Sunday, 27 July 2014

इसराइल फिलिस्तीन संघर्ष एक ऐतिहासिक विवेचन.. 3........विजय शंकर सिंह

आप इस्राइल और फिलिस्तीन के आपसी विवाद और संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पढ़ रहे हैं. उसी क्रम में यह तीसरा अध्याय है.



द्वीतीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था. जर्मनी तबाह हो गया था, जापान के दो महानगर हिरोशिमा और नागासाकी विज्ञान के अभिशाप के साक्षी बन विनाश के कीर्तिमान बन चुके थे. अमेरिका सबसे बड़ी वैश्विक शक्ति बन गया था. ब्रिटेन जो समुद्र की लहरों पर शासन करता था और जिसके साम्राज्य में कभी सूरज डूबता नहीं था की दहलीज़ पर ही सूरज डूबने लगा. उसके उपनिवेश आज़ाद होने लगे. इस लिए नहीं कि उसके ह्रदय में स्वतन्त्रता  के लिए ज्वार उमड़ आया था बल्कि इस लिए कि अब उपनिवेश पालना उसके लिए सम्भव नहीं रहा. लीग ऑफ़ नेशंस के स्थान पर संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ. अब इस्राइल और फिलिस्तीन का मामला उसके समक्ष प्रस्तुत हुआ.

द्वीतीय महायुद्ध के बाद फिलिस्तीन के भाग्य को लेकर यहूदियों और अरबों के बीच शत्रुता बहुत बढ़ गयी थी. ब्रिटेन ने अपने फिलिस्तीनी मैंडेट के प्रकरण को यू एन ओ को संदर्भित किया. उसे उम्मीद थी कि उसके प्रभुत्व को यू एन ओ मान्यता दे देगा. क्यों कि यूं एन ओ कोई और समाधान इस जटिल प्रकरण का ढूंढ ही नहीं पायेगा. ऐसी स्थित में फिलिस्तीन के ट्रस्टी शिप के रूप में ब्रिटेन का प्रभुत्व उस हिस्से पर बना रहेगा. यूं एन ने एक समिति का गठन किया और उसे मौके पर जा कर विवाद का हल ढूँढने का दायित्व सौंपा गया. इस दल में अनेक देशों के प्रतिनिधि शामिल थे. दल ने वस्तु स्थिति की जानकारी ली लेकिन सर्वसम्मति से किसी एक समाधान पर पहुँचने पर असमर्थ रही. लेकिन दल की बहुमत की राय यह बनी कि शांतिपूर्ण समाधान के लिए फिलिस्तीन को यहूदी और फिलिस्तीनी अरब हिस्से में बाँट दिया जाय. उन्हें लगा कि इस से इस क्षेत्र में शान्ति आ जायेगी और दोनों ही पक्ष संतुष्ट हो जायेंगे. 1946 के अंत तक 12,69,000 अरब और 6,08,000 यहूदी ब्रिटिश फिलिस्तीन मैंडेट में रहते थे. कुल भूभाग का 7% भाग यहूदियों ने खरीद लिया था जो कुल उपजाऊ भूमि का 20% था. 



29 नवम्बर 1947 को यू एन की जनरल असेंबली ने इस भाग को दो भागों में विभक्त करने के लिए मतदान किया. बंटवारे का जो मसौदा था उसके अनुसार दोनों ही हिस्से में दोनों ही समुदाय के लोगों की बस्तियां पड़ती थी. समुदाय के आधार पर बंटवारा सम्भव ही नहीं था. जो हिस्सा यहूदियों को मिलने वाला था उसमे भी सैकड़ों गाँव फिलिस्तीनी अरबों के पड़ते थे. और जो हिस्सा फिलस्तीन का होता वहाँ भी यहूदियों की आबादी आ रही थी. भूभाग के बंटवारे में 56 % भूभाग फिलिस्तिनो को और 43 % भुभाग यहूदियों को देने का प्रस्ताव था. इन भूभागों में जेरूसलम और बेथेलहम दोनों नगर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विशिष्टता के कारण सम्मिलित नहीं थे. वे अलग रखे गए. इसे यू एन ने अपने पास रख अन्तराष्ट्रीय नगर बनाने का यू एन का प्रस्ताव था.

यहूदियों के संगठन ने प्रत्यक्ष रूप से इस योजना से सहमति दिखाई लेकिन फिलिस्तीन की और ज़मीन कब्ज़ा करने की भी योजना वह बनाने लगा. उधर अरब जगत और फिलिस्तीनियों ने इस योजना का विरोध शुरू कर दिया. इसे उन्होंने महाशक्तियों षड्यंत्र और वादा खिलाफी कहा. उनका कहना था कि यू एन ने बहुत अधिक भूमि यहूदियों को आवंटित कर दी है जब कि उनकी जनसँख्या अरबों के तुलना में कम है. उन्होंने इसे ब्रिटेन के षडयंत्र के रूप में देखा जिसके प्रभुत्व के काल में यहूदियों के जत्थे के जत्थे आ कर यहाँ बसे और ज़मीने खरीदीं.

इस योजना से शान्ति तो आयी नहीं बल्कि विवाद और संघर्ष और बढ़ गया. लेकिन यू एन ओ ने यह विभाजन योजना जिसका विवरण ऊपर आ चूका है लागू कर दिया. अरब और फिलिस्तीनियों में तुरंत झडपें और युद्ध शुरू हो गया. अरबों की सेना बिखरी हुयी अप्रशिक्षित और आधुनिक नहीं थी लेकिन संख्या बल उनके पास था. इसके विपरीत यहूदी संख्या में कम होने के बावजूद अधिक रण कुशल और प्रशिक्षित थे. उन्होंने जो भूभाग उन्हें आवंटित था पर पूरा कब्ज़ा जमा लिया और अपने प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया. अप्रैल 1948 में यहूदियों ने अपने को आवंटित भूभाग से अधिक ज़मीन अरबों की भी कुछ सेक्टरों में छीन ली. उनकी आक्रामकता भी बनी रही.



15 मई 1948 को ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर से अपना कब्ज़ा छोड़ दिया और उसे खाली कर दिया. तब यहूदियों ने एक स्वतंत्र सार्वभौम और संप्रभु इस्राइल राज्य की स्थापना की घोषणा कर दी. इस नव घोषित राष्ट्र इस्राइल की सीमा पर मिश्र, सीरिया, इराक, और जॉर्डन थे. इन चारों अर्ब राज्यों ने मिल कर इस्राइल पर हमला कर दिया. उनका नारा था फिलिस्तीन को बचाओ. अरब जगत बिलकुल नहीं चाहता था कि एक नया राज्य यहूदियों का यहाँ बने. वे शुरू से ही इस के विरुद्ध थे. लेबनान ने भी युद्ध छेड़ने की घोषणा की थी पर वह बाद में युद्ध में नहीं उतरा. उपरोक्त चार राज्यों ने ही इस्राइल पर हमला किया. लेकिन इस कठिन वक़्त में इस्राइल की सहायता चेकोस्लोवाकिया ने किया. उसकी मदद से इस्राइल का हौसला बढ़ा और वह विजयी हुआ. यही नहीं उसने और फिलिस्तीनी इलाके भी जीत लिए. अब उसके पास यू एन ओ द्वारा आवंटित भूमि से अधिक भूभाग आ गया था.
1949 में यह युद्ध समाप्त हुआ. युद्ध की समाप्ति पर आर्मिस्टिस समझौता हुआ जिसके अनुसार पूरा भूभाग तीन हिस्सों में बंटा. तीनों अलग अलग राजनैतिक ईकाई बने. जो सीमा रेखा बनी वह आर्मिस्टिस लाइन कहलाई. ग्रीन लाइन भी कहा गया. अब जो भूभाग इस्राइल को मिला वह 77 % था, जब की यू एन ओ ने उसे 43 % आवंटित किया था. जॉर्डन को जेरूसलम का पूर्वी भाग मिला. मिश्र के प्रभाव में गाजा शहर को छोड़ कर उसका बाहरी भूभाग मिला जिसे गाजा पट्टी कहा जाता है. यू एन ओ ने फिलिस्तीन को बांटने की जो मूल योजना बनायी थी वह जस की तस रही. उस पर वह कोई अमल नहीं करा सका. विश्व पंचायत की यह एक विफलता ही कही जायेगी. 



फिलिस्तीनी शरणार्थियों की एक विकट समस्या खडी हो गयी. 1947, 1948, और 1949 में जो युद्ध हुए उनसे 7,00,000 फिलिस्तीनी शरणार्थी अपने घरों से बेघर हो गए. इस संख्या और उन कारणों पर विवाद खड़ा हो गया कि इतने शरणार्थी कहाँ से आये. फिलिस्तीनियों का तर्क था कि ब्रिटेन की शह पर, उसके मैंडेट के काल में जो यहूदी बाहर से आकर बसे उन्होंने इन्हें बेदखल कर दिया. उधर इस्राइल ने अपने अधिकृत बयान में इसे अरब को ही दोषी ठहराया. उसका तर्क था कि अरब राज्यों ने इस्राइल पर जब मिल कर हमला किया तो उनके उकसाने से ये फिलिस्तीनी अपना घर छोड़ आये और अब भटक रहे हैं. हालांकि इस्राइल सरकार के एक गोपनीय दस्तावेज़ में यह कहा गया है कि इस्राइल द्वारा जो यहूदी आन्दोलन या जियोनिस्ट आन्दोलन जो चला उस के कारण 75 % फिलिस्तीनी शरणार्थी बने. इस्राइल ने न केवल सैनिक अभियान चलाया था बल्कि ज़बरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव भी उसने फिलिस्तीनियों पर डाला था जिस से उनमें दहशत फ़ैल गयी थी और वे डर कर घर छोड़ गए. केवल एक महीने जुलाई 1948 में दो शहरों लिड्डा और रामले से जो शरणार्थी आये उनकी संख्या 50,000 थी. अरबों के आदेश पर जो संख्या सामने आयी है वह मात्र 5 % की है. इसके अतिरिक्त दस्तावेज़ बताते हैं कि कई सामूहिक नर संहार की घटनाये भी घटी जो यहूदियों द्वारा की गयी. इस से जो वातावरण फैला उस से लोगों ने घर द्वार छोड़ कर शरणार्थी बन गए. सामूहिक नर संहारों में एक उदाहरण फिलिस्तीनी गाँव दर यासीन का है, जहा दक्षिण पंथी ं यहूदियों के आतंकी संगठन ने 125 फिलिस्तियों की ह्त्या कर दी थी. 
क्रमशः
-vss.



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