विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के स्तर में भारत निम्नतम 12 देशों की सूची में दूसरे नम्बर पर है । यह आंकड़ा प्राथमिक शिक्षा का है ।
शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी समाज की प्रगति के मुख्य मापदंड होते हैं। लेकिन भारत मे शिक्षा के मामले में भी उत्साहवर्धक खबरें नहीं आ रही हैं। शिक्षा को भी तीन भागों में बांट कर देखें । प्राथमिक, कक्षा 1 से 5 तक, माध्यमिक कक्षा 6 से 12 तक, उच्च स्नातक और स्नातक से ऊपर की सभी शिक्षाएं । इसी में तकनीकी शिक्षा, मेडिकल, इंजीयनिरिंग, बिजनेस, आदि आदि भी जोड़ सकते हैं । प्राथमिक शिक्षा जो पहले दर्जा 1 से शुरू होती थी में भी बाज़ारवाद ने उसे तीन साल और पहले से शुरू करा दिया है । प्ले ग्रुप, एलकेजी, यूकेजी और तब कक्षा प्रथम । अब बच्चे ढाई साल पर ही अपने ही बराबर बोझ का बस्ता लिये स्कूल जाते दिखते हैं । लेकिन गली गली में खुले स्कूलों के बावजूद भी प्राथमिक शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । प्राथमिक स्तर पर ही बालमन में स्कूल जाते हुये बच्चों के ऊपर जिस भेदभाव का प्रभाव पड़ता है वह जीवन पर्यंत अमिट ही रहता है । यह भेदभाव है सरकारी स्कूलों का, अंग्रेज़ी नामधारी पब्लिक स्कूलों का जो केवल नाम से ही पब्लिक हैं और इनसे भी ऊपर, उन स्कूलों का जिनकी एक माह की फीस ही किसी सामान्य नौकरीपेशा की तनख्वाह से अधिक है। लेकिन जब बात सरकारी स्कूलों की आती है तो, उसका स्तर बहुत ही खराब है ।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट पर विश्वास करें तो, भारत उन 12 देशों की सूची में दूसरे नंबर पर है जहां दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते। विश्व बैंक की 12 देशों की सूची में, मलावी पहले स्थान पर है। भारत समेत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपने अध्ययन के नतीजों का हवाला देते हुए विश्व बैंक ने कहा कि बिना ज्ञान के शिक्षा देना ना केवल विकास के अवसर को बर्बाद करना है बल्कि दुनियाभर में बच्चों और युवा लोगों के साथ बड़ा अन्याय भी है। विश्व बैंक ने कल अपनी ताजा रिपोर्ट में वैश्विक शिक्षा में ‘‘ज्ञान के संकट’’ की चेतावनी दी। उसने कहा कि इन देशों में लाखों युवा छात्र बाद के जीवन में कम अवसर और कम वेतन की आशंका का सामना करते हैं क्योंकि उनके प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल उन्हें जीवन में सफल बनाने के लिए शिक्षा देने में विफल हो रहे हैं।
विश्व बैंक ने कल जारी रिपोर्ट ‘‘वर्ल्ड डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन्स प्रॉमिस’’ में कहा, ‘‘ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र दो अंकों के, घटाने वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवीं कक्षा के आधे छात्र ऐसा नहीं कर सकते।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना ज्ञान के शिक्षा गरीबी मिटाने और सभी के लिए अवसर पैदा करने और समृद्धि लाने के अपने वादे को पूरा करने में विफल होगी। यहां तक कि स्कूल में कई वर्ष बाद भी लाखों बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते या गणित का आसान-सा सवाल हल नहीं कर पाते।
इसमें कहा गया है कि ज्ञान का यह संकट सामाजिक खाई को छोटा करने के बजाय उसे और गहरा बना रहा है। विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा, ‘‘ज्ञान का यह संकट नैतिक और आर्थिक संकट है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब शिक्षा अच्छी तरह दी जाती है तो यह युवा लोगों से रोजगार, बेहतर आय, अच्छे स्वास्थ्य और बिना गरीबी के जीवन का वादा करती है। समुदायों के लिए शिक्षा खोज की खातिर प्रेरित करती है, संस्थानों को मजबूत करती है और सामाजिक सामंजस्य बढ़ाती है।’’ उन्होंने कहा कि ये फायदे शिक्षा पर निर्भर करते हैं और बिना ज्ञान के शिक्षा देना अवसर को बर्बाद करना है।
( © विजय शंकर सिंह )
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