Wednesday, 10 June 2015

म्यांमार में सेना का अभियान - एक टिप्पणी / विजय शंकर सिंह





सेना कल ही ने मणिपुर आतंकियों के विरुद्ध एक सघन अभियान चलाया था और म्यांमार की सेना के साथ मिल कर म्यांमार की सीमा में घुस कर आतंकियों को मार गिराया था . यह आक्रामक अभियान हॉट परस्यूट यानी लगातार पीछा करते हुए मुठभेड़ करने की रण नीति हैं. इन आतंकियों के पास से जो हथियार बरामद हुए हैं , उनसे यह पुष्टि होती हैं कि , इन के लिंक्स चीन से भी जुड़े हुए हैं. पश्चिमी सीमा और पूर्वी सीमा पर जो आतंकवादी घटनाएं होती हैं, दोनों की रणनीति उनके एपिसेंटर और उनके आक़ाओं में अंतर है. पश्चिमी सीमा पर होने वाली आतंकवादी घटनाओं का मूल कारण पाकिस्तान का कश्मीर के प्रति पागलपन है. वह हर हाल में इस सीमा को डिस्टर्ब किये रहना चाहता है. आई एस आई का इन आतंकियों को खुला समर्थन है, और पाकिस्तान सेना इन सभी आतंकी संगठनों ,जैश ए मुहम्मद, लश्कर ए तोइबा, पाक तालिबान आदि आदि को न सिर्फ धन देती है बल्कि इन्हें हथियार और प्रशिक्षण भी देती रहती है. सारे आतंकी प्रशिक्षण शिविर पाक अधिकृत कश्मीर में चलते हैं. सेना और ख़ुफ़िया तंत्र को सब मालूम है पर कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के कारण सेना वैसा अभियान पश्चिमी सीमा पर नहीं चला सकती जैसा अभी म्यांमार की सीमा के भीतर हुआ है.

पूर्वी सीमा या नार्थ ईस्ट में बहुत से अलगाव वादी गट सक्रिय रहे है. नागालैंड तो भारत की आज़ादी के समय से ही आतंकी गतिविधियों से त्रस्त रहा है. स्वतंत्र नागालैंड की मांग बहुत पुरानी है. पहले इनके नेता फिजो थे, जो स्वतः निर्वासित जीवन जी रहे थे. बाद में नागालैंड के अलग राज्य बनने को लेकर इनसे नेहरू के समय में समझौता हुआ. फिजो तो मान गए पर उनके आतंकी संगठन में फूट पड़ गयी और नए संगठन सक्रिय हो गए. इसी तरह पूर्वोत्तर के राज्यों में अनेक छोटे छोटे आतंकी संगठन है. उनमें सबसे बड़ा संगठन उल्फा ULFA है. फिर बोडो राज्य को लेकर बोडो लिबरेशन आर्मी बनी, मणिपुर में भी कई संगठन सक्रिय हैं. बांग्ला देश से इनको सहायता मिलती रहती थी. उल्फा का नेता परेश बरुआ तो बाँग्ला देश में खुल कर रहता है .इनके संपर्क श्री लंका के एल टी टी इ सहित पश्चिमी आतंकी संगठनों से भी रहे हैं. चीन का इन को उतना खुला और ज़ाहिरा समर्थन तो नहीं पर अंदर से वह इन्हें ट्रेनिंग और हथियार आदि देता रहता है. इस आतंकी संगठन जिसने 20 जवानों को मार दिया था , के पास से जो हथियार मिले हैं उस से चीन से इनके सम्बन्ध सिद्ध होते हैं. लेकिन ये आतंकी संगठन इस्लामी संगठनों की तुलना में कम साधन संपन्न है और धार्मिक उन्माद से भी मुक्त है. दरअसल पूवोत्तर में जो कबीले थे उनमें आपसी अहंकार और प्रतिद्वंद्विता के कारण अलग राज्य की मांग उठती रहती है. कभी कभी तो अलग देश की भी मांग उठ जाती है.



म्यांमार पहले बर्मा था. 1935 में वह देश से अलग हुआ. आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के अभियान के दौरान नेता जी सुभाष बोस ने इसे ब्रिटिश भारत पर हमले का लांचिंग पैड बनाया था. भारत की सीमा का निर्धारण जब अंग्रेजों ने बंटवारे के समय किया था तो उसमें कई विसंगतियां आ गयी थी. ऐसी ही कुछ विसंगतियों का समाधान अभी भारत और बांग्ला देश के लैंड बाउंडरी एग्रीमेंट 2015 के अंतर्गत किया गया है. म्यांमार मूलतः कबीलाई और जंगलों भरा देश है. भारत का म्यांमार एक मित्र देश है और दोनों देशों में कोई वैमनस्य नहीं है अतः सीमा पर सीमा चौकियां और बी एस एफ तो है पर कंटीले तारों की दीवार जो पाकिस्तान और बांगला देश की सीमा पर है वह नहीं है. इस कारण म्यांमार अक्सर इन आतंकी संगठनों की स्वाभाविक पनाहगाह बन जाता है. म्यांमार की सरकार न इन्हें संरक्षण देती है और न ही इन्हें भगाती है. चूँकि वहाँ यह आतंकी सगठन कोई हरक़त नहीं करते हैं इस लिए वह कोई कार्यवाही भी नहीं करती है. वह उदासीन रहती है.

म्यांमार के सीमावर्ती जंगलों में इन आतंकी संगठनों के पनाह को लेकर मनमोहन सरकार के समय एक म्यांमार से एक समझौता हुआ कि संदेह और अभिसूचना होने पर म्यांमार की सेना के साथ भारतीय सेना ऐसा अभियान जिसे अंग्रेज़ी में सर्जिकल ऑपरेशन कहते हैं चला सकती है. यह समझौता 2010 में दोनों सरकारों के बीच ऐज़ल में हुआ था. यह अभियान उसी समझौते की शर्तों पर ही हुआ है. मयामार की सीमा में ऐसे अभियान चलाने के लिए भारत और म्यांमार के सैनिक कमांडर रणनीति तय करते हैं .इस समझौते के पूर्व भी म्यांमार की सीमा  कर म्यांमार की सरकार की सहमति से ऐसी कार्यवाहियां हुयी हैं। कुछ का उदाहरण अधो लिखित है,

1. 1995 में भारत ने 'ऑपरेशन गोल्डन बर्ड' नाम से म्यांमार (उस वक्त बर्मा) में ऑपरेशन चलाया था, जिसमें पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के 40 उग्रवादी ढेर हो गए थे।
2. दिसंबर 2003 दक्षिण भूटान स्थित पूर्वी-उत्तर उग्रवादी गुटों को खत्म करने के लिए 'ऑपरेशन ऑल क्लीन' चलाया गया। इसके तहत करीब 30 उग्रवादी कैंपों - जिनमें 13 उल्फा, 12 एनडीएफबी और 5 केएलओ शामिल थे, को नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया गया।
3. 2003-2004 में 'ऑपरेशन ऑल क्लियर' को भारत ने रॉयल भूटान आर्मी के साथ चलाया था, जिसमें असम के प्रमुख आतंकी समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी (ULFA) के 40 ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था, इस ऑपरेशन में 140 उग्रवादी ढेर हुए थे।
4. 4.जनवरी 2006 में भी भारत और म्यांमार सेना ने वहां एक संयुक्त ऑपरेशन पर एनएससीएन (खपलांग) ग्रुप का सफाया कर दिया। इस दौरान भारत ने म्यांमार की सेना को हथियार आदि भी मुहैया कराए थे।



मणिपुर आतंकी संगठन के दौरान जो यह अभियान चलाया गया और जिसमें भारतीय सेना को ज़बरदस्त कामयाबी मिली वह प्रशंसनीय है. इस अभियान से चीन की लिप्तता भी दिखी. लेकिन ऐसा अभियान पश्चिमी सीमा पर सक्रिय इस्लामी आतंकियों के खिलाफ चलाना कठिन है और उस से पूर्ण युद्ध की संभावना हो सकती है. सेना और अभिसूचना तंत्र आतंकी विरोधी अभिसूचना को अपडेट करते रहते हैं. वह सक्षम भी है और सीमा पार आतंकी शिविर को ध्वस्त करना उचित भी है पर जो उचित और संभव हो, अक्सर हो नहीं पाता. इज़राईल का उदाहरण मित्र गण अक्सर देते हैं. भारत न इज़राईल है और न ही भारत के पीछे सारे गोरे मुल्क ही एकजुट हैं. अमेरिका इज़राइल के हर कदम पर साथ है यह अलग बात है कि वह दिखाने के लिए उसकी गाहे बगाहे निंदा भी करता रहता है. पर भारत के साथ जो हैं वह कूटनीतिक रूप से हैं. सबके अपने अपने स्वार्थ हैं अपने अपने ठीहे हैं.

इस अभियान को ले कर श्री विनोद शर्मा जो एक वरिष्ठ पत्रकार हैं का एक खुला पत्र जो उन्होंने लेन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर को लिखा है को अविकल रूप से प्रस्तुत कर रहा हूँ ,

Dear Rajyavardhan Rathore,

I'm making this delayed post for I waited the whole morning for a clarification,if any, on a statement attributed to you in today's Indian Express, in which you legitimately celebrated our troops' cross-border raid on militant hideouts in Myanmar.

But what left me wonder-struck was your claim that the strikes were a message to all countries, including Pakistan, that harbored terror intent towards our country.

Now that's a pretty bold exposition Mr Minister--- abysmally short though on correct appreciation of the geopolitical realities in our immediate and distant neighborhoods. Pl don't get me wrong. But your hyperbole reminds one of George Clemenceau's famous quote that 'war is a thing too serious to be left to soldiers'.

A widely improvised version of the French writer's quotation is that war's too serious a business to be left to generals... or ex-colonels such as yourself. The Modi regime can pat itself on the back as what our troops achieved in Myanmar was an example of good diplomacy with Naypyidaw and operational precision on the ground. The response was essential to keep up the morale of our army.

But to call it hot pursuit would be erroneous as it was a retributive raid with the consent of the country on whose territory we struck. Likewise, to show it as a signal of what we could do with Pakistan isn't just indiscreet but reckless.

If we have any such plans, we'd need to keep them under wraps even after finishing the task. It won't be an achievement for us to shout from the rooftops. Please don't forget, that we are a nuclearized sub-continent where a conflict situation would attract world attention to keep it from escalating into a full blown N-war.

Before signing off, may I leave you with a thought---- that you might want to share with your superiors in the government--- belonging to Brajesh Mishra, who was AB Vajpayee's NSA. At a meeting I had with him before his death, he said he decided against writing a book because much of what he knew needed to go with him to his grave. The best patriots, Mr Rathore, are those who seek no recognition, no gratitude from the country. They are reconciled to dying unsung.
Sincerely,

Vinod Sharma

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