Friday 11 July 2014

भारतीय राजनीति के युवा तुर्क -- चन्द्र शेखर....उनकी पुण्य तिथि पर विनम्र स्मरण 08/07/14


ज़रा सा इतिहास के पन्नों को पलटिये. आज़ादी के बाद का सबसे उथल पुथल भरा समय था. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह जिस प्रबल जन समर्थन के बल पर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के अगुआ के रूप में अवतरित हुए थे, उसे राम मंदिर के अराजक आन्दोलन ने सत्ता से उतार दिया था. कांग्रेस की हैसियत इतनी नहीं थी कि वह खुद सरकार बना सके. जनता दल में टूट हुयी और उस टूटे धड़े के नेता के रूप में चन्द्र शेखर को उसने समर्थन दे दिया और चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बने. इसके पहले वह कभी भी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे थे.

चन्द्र शेखर भारतीय राजनीति के युवा तुर्क थे तुर्की को आधुनिक बनाने और खिलाफत को समाप्त करने में मुस्तफा कमाल पाशा और उनके साथियों जिन्हें युवा तुर्क कहा जाता था की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है. यह शब्द वहीं से आया है और यह घटना सौ साल पहले की है. चन्द्र शेखर की दाढ़ी एक विद्रोही व्यक्तित्व की पहचान बन गयी थी. पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले बलिया के गाँव इब्राहिम पट्टी में 1 जुलाई 1927 को इनका जन्म हुआ था. उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुयी. और वहीं से यह समाजवादी आन्दोलन के संपर्क में आये. उस समय समाजवादी आन्दोलन के दो धड़े हो गए थे. एक का नेत्रित्व् जिसका नाम संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी था, डॉ राम मनोहर लोहिया कर रहे थे, दूसरे का आचार्य नरेन्द्र देव और जय प्रकाश नारायण और इस दल का नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी था. चन्द्र शेखर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में गए. आचार्य नरेन्द्र देव मूलतः एक अध्यापक थे वह सक्रीय राजनीति में बहुत नहीं रहे. जय प्रकाश नारायण बाद में सर्वोदय आन्दोलन में चले गए. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बहुत से बड़े नेता जब कांग्रेस में 1969 में विभाजन हुआ और इंदिरा गाँधी का नेत्रित्व उभरा तो कांग्रेस में चले गए. चन्द्र शेखर, मोहन धारिया और कृष्णा कान्त की त्रिमूर्ति भी कांग्रेस में शामिल हो गयी.

लेकिन जब आपात काल की बात चली तो चन्द्र शेखर ने उनका विरोध किया. कांग्रेस वर्किंग कमेटी जो कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था है, में आपात काल का विरोध इन्होने तब किया था जब इंदिरा गाँधी दिल्लॆश्वरो वा जगादीश्वारो के मोड़ में थीं. उन्हें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देव कान्त बरुआ ने इंदिरा इस इंडिया एंड इंडिया इस इंदिरा कहा था. ऐसा साहस इनमें ही था. वे अन्य नेताओं, जय प्रकाश नारायण, मोरार जी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवानी आदि के साथ गिरफ्तार कर लिए गए. एक और नाम उस समय नौजवानों का प्रेरणा श्रोत था. वह जार्ज फर्नाडीस थे. वह भूमिगत हो गए थे. बाद में वह गिरफ्तार हुए और जेल से ही उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर से क चुनाव लड़ा और सांसद हुए और बाद में मंत्री भी. जब 1977 में सभी विपक्षी दलों ने मिल कर जनता पार्टी बनायी तो चन्द्र शेखर उस पार्टी के अध्यक्ष बने. जनता पार्टी 1979 में टूट गयी. लेकिन यह शेष बची जनता पार्टी के वे आजीवन अध्यक्ष बने रहे. इसी शेष जनता पार्टी को समर्थन दे कर कांग्रेस ने इनकी सरकार बनायी थी.

आज उन्ही चन्द्र शेखर की पुण्य तिथि है. आज ही के दिन वह दिवंगत हुए थे. चन्द्र शेखर एक स्वाभिमानी और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. उनके मित्र विचारधाराओं और दलीय प्रतिबद्धता से मुक्त सभी दलों में थे. वह बलिया से जब तक जीवित रहे सांसद रहे और अपनी ज़मीन से जुड़े रहे. कन्या कुमारी से दिल्ली राजघाट में गाँधी समाधि तक उनकी पदयात्रा देश के महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक अभियानों में प्रमुख रही है. जब यह प्रधान मंत्री थे तो कांग्रेस का इन्हें पूरा समर्थन था, और कांग्रेस इन पर दबाव बनाना चाहती थी. राजीव गाँधी ने इनकी सरकार पर अपनी जासूसी कराने का आक्षेप लगाया. कांग्रेस का आकलन था कि यह इसी बहाने सफाई देंगे और दबाव में रहेंगे. चन्द्र शेखर ने अपने आत्म सम्मान से कोई समझौता नहीं किया और इस्तीफा दे दिया. सरकार गिर गयी. और दुबारा आम चुनाव हुए. इसी चुनाव अभियान में राजीव गांधी की दुखद हत्या तमिल नाडू में हुयी थी.

अब एक संस्मरण मुझ से सम्बंधित है. 1992 के सितम्बर में मैं अडिशनल एस पी देवरिया था. वहाँ की एक चीनी मिल राम कोला में थी. गन्ना किसानों का मिल से कुछ भुगतान संबंधी विवाद था. किसानों का धरना चल रहा था, अचानक धरना हिंसक हुआ और रात में ही भीड़ ने थाना घेर लिया.भीड़ ने थाने के अन्दर घुस कर तोड़फोड़ करना शुरू किया. थानाक्यक्ष पर हमला हुआ और वह मरणासन्न हालत में इलाज़ के लिए बी एच यू भेजे गए. मज़बूरन पुलिस को गोली चलानी पडी. एक किसान की मौके पर मृत्य हो गयी. फिर शुरू हुआ सभी दलों के नेताओं का राम कोला आगमन. उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. कल्याण सिंह मुख्य मंत्री. थे. इसी क्रम में चन्द्र शेखर भी आये और कुशी नगर डाक बंगले में रुके. वही से उनका राम कोला जाने का कार्यक्रम था. सुबह उन्होंने मुझे बुलाया. मैं जब पहुंचा तो लोग उनसे पुलिस की ज्यादती की शिकायत कर रहे थे. उन्होंने मुझे बैठने को कहा और पूछा
गोली चली थी.
मैंने कहाँ हाँ.
उन्होंने फिर पूछा क्यों और कैसे.
मैं तैयार था. क्यों कि उस समय यही सवाल बार बार मुझ से पूछा जा रहा था. मैंने विस्तार से उन्हें सबके सामने समझाया. जब पूरी बात उनकी समझ में आयी और जब वह समझ गए कि उग्र और हिंसक भीड़ को तितर बितर करने के लिए गोली मज़बूरी में चलाई गयी थी तो उन्होंने सिर्फ यह कहा,
"
जब थाना घेरा जाएगा, एस ओ को बुरी तरह घायल किया जाएगा, और थाने का हथियार लुटने की स्थिति आ जायेगी तो क्या थाने से रसगुल्ला निकलेगा."
उन्होंने वहाँ जाने से मना कर दिया.

मेरा संपर्क उनसे निरंतर बना रहा. आज उनकी पुण्य तिथि पर उनका विनम्र स्मरण और सादर नमन.
 ( विजय शंकर सिंह )


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