Thursday 18 June 2015

ललित मोदी , वसुंधरा राजे , सुषमा स्वराज , और क्रिकेट - सवालों के घेरे में / विजय शंकर सिंह



यूनियन कार्बाइड के एंडरसन, बोफोर्स के कवात्रोची, और आई पी एल के ललित मोदी में एक समता है. तीनों ही भारत में विभिन्न अपराधों में वांछित रहे हैं और तीनों ही देश से सरक गए the.किसी न किसी समय. एंडरसन कुख्यात भोपाल गैस त्रासदी के खलनायक, क्वात्रोची बोफोर्स के बड़े दलाल और सोनिया गांधी के मायके के देश इटली के नागरिक, और ललित मोदी, मोदीनगर जो मेरठ के पास है के मशहूर उद्योगपति घराना राय बहादुर सेठ गूजरमल मोदी के परिवार के हैं. एंडरसन एक अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी का करता धर्ता था और निश्चित रूप से वह कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में था. हो सकता है  अमेरिकी सरकार का भी उस पर वरद हस्त रहा हो. क्वात्रोची का सोनिया और राजीव से कनेक्शन था. यह सच भी है. भले ही यह प्रमाणित न हो पर परिस्थितियां इसी और इंगित करती है. बोफोर्स की तोप तो कारगर निकली ही और यह घोटाला भी कम कारगर नहीं निकला, जिस ने देश के राजनीति की दिशा बदल दी. ललित मोदी भी आई पी एल के 700 करोड़ के घपले में वांछित है और इस के खिलाफ ई डी ने ब्लू कार्नर नोटिस भी जारी किया है. वह भी देश के बाहर भाग गया है और अब लन्दन में रह रहा है. उसे ही ब्रिटेन से पुर्तगाल जाने के लिए सिफारिश करने का आरोप विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर लग रहा है.

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अगर क़ानून के हाँथ लंबे होते है तो, क़ानून के खिलाफ काम करने वाले अपराधियों के पास भी उन लंबे हांथों से बचने के लिए कम जुगाड़ नहीं होता. और यह जुगाड़ किसी ट्रेवल एजेंट का नहीं होता है, बल्कि, देश के भाग्य विधाताओं का होता है. कितना कौआ रोर मचा है, टीवी पर. भाजपा कह रही है कांग्रेस से तुमने भगाया एंडरसन और क्वात्रोची को, और कांग्रेस कह रही है , भाजपा से तुम्हारे मंत्रियों ने भगाया ललित मोदी को या लमो को. नमो का अनुकरण है यह. यहां कोई छिपा मक़सद नहीं है. भाग तो तीनों गए, पर ठगा सा देखता कौन रहा. भोपाल के गैस काण्ड में मरे हज़ारों लोग, बोफोर्स की दलाली में रूपये डकारने वाले दलालो को हम लोग और वह खेल प्रेमी जो क्रिकेट के लोभ में किसी अन्य खेल में ठग लिए गए.


ललित मोदी और नेताओं के रिश्ते कहा जा रहा है निजी नहीं है और न ही व्यावसायिक हैं। . यह रिश्ते  सामान्य और औपचारिक हैं. सामान्य औपचारिक रिश्ते भी  व्यावसायिक रिश्तों में बदलते हैं। और यही व्यावसायिक रिश्ते जब  दफ्तरों से होते हुए ड्राईंग रूम में और वहाँ से घर के अंतःपुर में जब पहुँच जाते हैं तो वह निजी रिश्ते बन जाते है. धन एक मूल भूत आवश्यकता है. पर जब यह आवश्यकता , लोभ और लोभ जन्य मनोरोग में बदल जाती है तो हर व्यावसायिक रिश्ता निजी हो जाता है. एंडरसन का किस से निजी रिश्ता विकसित हो गया था यह तो मुझे नहीं मालूम, पर क्वात्रोची का रिश्ता कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से था. ललित मोदी का  रिश्ता भी कांग्रेस से था और भाजपा के वसुंधरा राजे से भी और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी. सारे रिश्ते अब गोपन नहीं रहे. वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज से ललित मोदी के रिश्ते व्यावसायिक हैं और दोनों के हित सामान हैं।. कोई मानवीय एंगल और ‘ नेकी कर दरिया में डाल ’ का कोई हातिम ताई टाइप कॉन्सेप्ट इन रिश्तों में नहीं है.

जिस पुर्तगाल के अस्पताल में ललित मोदी की पत्नी का इलाज होने की बात कही  जा रही है, उसी अस्पताल को 35000 मीटर ज़मीन वसुंधरा राजे  द्वारा दी गयी है  यह भी कहा जा रहा है कि, इस ज़मीन के अतिरिक्त अन्य कई भूमि सौदों में ललित मोदी का खुला हस्तक्षेप रहा है. राम बाग़ पैलेस होटल के प्रेसिडेंशियल सूट में रुक कर ललित मोदी प्रदेश के नौकरशाहों के स्थानांतरण और नियुक्ति में भी दखल देते थे और  उनकी दखल मानी जाती थी. ऐसे बहुत से उदाहरण और प्रमाण अब सामने आ रहे है, जिस से यह साफ़ प्रमाणित होता है कि वसुंधरा राजे और ललित मोदी के सम्बन्ध न सिर्फ व्यावसायिक हैं बल्कि निजी और प्रगाढ़ भी. वसुंधरा राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत के कंपनी के बहुत ही कम दाम वाले शेयर , ललित मोदी द्वारा  11 करोड़ रुपये में खरीदे जाने का मामला भी प्रकाश में आया है. जितना ही इस प्रकरण को  खोदा जा रहा है, परत दर परत उतना ही खुलासा हो रहा है. हालांकि सुषमा स्वराज का इतना नज़दीकी सम्बन्ध अभी , सिवाय उनके पति और बेटी द्वारा ललित मोदी का वकील बनने के अतिरिक्त नहीं दिख रहा है पर उनकी रूचि और सम्बन्ध तो प्रमाणित ही है.


क्रिकेट एक मायावी खेल हो गया है. खेल कम और धन कमाना, ग्लैमर, और सट्टेबाज़ी अधिक हो गया है। सबसे धनिक खिलाड़ी क्रिकेट से ही है. राजनेताओं का एक शगल क्रिकेट संघों की राजनीति भी हो गयी है. सभी दलों के नेता इस सोने की खान जैसे खेल संघ से जुड़ना चाहते हैं. कांग्रेस के राजीव शुक्ल, एन सी पी के शरद पवार, भाजपा के अरुण जेटली, राजद के लालू प्रसाद यादव क्रिकेट की राजनीति में भी क्रीज़ पर हैं. खुद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे तो वे गुजरात  क्रिकेट अशोसिएसन के अध्यक्ष भी थे. ललित मोदी को उन्ही के कार्यकाल में गुजरात क्रिकेट एसोशिएसन से बी सी सी आई में भेजा गया था. प्रधान मंत्री को , सुषमा स्वराज का यह कृत्य ज्ञात हो या न हो, पर वह भी नज़दीकी रूप से ललित मोदी को जानते है यह भी  सच है.

अभी तो खुलासे होने शुरू हुए हैं. राजीव शुक्ल, शरद पवार सभी के नाम सामने आ रहे हैं . सबकी उंगलियां एक दूसरे की  ओर बेशर्मी से उठ रही है. सब कहीं न कहीं इस कीचड में लिप्त हैं. खेल में खेल भावना का होना ज़रूरी है. खेल भी एक प्रकार की साधना है. पर केवल खिलाड़ी के लिए ही. लेकिन  जब खेल मैदानों से हट कर, ऐशगाहों, सटोरियों के ठिकानों और बाज़ार के नियामकों के दफ्तरों में पहुँच जाता है तो वह खेल नहीं रहता भले ही वह कुछ और हो जाय. 

क्रिकेट अभिजात्य अंग्रेजों का खेल है. ब्रिटेन के लार्ड परिवार के लोग इसे खेलते थे. जहां जहां अंग्रेजों के उपनिवेश बने यह खेल वहाँ वहाँ पहुँचता गया. जहां जहां औपनेवेशिक मानसिकता गहरे पैठी वहाँ वहाँ यह खेल लोकप्रिय होता गया. भारत का यह सबसे लोकप्रिय खेल है. खेल की लोकप्रियता बढ़ी तो धन आना शुरू हुआ. कुछ अत्यंत प्रतिभा संपन्न खिलाड़ी भी देश में हुए, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, कपिल देव आदि आदि. सचिन तो भारतरत्न भी हैं. जब पैसा आया तो ग्लैमर भी इस खेल से जुड़ा. और तभी टीवी के जीवन्त  प्रसारण ने तो सब कुछ बदल के रख  दिया. सफ़ेद पतलून ,और  सफ़ेद शर्ट में खेले जाने वाले इस भद्र लोक खेल का परिधान भी धीरे धीरे बदला और खेल के तरीके भी.  पांच  दिनी टेस्ट मैच लंबा, और उबाऊ लगने लगा. दर्शक भी कम मिलने लगे और खेल के अनिश्चित परिणाम के कारण खेल का थ्रिल जो हार जीत के सस्पेंस से उपजता है वह कम होने लगा. तब जा कर सीमित ओवरों का एक दिनी मैच की कल्पना साकार हुयी. पहले 60 -  60 ओवर के फिर 50 - 50 ओवर के मैच होने लगे. एक दिन में ही खेल की हार जीत का फैसला होने लगा तो लोगों का उत्साह और रूचि दोनों बढ़ने लगी. इस लोकप्रियता ने BCCI को देश का  ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे समृद्ध खेल संगठन बना दिया.

अब जब धन के श्रोत खुले तो जहां गुड़ वहाँ च्युंटा . धनपतियों  ने धन लगा कर खेल को प्रायोजित करना शुरू किया और केवल व्यापार और धन के लिए खेल को और सिकोड़ दिया गया, जो आई पी एल कहलाया. बड़े बड़े औद्योगिक घरानों और फ़िल्मी कलाकारों ने खिलाड़ियों को खरीद कर आई पी एल का आयोजन शुरू किया. जब हार जीत के फैसले से धन ज्यादा जुड़ गया और खेल की भावना पीछे रह गयी , साथ ही सटोरियों का खेल भी शुरू हो गया . सट्टा क्रिकेट का परिणाम नहीं है. यह तो बहुत पहले से ही शेयर मार्केट या वायदा बाज़ार में था ही. पर जब पैसा क्रिकेट में दिखने लगा तो सटोरिये इधर मुखातिब हो गए. सटोरियों ने सट्टे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए खिलाड़ियों से संपर्क साधा. कुछ युवा और किशोर वय के खिलाड़ी लड़के जिनकी आँखें अचानक इस ग्लैमर और धन से चुंधिया गयी थी सटोरियों के जाल में फंस भी गए. शिकायतें हुईं . जांच भी हुयी. और कुछ खिलाड़ियों को खेल से बाहर भी कर दिया गया.

ललित मोदी भी एक क्रिकेट के व्यापारी ही है. आई पी एल , काला धन छुपाने और मनी लांडरिंग का भी एक माध्यम बना. इस अकूत धन और ग्लैमर ने राजनेताओं को भी आकृष्ट किया. कुछ क्रिकेट संघ मैं प्रवेश किया. अब क्रिकेट के पास धन है, ग्लैमर है और सत्ता की हनक भी. दिमाग को खराब करने के लिए जितने भी कारण होने चाहिए वह सब एक साथ एकत्र हो गया. इसका असर भी दिखा. BCCI खुद को देश के क़ानून के ऊपर एक आभिजात्य  मानसिकता से ग्रस्त संगठन हो गया. खुद को सरकार के ऊपर समझने का अहंकार इस संगठन हो गया। पर जब घपले खुले और सुप्रीम कोर्ट ने जब गहराई से मुक़दमे की सुनवाई की तो ऊँट पहाड़ से नीचे आया. धन , ग्लैमर , और राज सत्ता के  दर्प से ग्रस्त  ललित मोदी का व्यवहार और तमाशा मुझे  किसी धनपशु के बिगड़ैल संतान की तरह लगता है. 

जिस तरह से आज पूरी भाजपा और सरकार वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज के साथ उनके ललित मोदी स्कैंडल में फंसे होने के बावजूद भी खड़ी है और खुद को उनके कर्मों के साथ एकजुट रहना दिखा भी रही है.ऐसा ही एका यू पी ए के काल में भी दिखा था . तब भी प्रधान मंत्री मौन रहा करते थे आज भी प्रधान मंत्री खामोश हैं . यह बताता है कि सत्ता और अधिकार की भाषा , व्याकरण और चरित्र एक सा ही होता है . 
-vss.




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