23/24 की रात्रि में बीएचयू में चल रहे छात्रा - आंदोलन पर हुआ लाठीचार्ज निंदनीय है । यह कुलपति की अक्षमता और अहंकार है कि वे धरना स्थल पर जाकर आंदोलनरत छात्राओं से नहीं मिले और इस धरना को जो एक अत्यंत उचित मांग और कारण से हो रहा है को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर की कानून और व्यवस्था का मामला बना कर रख दिया । बात बहुत सामान्य थी। समस्या कुल की है और इसका समाधान कुलपति को करना है, पर इसे बिगाड़ कर इस समस्या को उन्होंने कानून और व्यवस्था की समस्या बना कर रख दिया । वह अगर धरना स्थल पर जा कर, दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर देते और सारी समस्याओं के लिये छात्रों और प्रॉक्टोरियल बोर्ड के बीच मीटिंग कर समस्या के तह में जाते तो आक्रोश अपने आप थोड़ा कम हो जाता । लेकिन उन्होंने अक्षमता का ही परिचय दिया । उन्हें यह पता होना चाहिये कि छात्र आंदोलन लाठीचार्ज से नहीं थमता है । यह और फैलता है । छात्र आंदोलन हल होता है संवाद से । यह संवाद होना चाहिये था कुलपति और आंदोलनरत छात्राओं के बीच मे । पर जब संवादहीनता की स्थिति आती है तो आंदोलन का स्वरूप और बिगड़ जाता है । बीएचयू में यही हो रहा है । कुलपति के अहंकार और जिद से वहां छात्र तो दुखी हैं ही शिक्षक भी नाराज़ हैं । कुलपति संघ के एक प्रचारक हो कर रह गए हैं । सघ की यह इनबिल्ट समस्या है कि वे किसी भी जिम्मेदारी के पद पर पहुंच जाए , प्रचारक मोड छोड़ ही नहीं पाते ।
कुलपति विश्वविद्यालय का बॉस सरीखा अफसर नहीं होता है । वह कुल यानी परिवार का मुखिया होता है । उसके कैंपस में अगर छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही हैं तो उसे सीधे उसी दिन इसका संज्ञान ले कर पीड़िता से बात कर समाधान खोजना चाहिये था । अब #बीएचयू की घटना अंततः छात्र बनाम पुलिस की हो कर रह जायेगी । जिस उचित और ज्वलंत समस्या का समाधान दो घण्टे की मीटिंग में हल हो सकता था, उसे विकराल बना कर अपने अहंकार को तुष्ट करना कहां तक उचित है ? इस बेवकूफी भरी नजरअंदाजी से #पीएम पर भी उंगलियां उठ रही है, क्यों कि वे उस दिन शहर में थे और वे शहर के सांसद भी हैं । जब कि इस घटना का उनकी यात्रा से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है । इस घटना से केवल कुल - प्रशासन का ही लेना देना था । इस घटना से पुलिस या शासन प्रशासन का भी कोई सम्बन्ध नहीं था । अब जब लाठी और आंसू गैस के गोले चल चुके हैं, आगजनी हो चुकी है, छात्र और पुलिसजन घायल हैं तो यह समस्या कैंपस से बाहर आ गयी और दो तीन दिन के भीतर देशव्यापी हो जाएगी । यह कुलपति की अक्षमता है ।
हम में से सबकी अपनी अपनी विचारधारा होती है । सभी अलग अलग सोचते हैं । वे संघ से प्रभावित हैं और संघ के प्रति समर्पित हैं तो यह कोई आपात्तिजनक बात नहीं है। पर यदि वे यह सोचते हैं कि सभी संघी सोच के हो जाँय और संघ की ही उचित है तो वे मूर्खों के अभयारण्य में हैं । आरएसएस के प्रति कुलपति त्रिपाठी जी का लगाव उनकी अपनी विवेक यात्रा है, पर जब यह सोच कुल के शासन और व्यवस्था पर भेदभाव तरीके से असर डालेगी तो ऐसी ही घटनाएँ होंगी। BHU हो या कोई भी विश्वविद्यालय वहां सब एक ही सोच के हों यह सम्भव ही नहीं है । यह एक अच्छे प्रशासक का कौशल है कि वह कुल का अकादमिक वातावरण को उन्नत बनाये और ऐसा उपाय करे जिस से वहां महिलाओं के प्रति छेड़छाड़ की घटनाएं भी कम ही हों। इन घटनाओं को पूरी तरह से रोकना असम्भव है पर संवाद से उन तरीक़ों को खोज कर अपनाया जा सकता है जिनसे ये घटनाएं कम हो जाँय । अब जो मूल घटना है वह नेपथ्य में चली गयी और कानून व्यवस्था की एक बड़ी लाइन खिंच गयी। अनावश्यक रूप से इस विवाद की जद में दोनों सरकारें आ गयी।
बीएचयू में जिस प्रकार का निर्मम ' राष्ट्र निर्माण ' हो रहा है वह मानसिकता पूरे देश को विकलांग बना कर रख देगी ।
© विजय शंकर सिंह
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