो , आगे की और फटा हुआ जूता , इनकी पहचान बन गया था। इनका परिहास बोध , सेन्स ऑफ़ ह्यूमर , से दुनिया भर की फिल्में प्रभावित रही है। अगर आप को श्री चार सौ बीस फिल्म का यह गाना , मेरा जूता है जापानी , याद है तो आप राज कपूर को चार्ली की अदा के अनुसार इस गाने पर अभिनय करते देख सकते हैं। राज कपूर के अभिनय पर चार्ली की छाप स्पष्ट है।
वह एक स्वलेब्रिटी थे। अपने समय के सभी महान लोगों से उनके सम्बन्ध थे। गांधी से उनकी मुलाक़ात और गांधी का उनपर क्या प्रभाव पड़ा था , यह उन्ही के शब्दों में पढ़ लीजिये। चार्ली की आत्मकथा , विश्व की सर्वश्रेष्ठ और ईमानदार आत्म कथाओं में से एक है। मैं उसी का यह अंश आज उनके जन्म दिन पर प्रस्तुत कर रहा हूँ। गांधी और चार्ली , दो महान विभूतियों की भेंट रोचक है।
" चर्चिल के पास थोड़े ही अरसे रुकने के बाद मैं गांधी से मिला। मसिने गांधी की राजनैतिक साफगोई और इस्पात जैसी इच्छा शक्ति के लिए हमेशा उनका सम्मान किया है और उनकी प्रशंसा की है। लेकिन मुझे ऐसा लगा उनका लन्दन आना एक भूल थी। उनकी मिथकीय महत्ता लन्दन के परिदृश्य में हवा में ही उड़ गयी और उनका धार्मिक प्रदर्शन भाव अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहा। इंग्लॅण्ड के भींगे ठन्डे मौसम में अपनी परम्परा गत धोती , जिसे वे अपने बदन पर बेतरतीबी से लपेटे रहते थे ,में वे बड़े बेमेल लगते थे। लन्दन में उनकी इस तरह की मौजूदगी से कार्टून और कैरीकेचर बनाने वालों को मसाला ही मिला। दूर के ढोल ही सुहावने लगते हैं। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं उनसे मिलना चाहूँगा। बेशक , मैं इस प्रस्ताव से ही रोमांचित था।
मैं उनसे ईस्ट इंडिया डॉक रोड के पास ही झोपड़पट्टी जिले के छोटे से अति साधारण घर में मिला। गलियों में भीड़ भरी हुयी थी और मकान की दोनों मंज़िलों पर प्रेसवाले और फोटोग्राफर ठूंसे पड़े थे। साक्षात्कार पहली मंज़िल पर लगभग बारह गुणा बारह फुट के सामने वाले कमरे में हुआ। महात्मा तब तक आये नहीं थे , और जिस वक़्त मैं उनका इंतज़ार कर रहा था , मैं यह सोचने लगा , मैं उनसे क्या बात करूंगा। मैं उनके जेल जाने , और भूख हड़तालों ,तथा भारत की आज़ादी के लिए उनकी लड़ाई के बारे में थोड़ा बहुत जानता था कि वे मशीनों के इस्तेमाल के विरोधी थे।
आखिर कार जिस समय गांधी आये , टैक्सी से उनके उतरते हे चारों तरफ हल्ला गुल्ला मच गया। उनकी जय जय कार होने लगी। गांधी अपनी धोती को बदन पर लपेट रहे थे। उस तंग भीड़ भरी झोपड़पट्टी की गली में यह एक अजीब नज़ारा था। एक दुबली पतली काया एक जीर्ण शीर्ण से घर में प्रवेश कर रही थी। उनके चारों तरफ जय जय कार के नारे लग रहे थे। वे ऊपर आये और फिर खिड़की से अपना चेहरा दिखाया। तब उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया , और तब हम दोनों मिल कर भीड़ की तरफ हाँथ हिलाने लगे।
जैसे ही हम सोफे पर बैठे , चारों तरफ से कैमरों की फ़्लैश लाइटों का हमला हो गया। मैं महात्मा के दायीं तरफ बैठा था। अब वह असहज और डराने वाला पल आ ही पहुंचा था , जब मुझे एक ऐसे विषय पर ,घाघ की तरह बौद्धिक तरीके से कुछ कहना था जिसके बारे में मैं बहुत कम जानता था। मेरी दायीं तरफ एक हठी युवती बैठी हुयी थी ,जो मुझे एक अंत हीं कहानी सुना रही थी और मुझे उसका एक भी शब्द पल्ले नहीं पड़ रहा था मैं सिर्फ हाँ हाँ कहते हुए सर हिला रहा था। मैं लगभग इस बात हैरान हो रहा था कि , उनसे कहूँगा क्या। मुझे पता था कि बात मुझे ही शुरू करनी है और यह बात तो तय ही थी कि महात्मा मुझे नहीं बताते उन्हें मेरी पिछली फिल्म कितनी अच्छी लगी थी। मुझे इस बात पर भी शक था कि उन्होंने मेरी कोई फिल्म देखी भी है या नहीं। तभी एक भारतीय महिला की आदेश देता हुआ स्वर गूंजा , मिस क्या आप बातचीत बंद करेंगी। और मि चैपलिन को गांधी जी से बात करने देंगी ?
भरा हुआ कमरा एक डैम शांत हो गया। और जैसे ही महात्मा के चेहरे पर मेरी बात का इंतज़ार करने वाले भाव आये ,मुझे लगा , पूरा भारत मेरे शब्दों का इंतज़ार कर रहा है। इसलिए मैंने अपना गला खँखारा।
' स्वाभाविक रूप से मैं आज़ादी के लिए भारत की आकांक्षाओं और संघर्ष का हिमायती हूँ। ' मैंने कहा , 'इसके बावजूद , मशीनरी के इस्तेमाल को ले कर आप के विरोध से मैं थोड़ा भ्रम में पद गया हूँ।
मैं जैसे जैसे अपनी बात कहता गया , महात्मा सिर हिलाते रहे और मुस्कुराते रहे। ' कुछ भी हो मशीनरी अगर निःस्वार्थ भाव से इस्तेमाल में लाई जाती है तो , इस से इंसान को गुलामी के बंधन से मुक्त करने में मदद मिलनी चाहिए और इस से उसे कम घंटों तक काम करना पडेगा और वह अपना मस्तिष्क विकसित करने और ज़िंदगी का आनंद उठाने के लिए ज्यादा समय बचा सकेगा। '
' मैं समझता हूँ , ' वह शांत स्वर में अपनी बात कहते हुए बोले , ' लेकिन इस से पहले कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सके , भारत को अपने आप को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त कराना है। इस से पहले मशीनरी ने हमें इंग्लॅण्ड पर निर्भर बना दिया था , और उस निर्भरता से अपने आप को मुक्त कराने का एक ही तरीका है , कि हम मशीनरी द्वारा बनाये गए सभी सामानों का बहिष्कार करें। यही कारण है कि , हमने प्रत्येक नागरिक का यह देशभक्तिपूर्ण कर्तव्य बना दिया है कि , वह अपना स्वयं का सूत काते , और अपने स्वयं के लिए कपड़ा बुने। यह इंग्लॅण्ड जैसे शक्ति शाली राष्ट्र से लड़ने का हमारा अपना तरीका है। और हाँ , और भी कारण हैं। भारत का मौसम इंग्लॅण्ड के मौसम से अलग होता है भारत की आदतें और ज़रूरतें भी अलग हैं। इंग्लॅण्ड की सर्दी के मौसम के कारण यह ज़रूरी हो जाता है कि आप के पास तेज़ उद्योग हों और इसमें अर्थव्यवस्था शामिल है। आप को खाना खाने के बर्तनों के लिए उद्योग की ज़रुरत होती है। हम अपनी उँगलियों से ही खाना खा लेते हैं। और इस तरह से देखें तो कई तरह के फ़र्क़ सामने आते हैं। '
मुझे भारत की आज़ादी के लिए सामरिक जोड़ तोड़ लचीलेपन का वस्तुपरक गया था और विरोधाभास की बात ये थी कि इस के लिए प्रेरणा एक यथार्थवादी , एक ऐसे युगदृष्टा से मिल रही थी, जिस में इस काम को पूरा करने के लिए दृढ इच्छा शक्ति थी। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि सर्वोच्च स्वतंत्रता वह होती है कि आप अपने आप को अनावश्यक वस्तुओं से मुक्त कर डाले और कि हिंसा अंततः स्वयं को नष्ट कर देती है। '
कमरा खाली हो गया तो उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या मैं वहीं रह कर उन्हें प्रार्थना करते हुए देखना चाहूँगा। महात्मा फर्श पर पालथी मार कर बैठ गए और उनके आसपास घेरा बना कर पांच अन्य लोग बैठ गए। लंदन के झोपड़पट्टी वाले इलाक़े बीचोबीच वाले एक छोटे से कमरे के फर्श पर छह मूर्तियां पद्मासन में बैठी हुईं थीं। लाल सूर्य छतों के पीछे से तेज़ी से अस्त हो रहा था और मैं खुद सोफे पर बैठा उन्हें नीचे देख रहा था। वे विनम्रता पूर्वक अपनी प्रार्थनाएं कर रहे थे। क्या विरोधाभास है। मैंने सोचा इस अत्यंत यथार्हवादी व्यक्ति को, तेज़ कानूनी दिमाग और राजनैतिक सोच की गहरी समझ रखने वाले , इस शख्स को देख रहा था। यह सब आरोह अवरोह रहित बातचीत में विलीन होता प्रतीत हो रहा था। "
( चार्ली चैपलिन की आत्म कथा , ' मेरा जीवन ' से )
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