Friday 10 November 2023

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, कंप्यूटर, मोबाइल आदि की जांच एजेंसियों द्वारा की जा रही जब्ती और जांच के बारे में, सुप्रीम कोर्ट में दायर ड्राफ्ट दिशा निर्देश / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट में, राम रामास्वामी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के नाम से दायर एक याचिका में, पांच शिक्षाविदों, जिन्होंने जांच एजेंसियों द्वारा व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती के लिए, सुप्रीम कोर्ट से, दिशानिर्देश की मांग करते हुए, याचिका दायर की है, ने दिशानिर्देशों का एक ड्राफ्ट भी तैयार किया है और उस ड्राफ्ट को, शीर्ष कोर्ट के विचारार्थ सौंप भी दिया है। 

9 नवंबर, 2023 को यह याचिका, सुनवाई हेतु, जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की बेंच के सामने, जब पेश की गई, तो, शीर्ष कोर्ट ने वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन को इन दिशानिर्देशों को संघ और राज्यों को, भेजने का भी निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि, दो दिन पहले फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से दायर याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के डिजिटल डिवाइस जब्त किए जाने पर चिंता जताई थी और केंद्र से कहा था कि, इस मामले मे, बेहतर दिशानिर्देशों को लागू करने की जरूरत है, ताकि किसी भी प्रकार का उत्पीड़न रोका जा सके। यह दोनों याचिकाएं अब 5 दिसंबर को, सुनवाई के लिए निर्धारित की गई हैं।

इन ड्राफ्ट दिशानिर्देशों को, याचिकाकर्ताओं की तरफ से, एडवोकेट एस प्रसन्ना द्वारा, दायर किया गया है। मसौदा दिशानिर्देशों की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं, इस प्रकार हैं...

1. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती, न्यायिक वारंट, हासिल करने के बाद ही होनी चाहिए। 
न्यायिक वारंट प्राप्त न करने के कारणों को दर्ज करते हुए आपातकालीन जब्ती एक अपवाद रूप में ही होनी चाहिए।  
हालाँकि, किसी भी मामले में, यह भी "स्पष्ट रूप से" निर्धारित किया जाना आवश्यक है कि डिवाइस को क्यों और किस क्षमता में जब्त करना आवश्यक है।

2. इस आधार पर जब्ती की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि सबूत मिल सकते हैं।  याचिकाकर्ताओं ने समझाया, "दूसरे शब्दों में, सबूत मिलने के अनुमान पर जब्ती किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होगी, खासकर जहां डिवाइस किसी आरोपी व्यक्ति का नहीं है।"

3. विशेषाधिकार प्राप्त, पेशेवर, पत्रकारिता, या शैक्षणिक सामग्री को आपातकालीन जब्ती से बाहर रखा जाना चाहिए।  इसकी अनुमति केवल न्यायिक वारंट के माध्यम से ही दी जाएगी और केवल तभी जब सामग्री सीधे अपराध से जुड़ी हो।  
“यदि इरादा ऐसी विशेषाधिकार प्राप्त, पेशेवर, पत्रकारिता, या शैक्षणिक सामग्री की खोज करना है, तो यह केवल न्यायिक वारंट द्वारा और इस आधार पर होना चाहिए कि उक्त सामग्री सीधे तौर पर जांच के तहत अपराध का हिस्सा है, न कि केवल उसी का सबूत है।”

० उपकरणों/सामग्री की खोज, प्रतिधारण और वापसी

उपकरण को जब्त करने के तुरंत बाद, उसे एक स्वतंत्र एजेंसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।  सभी सामग्री (अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त) की पहचान की जाएगी।  इसके अलावा, संबंधित सामग्री को अलग कर दिया जाएगा जिसके बाद संबंधित सामग्री की एक प्रति ली जाएगी।  उसके तुरंत बाद डिवाइस वापस कर दिया जाएगा. 
इसके अलावा दिशानिर्देश यह भी स्पष्ट करते हैं कि किसी भी अन्य बहिष्कृत सामग्री को अपने पास नहीं रखा जाएगा।

ड्राफ्ट दिशानिर्देश के अनुसार...
“एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच में, डिवाइस के मालिक (या उनके एजेंट) की उपस्थिति में, सभी अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री की अलग से पहचान की जाती है, जांच के लिए प्रासंगिक सामग्री का सीमांकन किया जाता है और केवल ऐसी प्रासंगिक सामग्री की एक प्रति रखी जायेगी। इस प्रकार, जब्ती से बाहर रखी गई अप्रासंगिक, विशेषाधिकार प्राप्त या व्यक्तिगत सामग्री को बरकरार नहीं रखा जाना चाहिए, और जांच या संदिग्ध सामग्री के लिए केवल प्रासंगिक सामग्री की एक प्रति लेने के बाद डिवाइस को तुरंत, जिनसे जब्त किया गया है, वापस कर दिया जाना चाहिए।"

० मालिकों को पासवर्ड देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता

तलाशी और जब्ती की स्थितियों में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मालिकों को अपना पासवर्ड देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जब तक कि वे धारा 69 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 जैसे वैधानिक प्रावधानों के तहत ऐसा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य न हों।

इस विंदु पर, ड्राफ्ट दिशानिर्देश कहता है..
“जिस व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खोजा/जब्त किया जाना है, उसे किसी भी क्रेडेंशियल या पासवर्ड या जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, जिसमें किसी भी क्लाउड-संग्रहीत जानकारी भी शामिल है।
सिवाय इसके कि, उदाहरण के लिए वैधानिक रूप से निर्धारित है कि, धारा 69 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 यदि और जब लागू हो।
इसके अतिरिक्त, सेवा प्रदाताओं/मध्यस्थों से जानकारी प्राप्त करने वाले कानून उन कानूनों में उचित परिस्थितियों में लागू हो सकते हैं।"

यह भी निर्दिष्ट किया गया था कि 
"पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को पेश करने के लिए नहीं बुलाया जाएगा, चाहे वह गवाह के रूप में हो या आरोपी के रूप में"।

० जांच अधिकारी के कर्तव्य के संबंध में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि...

“सभी परिस्थितियों में, यह जांच अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करे और मालिक को समय पर (उपकरण) लौटा दे, या किसी अदालत या अन्य प्राधिकारी (जहां मालिक नहीं मिल सकता है) को सुरक्षित रूप से, उसे सौंपना सुनिश्चित करें ताकि, प्रतियां सुनिश्चित की जा सकें। इस तरह की सूचना में, किसी भी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा प्रवेश नहीं किया जायेगा।"

अंत में इस बात पर भी जोर दिया गया कि यदि इन बुनियादी सावधानियों का पालन नहीं किया गया तो, आरोपी व्यक्ति के खिलाफ ऐसी सामग्री का उपयोग नहीं किया जाएगा।
ड्राफ्ट में आगे है,
"जहां इन बुनियादी सावधानियों को बनाए नहीं रखा गया है, ऐसी सामग्री का उपयोग किसी भी अदालत में या किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ या किसी भी तरह से नहीं किया जाएगा।"

इधर हाल में जिस तरह से, ईडी, सीबीआई और पुलिस सहित अन्य जांच एजेंसियों द्वारा, विभिन्न पत्रकारों, समाज के अन्य उन लोगों, के यहां छापे डाल कर, उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे, लैपटॉप, मोबाइल, आदि जांच एजेंसी द्वारा जब्त कर लिये जा रहे हैं और उन उपकरणों में संग्रहीत सामग्री, कितनी जांच एजेंसी के उपयोग की है और कितनी उस व्यक्ति की निजी सामग्री है, का कोई विवरण, जांच एजेंसी न तो तैयार करती, है और न ही किसी तरह का कोई सर्च मेमो, फर्द आदि, तैयार कर के, आरोपी या गवाह या वह व्यक्ति जिससे, उसका इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किया जा रहा है, को इस बारे में बताती है, जिसे लेकर, इस ड्राफ्ट दिशानिर्देश की जरूरत महसूस की जा रही है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संदर्भ में, सरकार को दिशानिर्देश निर्धारित करने का निर्देश भी दिया था। 

फर्द उपकरण का तो तैयार किया जाता है, पर उस उपकरण में, कौन सी सामग्री, आपत्तिजनक और जांचतलब है, इसका कोई सर्च मेमो तैयार नहीं किया जाता। यह दिशा निर्देश यही स्पष्ट कर रहे हैं कि, उनका भी सर्च मेमो तैयार कर, आपत्तिजनक सामग्री की कॉपी तैयार कर, उसे भी, उपकरण सहित, आरोपी को सौंप दिया जाय, जिससे उन सामग्री का कोई दुरुपयोग न हो सके। 

होता यह है कि, आपत्तिजनक और गैरकानूनी सामग्री, लेख, फोटो, ऑडियो, वीडियो या कुछ और भी, की तलाश में, जब जांच एजेंसियां छापा मारकर जब्ती करती हैं तो, वे ये उपकरण तो जब्त कर लेती हैं, पर उनके अंदर क्या क्या सामग्री संग्रहीत है, और क्या क्या, उनकी जांच से जुड़ी है और क्या क्या आरोपी की निजी है का कोई मेमो तैयार नहीं करती हैं। यहीं यह भी संदेह उठता है कि, बाद में कोई आपत्तिजनक सामग्री, जो वास्तव में, उक्त उपकरण में रही ही न हो, और उसे बाद में प्लांट कर दिया गया जाय, और ऐसी सामग्री भी हो, जिसका आरोपों से कोई सरोकार भी न हो, और उक्त आरोपी की निजी सामग्री हो। 

ऐसी स्थिति में, सुबूतों के प्लांट करने, सुबूतों से छेड़छाड़ करने, और आरोपी की निजता को भंग करने का अक्सर आरोप भी जांच एजेंसी पर लगता रहता है। यह आरोप सच भी हो सकते हैं, और मिथ्या भी, साथ ही जांच एजेंसी, इनका दुरुपयोग भी कर सकती है। इस लिए, जांच प्रक्रिया में, पारदर्शिता हो, और, आरोपी को यह स्पष्ट रूप से एक सर्च मेमो या फर्द द्वारा, यह लिखित रूप में अवगत करा दिया जाय कि, उसके उपकरण से, कौन कौन सी सामग्री जांच तलब पाए जाने पर, जब्त की जा रही है। इसी आरोप, प्रत्यारोप, दुरुपयोग, उत्पीड़न और पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए, इस तरह के दिशानिर्देश का ड्राफ्ट तैयार कर, याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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