Saturday, 26 July 2014

इसराइल फिलिस्तीन संघर्ष एक ऐतिहासिक विवेचन.. 2........विजय शंकर सिंह



उन्नीसवीं सदी के समाप्त होते होते दुनिया भर के अधिकतर देशों में यूरोपीय देशों विशेषकर इंग्लैंड फ्रांस आदि कुछ देशों के उपनिवेश फ़ैल गए थे. भारत पूरी तरह से ब्रिटिश क्राउन के अधीन था. अफ्रीका पूरा का पूरा किसे न किसे गोरी महाशक्ति का उपनिवेश बन चुका था. यही स्थिति मध्य पूर्व के इस रेगिस्तानी भू भाग की भी हुयी.  भारत से इसकी दिशा पश्चिम है लेकिन यूरोप से यह मध्य पूर्व में ही आता है. उस समय जो शब्दावली थी, जैसे सुदूर पूर्व फार ईस्ट में मलेशिया, थाईलैंड कम्बोडिया आदि देश, पूर्व यानी ईस्ट में भारतीय उप महाद्वीप, और मध्य पूर्व यानी मिडिल ईस्ट में अरब के देश आते है. इंग्लैंड की गिद्ध दृष्टि इसी और लगी थी. अब इंग्लैंड का अरब में हस्तक्षेप शुरू हो गया था.

बीसवी सदी के आते आते अरब और फिलिस्तीन के इलाके यूरोपीय विस्तारवादी देशों के राजनैतिक महत्वाकांक्षा की दुरभिसंधि बन चुके थे. तब तक ओटोमन साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा था. उसके कमज़ोर पड़ने से यूरोपीय ताक़तें यहाँ जड़ जमाने लगी थीं. 1915 - 1916 में जब प्रथम विश्वयुद्ध चल ही रहा था कि मिश्र में, जो पहले से ही ब्रिटेन के प्रभुत्व में था नियुक्त ब्रिटिश हाई कमिश्नर सर हेनरी मक्मोहन ने अरब के हाशमाईट कबीले के सबसे महत्वपूर्ण सरदार और मक्का के गवर्नर हुसैन इब्न अली से गोपनीय रूप से वार्ता शुरू कर दी  मक्का का जो स्थान इस्लाम में है उसे देखते हुए यहाँ के गवर्नर की हैसियत आटोमान साम्राज्य में बहुत महत्वपूर्ण थी. फूट डालो और राज करो या उकसाओ, लड़ाओ फिर छोड़ कर खुद कब्ज़ा कर लो की नीति अंग्रेज़ों की घुट्टी में थी. इसी रणनीति के तहत मक्मोहन ने हुसैन को इस साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने को उकसाया. अँगरेज़ जानते थे कि साम्राज्य की हैसियत इतनी नहीं है कि वह अरबों का कुछ बिगाड़ सके. पीछे से उनका छल बल तो था ही. अंग्रेजों को भी आटोमान साम्राज्य से नाराज़गी थी. नाराज़गी का एक कारण इस साम्राज्य की जर्मनी से निकटता थी. जर्मनी इंग्लैंड का परम्परागत शत्रु तो था ही. उस समय जो प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था उसमे भी जर्मनी ब्रिटेन और फ़्रांस के खिलाफ लड़ रहा था. अंग्रेजों ने अरब के हुसैन इब्न अली को यह आश्वासन दिया कि वह अगर इस विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ देगा तो युद्ध की समाप्ति के बाद वे अरब को आटोमान साम्राज्य से मुक्त करा कर हाशमाईट कबीले का ही एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्ज़ा दिलवाएंगे. जिसके अंतर्गत फिलिस्तीन का भी क्षेत्र शामिल रहेगा. अरबों ने हुसैन के पुत्र फैज़ल और डी एच लारेंस, विश्व विख्यात अंग्रेज़ी फिल्म लॉरेंस ऑफ़ अरेबिया इसी के चरित्र पर बनी थीके नेत्रित्व में विद्रोह कर दिया. परिणामतः कमज़ोर पड़ता हुआ ओटोमोन साम्राज्य इस विद्रोह को कुचल नहीं पाया और अरब उस साम्राज्य से अलग हो गया. लेकिन वह स्वतंत्र नहीं हुआ. ब्रिटिश प्रभुत्व उस पर बरकरार रहा. ब्रिटेन ने अरब का बहुत सा भू भाग अपने कब्ज़े में कर लिया.

ब्रिटेन ने सर मक्मोहन के माध्यम से जो वादा अरबों से किया था, कि फिकिस्तींन उनका ही रहेगा इसे स्वीकार नहीं किया. 1917 में जब युद्ध चल ही रहा था तो ब्रिटेन और फ्रांस ने एक गोपनीय संधि की और इसके पूरा करने का दायित्व ब्रिटिश विदेश मंत्री लार्ड आर्थर बालफोर को सौंपा गया. लार्ड आर्थर वाल्फोर ने वाल्फोर घोषणा पत्र जारी किया. इस घोषणा पत्र में गोपनीय रूप से यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में एक राष्ट्रीय गृह जिसे अंग्रेज़ी में a jewish home in Palestine  का संकल्प कहा गया. का प्राविधान रखा गया  साथ ही ब्रिटेन और फ़्रांस ने साइक्स पिकोट संधि के नाम से एक गोपनीय समझौता किया जिस के अनुसार ओटोमन साम्राज्य से अलग हुए अरब प्रांत पर इन दोनों यूरोपियन ताक़तों का साझा नियंत्रण का प्राविधान था. ज्ञातव्य है तब तक तेल के भंडार का पता चल चुका था. 


युद्ध 1918 में समाप्त हो गया. दुनिया का स्वरुप बदल गया था. एक विश्व पंचायत की आवश्यकता महसूस होने लगी थी. लीग ऑफ़ नेशंस का गठन हुआ. ब्रिटेन और फ़्रांस इस लीग में अच्छी हैसियत में थे. उन्होंने अपने प्रभाव से विखर गए ओटोमन साम्राज्य के टुकड़ो को अर्ध औपनिवेशिक राज्य के रूप में रखने की बात कही. यह भी एक प्रकार की दासता ही थी. भारत की देसी रियासतें कहने के लिए ब्रिटिश राज्य के सीधे नियंत्रण में नहीं थी पर ब्रिटेन की मर्जी के बिना वे कोई निर्णय ले भी नहीं पाती थी. यही स्थिति यहां भी ये दोनों महा शक्तियां चाहती थी. इसे नाम दिया गया quasi colonoiol authorty. जिन जिन भू भागों पर फ़्रांस का कब्ज़ा हुआ वह फ्रेंच मैंडेट और जहां ब्रिटेन का प्रभुत्व हुआ वह ब्रिटिश मैंडेट कहलाया. इस तरन अरब का फिकिस्तीं भाग ब्रिटिश मैंडेट कहलाया. ब्रिटेन का मैंडेट इराक, आज का इजराइल , जॉर्डन नदी का पश्चिमी किनारा, वेस्ट बैंक, और गाजा पट्टी पर हुआ.

1921 में ब्रिटेन ने अपने मैंडेट के अंतर्गत आये हुए हिस्से को दो भागों में बांटा. एक भाग जो जॉर्डन नदी के पूर्वी किनारे का था को ट्रांस जॉर्डन का अमीरात और दूसरा जो जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे का भू भाग था, वह फिलिस्तीनी मैंडेट कहलाया. ट्रांस जॉर्डन अमीरात का शासन फैज़ल जिसके नेत्रित्व में अरब विद्रोह हुआ था के भाई अब्दुल्ला को सौंपा गया. इस प्रकार इतिहास में पहली बार फिलस्तीन एक राज्य ईकाई के रूप में विश्व के मानचित्र पर आया.

आप को याद दिला दूँ, जब अरबों ने ब्रिटेन के कहने पर ओटोमन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था तो, ब्रिटेन ने उन्हें स्वतंत्र सार्वभौम और संप्रभु राष्ट्र बनाने का वादा किया था. पर राजनीति और कूटनीति में वादों का कोई मूल्य नहीं होता. इसके विपरीत ब्रिटेन और फ़्रांस ने पूरे अरब राज्य को ही आपस में बाँट लिया. इस की अरब जगत में बहुत ही विपरीत प्रतिक्रिया हुयी. उन्होंने इसे अरबों के स्व निर्णय के अधिकार का हनन माना. उधर फिलिस्तीन में स्थितियां और विपरीत हो रही थी. एक तरफ ब्रिटेन ने यह वादा किया था कि वह यहूदियों को इजराइल में उनका अपना राष्ट्र बनवाने के लिए वचन बद्ध है. दूसरी तरफ पूरा फिकिस्तीन इजराइल के राज्य को अपने भूभाग पर अतिक्रमण मान रहा था  उधर यूरोप और अमेरिका में फैले यहूदियों के परिवारों ने फिलिस्तीन के इस क्षेत्र में ज़मीने खरीदना और प्रवास करना शुरू कर दिया. इस का विरोध फिलिस्तीनी किसानों , पत्रकारों और नेताओं ने करना शुरू कर दिया. धीरे धीरे यहूदी बनाम फिलस्तीनी लोगों में तनाव और यदा कदा हिंसक झडपें भी होने लगी. फिकिस्तींनियों को लगा कि यहूदियों का यह आगमन और प्रवास अंततः एक यहूदी राज्य की नीव ही बनेगा  उनकी यह आशंका सच ही थी. उधर अरब ब्रिटश मैंडेट के विरुद्ध थे ही. उन्होंने फिलिस्तीनियों का खुल कर समर्थन करना शुरू कर दिया. ब्रिटेन का ज़बरदस्त विरोध भी होने लगा.

1920 -1921 में अरब और यहूदियों के बीच खुला संघर्ष हुआ. जिसमें दोनों तरफ से जन हानि हुयी. यहूदियों ने जेविश नॅशनल फंड के नाम से एक कोष स्थापित कर रहा था. दुनिया भर के संपन्न यहूदी इसे धन दे कर समृद्ध कर रहे थे. यह फंड सामूहिक रूप से अरबों की ज़मीनें खरीद कर यहूदियों को बसा रहा था. यहूदियों का बसना और अरबों का विस्थापित होना शुरू हो चूका था. इस से तनाव बढ़ा और अरबो और यहूदियों के बीच हिंसक घटनाएँ भी बढ़ने लगीं. 


1928 को मुस्लिमों और यहूदियों के बीच अब धर्म का एंगल जो अब तक छुपा हुआ था खुल कर सामने आ गया. जेरूसलम में यहूदियों की प्रसिद्द वेलिंग वाल है. यह उनके लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना मुस्लिमों के लिए काबा. यह एक यहूदी मंदिर का भग्नावशेष है. और यहूदी धर्म का सबसे पवित्र स्थान है. इसी स्थान के ऊपर टेम्पल माउंट है. इतिहास में दो इजराइली यहूदी मंदिरों की बात की जाती है. लेकिन दूसरे मंदिर के पुरातात्विक प्रमाण तो मिलते हैं लेकिन पहले मंदिर का ज़िक्र केवल आख्यानों में है. इनका कोई अन्य श्रोत पुष्टि नहीं करता है. यह स्थान मुस्लिमों के लिए भी मक्का, मदीना के बाद सबसे पवित्र माना जाता है. यहाँ अल अक्सा मस्जिद है. मान्यता यह है कि हजरत मुहम्मद यहीं से एक श्वेत अश्व जिस का नाम अल बुराक है पर सवार हो कर स्वर्ग गए थे. अल बुराक एक काल्पनिक अश्व है जिसके दोनों और पंख थे. इन्ही के सहारे वह उड़ता था  इस प्रकार यह भी एक विवाद का कारण बना 


यहूदियों का एक युवा संगठन भी सक्रिय था. इसका नाम बेतर जेविश यूथ मूवमेंट था. इसने 15 अगुस्त 1929 को उस पवित्र वाल पर यहूदियों का राध्त्रिय ध्वज फहरा दिया. इसकी ज़बरदस्त प्रतिक्रिया अरबों में हुयी. उन्होंने जेरूसलम, हेब्रोन, और सफ़ेद नगरों में जो यहूदी आबादी थी उस पर हमला कर दिया. इस साम्प्रदायिक हिंसा में हेब्रोन में 64 यहूदी मारे गए. हालांकि कईयों को उनके मुस्लिम पड़ोसियों और मित्रों ने बचाया भी. एक सप्ताह तक चले इस दंगे में 133 यहूदी, और 115 अर्ब मारे गए. सैकड़ों घायल हुए.

तब तक यूरोप के इतिहास में घटना कर्म तेज़ी से फ़ैल रहा था. जर्मनी में हिटलर का उदय हो चूका था. उसने यहूदियों पर अत्याचार भी शुरू कर दिए थे. परिनापतः यहूदियों का विश्वव्यापी पलायन शुरू हुआ. बहुत से यहूदियों ने फिलिस्तीन की और रुख किया. यह घटना 1933 की है. 1936 -1939 में अरब जो ब्रिटिश मैंडेट के पहले से खिलाफ थे अब सीधे आन्दोलन और सशत्र विद्रोह पर उतर आये. इस विद्रोह को दबाने में यहूदी संगठनों ने खुल कर ब्रिटेन का साथ दिया. यह विद्रोह दबा भी दिया गया. अब अंग्रेजों ने फिर पलटी मारी. उन्होंने 1939 में एक श्वेत पत्र जारी किया . यह पत्र अंग्रेजों की अरब नीति के सम्बन्ध में रहा. इस श्वेत पत्र में निम्न बातें थीं. 
1,
यहूदियों द्वारा फिलस्तीनी क्षेत्र में भूमि खरीदने पर रोक लगाने और उनके आगमन को नियंत्रित करने, 
2,
दस साल में फिलस्तीन को आज़ाद करने, 
का उल्लेख था  
यहूदियों ने इसे विश्वासघात माना। उन्होंने इसे वाल्फोर घोषणा पत्र जिस मे यहूदियों कों एक स्वतंत्र गृह राज्य देने का वादा किया गया था के बिलकुल विपरीत इस श्वेत पत्र को माना. लेकिन इस के बाद ही यहूदियों और ब्रिटेन का आपसी तालमेल और गठबंधन सनाप्त हो गया.  अरबों को भी नुकसान हुआ और वे कमज़ोर हो गए. फिलिस्तीन एक बिखरे हुए राज्य के सामान उभरा.

प्रश्न उठता है, ब्रिटेन ने किस कारण अरबों की तरफ अपना झुकाव किया और यहूदियों से वचन भंग किया ? कारण स्पष्ट है. तेल का भंडार और इस की आर्थिक ताक़त. आखिर सर्वे गुणा कांचन माश्रयन्ति  !! 
-vss.
क्रमशः


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