Friday 22 September 2017

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का छात्रा आंदोलन - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

बीएचयू में छात्राओं का एक आंदोलन चल रहा है। एक छात्रा केश मुंडा कर विरोध प्रदर्शित किया है और इसकी चर्चा भी बहुत है । लेकिन यह खबर टीवी चैनलों से गायब है । वे दुंदुभिवादन में फिलहाल लगे हैं ।  इसका किसी भी राजनीतिक विचारधारा से लेना देना नहीं है । यह आंदोलन अपनी सुरक्ष को ले कर छात्राये चला रही हैं। सिंह द्वार पर विश्वविद्यालय की ओर पीठ किये महामना की प्रतिमा उस सिंह द्वार पर हुए अनेक युगांतरकारी आंदोलनों की साक्षी रही है। लेकिन यह बातें 25 साल पुरानी है। बीएचयू में छात्र संघ नहीं है । कभी था, जब मै पढता था । लेकिन किस वर्ष और किस कुलपति द्वारा यह व्यवस्था समाप्त कर दी गयी मैं नहीं बता पाऊंगा । चंचल जी शायद बता पायें । लेकिन छात्राओं का यह आंदोलन स्वयंस्फूर्त है । और इसके मुद्दे भी तार्किक है। छात्राओं का आरोप है कि कैंपस उनके लिये असुरक्षित है । छात्र होस्टल के सामने अश्लील हरकत करते हैं । खुले आम छेड़छाड़ की घटनाएं होती हैं। पर कुलपति या प्रोक्टोरियल बोर्ड ने उन घटनाओं को रोकने के लिये कुछ भी नहीं किया । यह आक्रोश फूटना ही था । और एक दिन फूट भी गया । छात्राओं ने बीएचयू गेट पर धरना दे दिया और सिंहद्वार पर जहां काशी हिंदू विश्वविद्यालय लिखा है वहां #Unsafe_BHU की तख्ती टांग दी। धरना चलता रहा । नारेबाजी होती रही । उसे तोड़ने की भी कोशिश कुलपति समर्थक तत्वों द्वारा की जाती रही पर अत्यंत संस्कार सम्पन्न कुलपति ने धरना स्थल पर आ कर अपनी छात्राओं को यह आश्वासन देना उचित नहीं समझा कि वे उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे । होना तो यह चाहिये था कि कुलपति प्रोक्टोरियल बोर्ड और छात्राओं के एक प्रतिनिधिमंडल की बैठक का आश्वासन दे कर उनकी समस्याओं का निदान ढूंढते पर उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ किया । कल पीएम और वाराणसी के सांसद भी नगर में थे । मानस मंदिर और दुर्गा की पूजा आराधना भी की । दुर्गा की पूजा भी होती रही और छात्राओं की नारेबाजी भी चलती रही। वे नज़र बचा कर चले गए । यह आंदोलन कब तक चलेगा यह तो पता नहीं पर इस आंदोलन के प्रति कुलपति की बेरुखी कुल की परंपरा और महान विरासत का नाश ही करेगी । 

बीएचयू के इस छात्रा आंदोलन की जड़ में लड़कियों का जींस पैंट पहनना भी है। यह भी एक संस्कारशील सोच की बानगी है कि लड़कियों को जींस पैंट नहीं पहनना चाहिए । तभी तो एक संस्कारवादी दल के सांसद खुल कर यह कहते हैं कि लड़कियों के जींस पहनने और बाइक पर साथी से चिपक कर बैठने से बलात्कर बढ़ जाते हैं। उनके अपराध शास्त्र के इस विलक्षण ज्ञान को क्या कहूँ । साक्षी महाराज को बलात्कर का पर्याप्त ज्ञान है पर शास्त्रों का ज्ञान कितना है यह तो उनके शिष्य ही बता पाएंगे । 

यह आंदोलन पनपा कैसे और इसके कारण क्या है ? पत्रकार आवेश तिवारी इसका विवरण इस प्रकार दे रहे हैं । 
उनके अनुसार,  जींस   और टॉप पहने एक छात्रा बाजार  से कैम्पस में लौट रही थी किसी ने कैम्पस के भीतर उसे रोका और उसके जींस में हाथ डाल दिया वह यह शिकायत लेकर प्राक्टर के पास गई उन्होंने कहा " तुम जींस पहनकर क्यों गई थी ? वार्डेन ने सोचा बवाल करेगी इसलिए उसे कैम्पस से बाहर निकलने पर रोक लगा दी|खैर यह बात और लडकियों तक पहुंची और जो हुआ सामने है| 

लोकतंत्र में आंदोलन अनिवार्य है। बिना आंदोलनों के लोकतंत्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती है । लेकिन लोकतंत्र के ही माध्यम से सत्ता धारण करने वाले लोग उसी आंदोलन को बेमानी समझने लगते हैं । कितना भी तार्किक और औचित्यपूर्ण आंदोलन हो उसे वह अपने को हटाए जाने के षड़यंत्र के रूप में देखते हैं । वे आंदोलन की गंभीरता और समर्थन को राजनीतिक चाल समझ कर दरकिनार करते हैं । वे उन विन्दुओं पर बात ही नहीं करते जिनसे आंदोलन स्फूर्त हुआ है जा जिनसे वह स्पंदित हो रहा है। इसी आंदोलन के बारे में बात करें तो कुलपति अगर इन छात्राओं से बात कर लेते और उनकी सनस्याएँ सुन कर समाधान का आश्वासन दे , समाधान की दिशा में कुछ कदम उठा देते तो यह आंदोलन हो सकता है समाप्त भी हो जाता और कुल का वातावरण भी थोड़ा बेहतर होता । पर जब सारे आंदोलन और मांगे निकटदृष्टिदोष से देखी जाएंगी तो यही होगा । 

© विजय शंकर सिंह

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