सरकार ने केंद्र सरकार के उप सचिव , निदेशक और संयुक्त सचिव के पदों के लिए, निजी व्यक्तियों को सीधे नियुक्त करने पर विचार करने का निर्देश केंद्रीय कार्मिक विभाग को दिया है ।
अभी यह पद भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा अन्य केंद्रीय और अखिल भारतीय सेवाओं , आईपीएस और आईएफएस के द्वारा भरा जाता है । इन सेवाओं के अतिरिक्त तकनीकी दक्षता वाले विभागों में विशेषज्ञ भी सचिव , संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्त होते रहे हैं । लेकिन अपनी तरह का यह अकेला आदेश और अकेली पहल है निजी व्यक्ति को सरकार के वरिष्ठ नौकरशाही में दाखिल होने का अवसर देती है । अभी जो भी गैर आईएएस अधिकारी सचिव या संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्त होते रहे हैं वे निजी या गैर सरकारी व्यक्ति नहीं रहे हैं। उन सबका चयन संघ लोक सेवा आयोग या तो प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा या इंटरव्यू के द्वारा करता है । वे सरकार के ही किसी न किसी विभाग से जहां वे कार्यरत हैं, अपनी विशेषज्ञता या आवश्यकता हेतु चुन कर प्रतिनियुक्ति पर रखे जाते हैं। अब जो निजी व्यक्ति इन पदों के लिये नियुक्त किये जायेंगे, उनका चयन संघ लोक सेवा आयोग करेगा या उनकी नियुक्ति के लिए कोई और प्राधिकरण तय होगा , इस पर विचार कार्मिक विभाग को करना है। फिर उनका प्रशिक्षण कैसे होगा तथा जो दायित्व उन्हें सौंपा जाएगा वह उनकी विशेषज्ञता के आधार पर तय होगा या उसकी समयावधि तय होगी । इस तरह के अनेक सवाल कार्मिक विभाग के सामने खड़े होंगे । जिसका समाधान उन्हें करना होगा ।
इस आदेश से सबसे बड़ा सवाल राजनीतिक प्रतिबद्धता का खड़ा होगा । हो सकता है आज जो दल ऐसे अफसरों का चयन कर रहा है, कल उस दल के सत्ता से बाहर रहने के कारण , नये सत्तारूढ़ दल का उन अफसरों के प्रति रुख बदले और वह हटा दिए जाएं । तो क्या इस से सरकार परिवर्तन के साथ ऐसी प्रतिबद्ध नौकरशाही भी बदल जायेगी ? प्रतिबद्ध नौकरशाही का चलन विश्व में नया नहीं है । अमेरिका में यह चलन पहले से हैं । वहाँ जब राष्ट्रपति बदलते हैं तो उनके शीर्ष अधिकारी भी बदल जाते हैं और नए मिजाज़ के राष्ट्रपति के साथ उसी मिजाज़ के अफसर सचिवालय में आ जाते हैं । पर हमारे यहां सरकार किसी भी दल की हो, पर अफसर वहीँ रहते हैं । जो तबादले होते भी हैं तो उन्ही में से फेंटे जाते हैं । ऐसा नहीं है यह नौकरशाही राजनीतिक गुटबाज़ी से अलग है, पर पूरी अफसरशाही ही गुटबाज़ी में लिप्त हो ऐसा भी नहीं है । हाँ कुछ अफसरों का ग्रुप ज़रूर राजनीतिक गुटबाज़ी में लिप्त हो जाता है । यह प्रवित्ति भी इधर हाल ही में आयी है । लेकिन नौकरशाही का मूल चरित्र अभी भी काफी हद तक राजनीतिक प्रतिबध्दता से मुक्त ही है।
राजनीतिक दलों में एक धारणा विकसित हो रही है कि, उनके घोषणापत्र या एजेंडा को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध नौकरशाही या कम से कम शीर्ष पदों पर प्रतिबद्ध अफसर होने चाहिये । लेकिन आज़ादी के बाद जब आईसीएस को समाप्त करने या न करने पर जब विचार किया जा रहा था तो अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं के गठन के समय यह सोचा गया था की नौकरशाही का काम सरकार के आदेशों और निर्देशों का विधि सम्मत तरीके से पालन करना और कराना है । बिना किसी व्यक्ति, दल और विचारधारा के प्रभाव में आये और बिना किसी के प्रति , प्रतिबद्धता के उसे संविधान और विधि के प्रति निष्ठावान रहते हुये नौकरी करना है । हालांकि इन भारी भरकम शब्दों और इनमे व्याप्त भावनाओं का क्षरण भी हो रहा है फिर भी नौकरशाही अभी भी सत्तारूढ़ दल के प्रति उतनी प्रतिबद्ध नहीं है जितनी राजनीतिक दलों द्वारा अपेक्षा की जाती है । अब देखना है कार्मिक विभाग , सरकार के इस निर्देश पर कैसे अमल करता है ।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित इस खबर का लिंक नीचे है ।
https://www.google.co.in/amp/indianexpress.com/article/india/dopt-asked-to-prepare-proposal-on-lateral-entry-into-civil-services-department-of-personnel-training-4749693/lite/
( विजय शंकर सिंह )
यह उस एजेंडे को पूरा करने की तैयारी है जो सदैव से एक राजनीतिक दल की सत्ता में बने रहने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने की थी
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