प्रिय सांसदों,
आप
की ही बिरादरी के एक सज्जन को एक राज्य सदन का भोजन पसंद नहीं आया. आता भी कैसे, संसद और विधान भवन की
कैंटीनों का स्वाद भला बाहर कहाँ मिलता है ! उन्हें जो रोटी मिली वह झुलसी हुयी
थी. उन्हें क्रोध आया जो स्वाभाविक था. जब शक्ति का संचार बढ़ जाता है तो क्रोध
बहुत आता ही है. सो उन्हें भी आ गया. क्रोध तो वैसे भी विचारों का नाश कर देता है.
अतः उस भाग्य विधाता ने बिना बिचारे ही कैंटीन मेनेजर को बुलाया और उसे रोटी खिला
दी. खिला क्या दी ठूंस दी उस के मुंह में. वह हक्का बक्का रह गया. मित्र गण कह रहे
हैं कि उसने सही किया. तो मित्रों अब सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कुछ नियमानुकूल
कार्यवाही की बात करना छोडिये. जो भी सरकारी कर्मचारी अपना काम ठीक से न करे उसके
मुंह में कुछ न कुछ ठूंसने का नियम बना दीजिये. सच मानिए देश प्रगति पथ पर चल
पड़ेगा. न फ़ाइल खोलने का झंझट, न गवाही, न जिरह बस सीधे दंड.
वैसे भी सरकारी कर्मचारी बेलगाम तो हो ही गए है.
छोडिये और बातों को, इस सिलसिले को खाने
पीने तक ही सीमित रखें. देश भर के स्कूलों में मिड डे मील यानी बच्चों के सकूलों
में दोपहर के खाने की व्यवस्था सरकार करती है. लेकिन यह कितनी कारगर है, सभी को पता है. किसी
जगह, भोजन
में कीड़े निकल आते हैं तो किसी जगह सांप बिच्छू. कुछ बच्चे मर भी गए है. अखबारों
में खूब छपता है और फेसबुक तो आन्दोलन का गढ़ है ही. पुलिस मुकदमे भी कायम करती है.
लेकिन शिकायतें तो आती ही रहती हैं. आप सब के क्षेत्र में यह योजना चल ही रही
होगी. क्या आप उन स्कूलों का निरीक्षण कर, उस भोजन का स्वाद चखना
स्वीकार करेंगे ? कह
कर मत जाइएगा, अचानक
बिना बताये बिना किसी ताम झाम के जाइएगा. भोजन अगर अच्छा मिला तो कुछ इनाम दे
आइयेगा, आखिर
कौन सा आप को अपनी जेब से देना है. एम् पी फण्ड तो है ही. उसी में से कुछ उपकार कर
दीजियेगा. त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पिते ! आप का वोट ही बढेगा. हाँ
अगर भोजन आप के स्वादानुकूल न हुआ तो उस स्कूल के प्रधानाध्यापक को और जो इसका
इंतज़ाम देखता है, उसे
बुलाइयेग और जबरन जो बना है वैसे ही ठूंस दीजियेगा जैसा आप के गोल के एक सज्जन ने
एक सदन के मेनेजर के साथ किया था.
देखिये क्या प्रतिक्रिया
होती है. अच्छी भी होगी. इस से इलाके में आप का रोब ग़ालिब हो जाएगा और सच मानिए
कुछ स्कूलों का खान पान तो सुधर ही जाएगा. यह भी हो सकता है कि कुछ अध्यापक संगठन
हड़ताल पर उतर आयें. पर यह बात तो आप को बिलकुल गवारा नहीं होगी. आखिर चुनाव भी तो
लड़ना है. चुनाव में स्कूलों के अध्यापक किसी को जिता भले न पायें पर हराने का तो
माहौल बना ही देते है. लेकिन सदन का यह बेचारा कर्मचारी, विचारे महोदय का क्या
बिगाड़ सकता है. यही स्कूल होता तो देखते मान्यवरों.
अंत में अपने खाने पीने
का ध्यान ज़रूर रखियेगा. देश को कठिन परिस्तिथि से उबारना भी है. आप सब पर एक
गुरुतर दायित्व भी है. एक मल्टी परपज कूपन व्यवस्था भी आप सब शुरू कर सकते हैं जिस
से देश में जहां भी जिस भी रेस्तरां में आप जाएँ आप को आप के स्तर और स्वादानुकूल
भोजन भी मिल जाया करे. आखिर असीमित बिजली, फोन, रेल यात्रा और हवाई यात्रा
की सुविधा तो है ही. थोड़ा ही तो खर्च बढेगा. खर्च की चिन्ता छोडिय. खजाना खाली हो, भरा हो कोई बात नहीं, प्रभु, आप सब तृप्त रहें ! आज
यही मन में आया सोचा लिख दूं. शेष फिर कभी. आप सब सुखी और सानन्द रहें. और हाँ, मेरी बात पर ज़रा ध्यान
दीजियेगा.
आप का ही,
विजय शंकर सिंह
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