आज दो खबरें सुबह सुबह मिली। पहली खबर कोरोना आपदा से सबंधित और दूसरी खबर, देश की आर्थिकी यानी इकोनॉमी से जुड़ी खबर है। कोरोना में भारत अब केवल अमेरिका से नीचे है और अब भी संक्रमण की गति थमी नहीं है। अमेरिका, ब्राजील और भारत मे लम्बे समय से कोरोना संक्रमण को लेकर दुनियाभर में चिंता जताई जाती रही है, पर तीनों ही देशों ने इस आपदा से निपटने में अपनी नाकामी ही दिखाई है। तीनो ही देशों के सत्ता प्रमुखों ने यदा कदा कोरोना का मज़ाक़ ही उड़ाया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे शुरुआत में बिल्कुल गम्भीरता से नहीं, ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो बेहद संवेदनहीन दृष्टिकोण अपनाया और भारत ने इस पर नियंत्रण के लिये समय से उचित कदम नहीं उठाए और इस महामारी के बजाय, सरकार ने अपने दलीय एजेंडे को अधिक प्राथमिकता दी।
अमेरिका एक सम्पन्न देश है। उनका स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर है और आबादी अपेक्षाकृत कम है फिर भी, वह इस आपदा से हर तरह से जूझते रहने के बावजूद अभी तक खतरे के बाहर नहीं आ पाया है। जो खबरें अमेरिका से मिल रही हैं, उसके अनुसार, वहाँ भी कोरोना से संक्रमित लोगो मे अश्वेत और भारतीय मूल के ही नागरिक अधिक हैं। इस आपदा का असर, अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। लेकिन, बाजार में तरलता बनी रहे और अर्थव्यवस्था मंथर गति से ही सही, चलती रहे, इसलिए अमेरिका अपनी आर्थिकी को डूबने से बचने के लिये हर नागरिक को 1200 डॉलर और बच्चों को 500 डॉलर प्रतिमाह दे रहा है। ब्राजील और भारत, अमेरिका की तुलना में आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर देश हैं तो इनके सामने समस्याएं दूसरी हैं।
भारत मे कोरोना की क्रोनोलॉजी पर एक नज़र डालते हैं।
● 31 जनवरी 2020 को केरल में पहला कोरोना का मामला मिला था। यह मामला विदेश से आने वाले एक यात्री से जुड़ा था।
● 24 से 25 फरवरी तक सरकार नमस्ते ट्रम्प करती रही। यह कार्यक्रम, अहमदाबाद और दिल्ली में सम्पन्न होता रहा।
● बाहर यानी विदेशों से लोग आते जाते रहे। कहीं कही एयरपोर्ट पर, चेकिंग की गयी तो कहीं कही नहीं की गयी।
● वीआइपी समझे जाने वाले लोगों के बच्चे और परिवारीजन बहुधा बिना चेक कराये ही यहां वहां देश मे घूमते रहे।
● 13 मार्च को स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं, कोरोना आपदा से देश को कोई बड़ा खतरा नहीं है औऱ न ही अभी कोई हेल्थ इमरजेंसी है।
● मार्च के दूसरे तीसरे हफ्ते में मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस चलता रहा। यह ऑपरेशन विधायकों की खरीद फरोख्त का अंग्रेजी नाम है। यह धन पूंजीपति उपलब्ध कराते हैं और सरकार इसके बदले अपने संसाधन बेचती है। आप इसे सभ्य भाषा मे निजीकरण कह सकते हैं।
● 22 मार्च को एक दिन के थाली ताली मार्का लॉकलाउन की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री जी टीवी पर प्रगट होते हैं। मुझे उनकी इस अदा पर, संस्कृत नाटकों का सूत्रधार याद आ जाता है।
● 23 तारीख को दिन भर पर्व की तरह से पूरा देश घरों में रहता है, और शाम को ताली थाली, घंट, शंख और घड़ियाल,, लोग उप्लब्धतानुसार कहीं कहीं घरों की छत और बालकनी पर, तो कहीं सड़कों पर निकल कर लोग बजाते हैं।
● 25 मार्च से 14 दिन का लॉक लाउन शुरू होता है। इसे भी एक मास्टरस्ट्रोक कहा जाता है। कहा गया कि, इससे कोरोना की चेन टूट जाएगी। पर कोरोना तो हम सबसे शातिर निकला।
● फिर शुरू हुआ, 21 दिनी लॉक डाउन 8 अप्रैल। लॉक डाउन में लगातार रहने का विपरीत असर लोगों पर पड़ना शुरू हुआ। तब तक यूट्यूब से सीख सीख कर पाक कला के विभिन्न प्रयोग से लोग ऊबने लगे ।
● फैक्ट्रियां बंद, दुकानें बंद, बाजार बंद, कारोबार ठप। कामगार सड़क पर आ गए और फिर शुरू हुआ सदी का सबसे बड़ा पलायन। पैदल, साइकिल, जो भी साधन मिला लोग अपने अपने घरों की ओर चलने लगें। सरकार बेबस, सुप्रीम कोर्ट चुप, लोग टीवी पर व्यस्त पर कुछ साहसी संगठन इस पलायन में सड़को पर उतरे और मदद देनी शुरू की।
● सरकार ने कहा कि लॉक डाउन की अवधि का वेतन कम्पनी मालिक देंगे।
● पर कंपनी मालिक अदालत चले गए और अपनी जेबें उलट दीं। सरकार ने भी अपना सुर कम्पनी मालिको के सुर में सुर मिला कर अपना आदेश वापस ले लिया।
● लॉक डाउन 1, 2 और 3 चलता रहा और कोरोना भी उसी के समानांतर चलता रहा। पटरी पर लुढ़कती अर्थव्यवस्था भी पटरी के किनारे चलते चलते बेपटरी हो गयी।
फिर आया 20 लाख करोड़ का भारी भरकम पैकेज। एक दिन प्रधानमंत्री ने 4 दिन वित्तमंत्री ने इसके गुण गाये। उधर कोरोना हमारे निकम्मेपन, लापरवाही और मूर्खता पर हंसता रहा और बढ़ता रहा। 80 लाख की आबादी को सरकार ने गेहूं, चना देने की भी घोषणा की। 2000 ₹ नकद भी दिए। इस आपदा में, 2 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गयी। जीडीपी माइनस ( - ) 23.4% पर आ गयी। पर कोरोना का संक्रमण नहीं थमा तो नहीं थमा। आज की स्थिति में संक्रमण में भारत, विश्व मे, दूसरे नम्बर पर है। अब भी हम, कोरोना के बढ़ते आंकड़ो के जवाब में, बस यह कह कर टीवी की खबरें देखने लगते हैं कि, रिकवरी रेट अच्छी है और नृत्यु दर कम। हमारा यह आशावाद आगे भी बना रहे।
भारत की अर्थव्यवस्था के गिरने का क्रम कोरोना के समय से नहीं, बल्कि 2016 की नोटबन्दी के बाद से ही शुरू है। 31 अगस्त को जीडीपी के नए आंकड़े जारी होने के बाद ही आईएएफ, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने एक ग्राफ के द्वारा, जून 2020 के दौरान जी 20 देशों के जीडीपी यानि आर्थिक विकास दर की तुलना की। उस ग्राफ में सबसे नीचे भारत का नाम है। इस ग्राफ में अप्रैल से जून के दौरान लॉकडाउन वाले पीरियड में भारत के आर्थिक विकास दर – 25.6 फीसदी ( नेगेटिव) रहा। जबकि जी -20 के दस्यों देशों में एकमात्र देश चीन है जिसका आर्थिक विकास दर पॉजिटिव और डबल डिजिट 12.3 फीसदी रहा है। अन्य सदस्य देशों के इस अवधि में आर्थिक विकास दर के आंकड़ें पर गौर करें तो अमेरिका का आर्थिक विकास दर -9.1 फीसदी, इटली का –12.8 फीसदी, जापान का -7.8 फीसदी रहा है।
गीता गोपीनाथ ने इसके बाद जो ट्वीट किया, उसमे कहा है कि, जी -20 देशों का आर्थिक विकास दर एतिहासिक रूप से नीचे लुढ़का है। उनके मुताबिक पहली तिमाही में चीन का आर्थिक विकास दर बहुत लुढ़क गया था, लेकिन दूसरी तिमाही में उसने शानदार वापसी की। गीता गोपीनाथ ने उम्मीद जाहिर किया कि जुलाई से सितंबर के बीच की तीसरी तिमाही ( भारत के लिये दूसरी) में जी – 20 देशों के आर्थिक विकास दर में निचले स्तर से बेहद सुधार होगा। हालाकि फिर भी कुल मिलाकर ये नेगेटिव जोन में ही रहेगा।
आईएमएफ की इस प्रतिक्रिया के बाद, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने जो आकलन जारी किया है वह भी कोई बहुत अधिक उम्मीद नहीं जगाता है। मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने भारत को सर्वाधिक कर्ज बोझ वाली अर्थव्यवस्था होने की संभावना जताई है। उसके अनुसार, 2021 तक भारत उभरते बाजारों में सबसे अधिक कर्ज बोझ वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होगा। यह संभावना ऐसे समय में जताई गई है, जब कोरोना लॉकडाउन से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि
" कोरोना वायरस महामारी के कारण आर्थिक वृद्धि और राजकोषीय गणित का बड़े उभरते बाजारों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव होगा। इस कारण अगले कुछ सालों तक उनका कर्ज बोझ काफी ऊंचा होगा। उभरते बाजार की अर्थव्यवस्थाओं में बढ़े प्राथमिक घाटे की वजह से उनका कर्ज बोझ 2019 के मुकाबले 2021 तक 10 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। इनमें से कुछ पर ऊंचे ब्याज भुगतान का भी बोझ होगा जिससे उनका कर्ज बोझ और बढ़ेगा। बड़े उभरते बाजारों वाली अर्थव्यवस्थाओं में ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका का कर्ज बोझ सबसे ज्यादा हो सकता है।"
उल्लेखनीय है कि भारत और ब्राजील दोनो ही कोरोना संक्रमण से विश्व भर में प्रभावित होने वाले देश हैं।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि
" कमजोर वित्तीय प्रणाली और आकस्मिक देनदारियों के चलते भारत, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की के लिये यह जोखिम ज्यादा है। "
भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ो के अनुसार, सरकार की राजस्व वसूली कम हुई है। जब मार्च के तीसरे सप्ताह से ही तालाबंदी के विभिन्न चरण चल रहे हैं और सारे कारोबार ठप पड़े हैं तो सरकार की राजस्व वसूली पर तो प्रभाव पड़ेगा ही। अब सरकार का राजकोषीय घाटा घटते राजस्व संग्रह के चलते 2021 - 20 के वित्त वर्ष के शुरुआती चार महीनों (अप्रैल- जुलाई) में ही पूरे साल के बजट अनुमान को पार कर गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के अनुसार,
" अगर सीएजी, (महालेखा नियंत्रक) द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो, वर्तमान वित्त वर्ष में अप्रैल से जुलाई के दौरान राजकोषीय घाटा इसके वार्षिक अनुमान की तुलना में 103.1 प्रतिशत यानी 8,21,349 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। एक साल पहले इन्हीं चार माह की अवधि में यह वार्षिक बजट अनुमान का 77.8 प्रतिशत रहा था।"
सरकार ने 2020- 21 के बजट में राजकोषीय घाटे के 7.96 लाख करोड़ रुपये यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
वित्त मंत्रालय ने फालतू खर्चो में कटौती के लिये एक सर्कुलर जारी किया है। यह एक उचित कदम है और अनावश्यक खर्चे कम किये जाने चाहिए। पर इन सबके बीच जब यह खबर मिलती है कि, प्रधानमंत्री के उपयोग के लिये 8 हज़ार करोड़ रुपये का एयरफोर्स वन की तर्ज पर एक आधुनिक विमान खरीदने और नयी संसद के नाम पर 20 हज़ार करोड़ रुपये के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को आर्थिक मंदी के बावजूद भी स्थगित करने पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है तो, वित्त मंत्रालय का उक्त सर्कुलर एक शिगूफा ही लगता है। सरकार ने तो फिलहाल यह मान ही लिया है कि, सरकार तो ईश्वर के भरोसे आ गयी है। यहां ईश्वर पर भरोसा किसी आस्था का परिणाम नहीं है, बल्कि यह अपने निकम्मेपन को छुपाने का एक उपक्रम है।
(.विजय शंकर सिंह )
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