अशोक कुमार पांडेय के एक लेख के अनुसार, आज़ाद हिंद फ़ौज के लोगों को गोपनीय तरीक़े से कोर्ट मार्शल किया जा रहा था। पटेल को पता चला तो गांधी से कहा। गांधी ने लॉर्ड वेवेल को लिखा,
" यह मैं इस भय के साथ लिख रहा हूँ कि सम्भव है मैने अपनी सीमा क्रॉस की हो। मै श्री सुभाष बाबू द्वारा बनाई गई सेना के लोगों के मुक़दमे को देख रहा हूँ। हालाँकि मैं किसी सशस्त्र विद्रोह के साथ नहीं हो सकता लेकिन मैं अक्सर सशस्त्र लोगों के शौर्य और साहस की तारीफ़ करता हूँ...भारत इन लोगों की प्रशंसा करता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार के पास असीम ताक़त है। लेकिन अगर पूरे देश की राय के ख़िलाफ़ इसका प्रयोग किया गया तो यह ताक़त का दुरुपयोग होगा। यह मेरा काम नहीं है कि बताऊँ कि क्या किया जाए...लेकिन जो किया गया वह ग़लत है।"
बाद में नेहरू की पहल पर आई एन ए डिफ़ेंस कमेटी बनी जिसमें भूलाभाई देसाई और आसफ़ अली जैसे कांग्रेसी वकील शामिल हुए। मुक़दमा तो नहीं जीत सके वे लेकिन जनदबाव में आम माफ़ी दी गई। वे गांधी से मिलने आए और ‘क़दम क़दम बढ़ाए जा’ सुनाया।
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फ़ोटो में जो आज़ाद हिंद फौज के सेनानी उपस्थित हैं उनके बारे में शुभम शर्मा बता रहे हैं।
" इस तस्वीर में बाएं से दाएं सबसे पहले मेजर एडी जहांगीर, दूसरे नंबर वाले मैं पहचान नहीं कर सकता, तीसरे नंबर पर कर्नल हबीब उर रहमान, चौथे नंबर पर कर्नल मेहर दास, पांचवे स्थान पर कर्नल इनायत कियानी साहब जो गांधी ब्रिगेड के कमांडर थे और अंत में वायलिन बजाते हुए कैप्टन राम सिंह ठकुरी..
ये फोटो दिनांक 20 जून 1946 का है।
कर्नल हबीब उर रहमान साहब बादमें पाकिस्तान चले गए थे और ब्रिगेडियर रहे थे आज़ाद कश्मीर फोर्सेस के भीमबेर, कोटली वाले सेक्टरों में, वे बादमें पाकिस्तान के एडिशनल डिफेंस सेक्रेटरी पद से सेवानिवृत्त हुए।
कर्नल इनायत कियानी के चचेरे भाई मेजर जनरल ज़मान कियानी थे जो कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बाद पूरी आज़ाद हिन्द सरकार व आज़ाद हिन्द फौज के सबसे महत्वपूर्ण शख़्स थे, वे आज़ाद हिन्द फौज की पहली डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग भी थे।
जनरल कियानी ने ही सन 1947 में कश्मीर पर हमले के लिए पूरी सेना का नेतृत्व किया था।
वे मेजर जनरल पद पर पाकिस्तानी सेना में आज़ादी के बाद रहे थे, वे भारतीय मिलिट्री एकेडमी से प्रथम भारतीय थे जिन्हें स्वॉर्ड ऑफ ऑनर मिला था।"
( विजय शंकर सिंह )
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