जिन्होंने फ़र्ज़ी डिग्री और झूठे हलफनामे को भी एक मास्टरस्ट्रोक मान रखा है, उनसे सत्य असत्य के विवाद और बहस में न उलझिए। जितना समय उनसे उलझने और उन्हें समझाने में बरबाद होगा, उतने समय में कुछ सार्थक पढ़ा जा सकता है, कोई मनोरंजक फ़िल्म देखी जा सकती है, कुछ मधुर और मदिर संगीत सुना जा सकता है, किसी प्रिय से बात कर के खिलखिलाया जा सकता है और कुछ नहीं तो आराम से सोया तो जा ही सकता है।
गौतम बुद्ध को याद कीजिये। बुद्ध को भटकाने की कोशिश करते हुए मार को याद कीजिये। सारनाथ पहुंच कर भी काशी में अपने प्रबल विरोध को नजरअंदाज कर के वही धर्म चक्र प्रवर्तन के बाद फिर बुद्ध द्वारा वहां से कहीं और निकल जाने की कथा का प्रतीक याद कीजिये। बुद्ध कभी विवादित विषयो पर बोलते नहीं थे। वे मौन हो जाते थे। उन्हें लगता था कि यह अनावश्यक विमर्श और वार्तालाप है। ऐसे ही अनावश्यक वाद विवाद से बचें और अपने लक्ष्य की ओर निर्बाध गति से बढ़ते रहे।
मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर, ऐसी ही परिस्थितियों में एक मशविरा और सुकून की तरह याद आता है।
या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और !!
( विजय शंकर सिंह )
No comments:
Post a Comment