Monday 16 July 2018

कासगंज - सुरक्षा के घेरे में दलित की बारात - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

यह खबर कासगंज की है। वहां एक दलित जाति के दूल्हे की इच्छा थी कि उसकी बारात कस्बे से घोड़े पर चढ़ कर निकले। लेकिन इलाके के दबंग ठाकुरों ने इस पर ऐतराज किया। काफी रस्साकशी के बाद पुलिस ने बरात निकालने और दूल्हे को घोड़े पर चढ़ कर जाने की अनुमति दी। और फिर बारात निकली।

एक दलित युवक को जब इतनी कड़ी सुरक्षा में घोड़े पर चढ़ कर बरात ले जाना पड़े तो समझ लीजिए धर्म सड़ और ग़ल चुका है।  अभी धर्म के स्वयम्भू ठेकेदार आएंगे और वेद से लेकर विवेकानंद तक के उद्धरण सुना जाएंगे कि इस महान और उदार धर्म मे जाति प्रथा तो है ही नहीं, अस्पृश्यता तो खत्म हो गयी, अब सब बराबर हो गए। ब्राह्मण और दलित एक साथ पंगत में बैठ गए। कुछ मुझ पर भी आलोचना के बाण फेंकेंगे पर यह घटना धर्म और मेरे सजातीय समाज के लिये डूब मरने जैसी है। अखबारों में छपा है ठाकुरों ने दरवाज़े बन्द कर लिये। घरों में दुबक गये। ऐसी स्थिति आयी ही क्यों। घोड़े पर बैठने का विशेषाधिकार, आप ही का क्यों है ? धर्म की किस पुस्तक संदर्भ में यह लिखा है कि घोड़े पर दलित या शूद्र नहीं बैठ सकता है ?

यह भी कहा जा रहा है कि दलित जानबूझकर कर उस रास्ते से बरात ले जाना चाहते थे। बरात कोई धार्मिक जुलूस नहीं है कि थाने के त्योहार रजिस्टर में उसका रास्ता तय किया गया हो। किसी को भी सार्वजनिक मार्ग से अपनी बारात निकालने का अधिकार है। यह बात आपस मे बैठ कर कुछ समझदार लोग बातचीत से हल कर सकते थे। लेकिन पुलिस और एसडीएम को दखल देना पड़ा। सरकार के हस्तक्षेप के बाद यह बारात निकाली।

आज दरवाज़े बंद कर मुंह छुपा आप यह कुढ़ते हुये देख रहे हैं कि सुरक्षा घेरे में ही सही, दलित की बारात निकल रही है । कासगंज के ठाकुरों का यह आचरण क्षात्र धर्म जिसके लिये हम गर्वोंन्नत हो अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं के सर्वथा विपरीत है। बदलते समय के अनुसार अगर समाज नहीं बदलता है तो वह जड़ हो जाता है। जड़ता मृत्यु है।

सरकार और पुलिस ने पूरी तन्मयता के साथ यह बरात निकाली । सरकार को बधाई। मुख्यमंत्री जी जिस पंथ के प्रमुख हैं, वह तो वैसे भी जाति पाति की बंधन से मुक्त है। किसी के उत्सव में शरीक हो जाना खुद को तो आनन्दित करता ही है बल्कि जिसका आयोजन है उसकी भी प्रसन्नता द्विगुणित हो जाती है। कासगंज में जातिगत सद्भाव का एक अवसर वहां के ठाकुर समाज के कुछ अदूरदर्शी लोगों ने अपनी मूर्खता से खो दिया। अब जो एक खटास समाज मे फैल गयी है, उसे दूर करना लंबे समय तक संभव नहीं हो पायेगा।

© विय शंकर सिंह

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