परसाई जी हिंदी के अग्रणी व्यंग्य लेखक थे । उनकी रचनाएँ न केवल गुदगुदाती है बल्कि उस चुहुल के नेपथ्य में ढंके सच को भी उजागर कर देती हैं । यह रचना सर्वहारा समाज या कॉमरेड जमात के ऊपर एक सधा हुआ व्यंग्य हैं। रचना को राम कथा से जोड़ कर, महावीर हनुमान के चरित्र और देश के व्यापारी जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार को छूते हुए परिहास में ही बहुत कुछ कह जाती हैं। इसे पढ़ें । यह रोचक है और भेदक भी ।
( विजय शंकर सिंह )
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पोथी में लिखा है – जिस दिन राम, रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा। यह दीपावली पर्व अनन्तकाल तक मनाया जाएगा। पर इसी पर्व पर व्यापारी बही-खाता बदलते हैं और खाता-बही लाल कपड़े में बांधी जाती है।
प्रश्न है – राम के अयोध्या आगमन से खाता-बही बदलने का क्या सम्बन्ध? और खाता-बही लाल कपड़े में ही क्यों बांधी जाती है?
बात यह हुई कि जब राम के आने का समाचार आया तो व्यापारी वर्ग में खलबली मच गई। वे कहने लगे – “सेठ जी, अब बड़ी आफत है। भरत के राज में तो पोल चल गई। पर राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे टैक्स की चोरी बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे अपने खाता-बही की जांच करेंगे। और अपने को सजा होगी।”
एक व्यापारी ने कहा, “भैया, अपना तो नम्बर दो का मामला भी पकड़ लिया जाएगा।”
अयोध्या के नर-नारी तो राम के स्वागत की तैयारी कर रहे थे, मगर व्यापारी वर्ग घबरा रहा था।
अयोध्या पहुंचने के पहले ही राम को मालूम हो गया था कि उधर बड़ी पोल है। उन्होंने हनुमान को बुलाकर कहा – सुनो पवनसुत, युद्ध तो हम जीत गए लंका में, पर अयोध्या में हमें रावण से बड़े शत्रु का सामना करना पड़ेगा – वह है, व्यापारी वर्ग का भ्रष्टाचार। बड़े-बड़े वीर व्यापारी के सामने परास्त हो जाते हैं। तुम अतुलित बल – बुद्धि निधान हो। मैं तुम्हें इनफोर्समेंट ब्रांच का डायरेक्टर नियुक्त करता हूं। तुम अयोध्या पहुंचकर व्यापारियों की खाता-बहियों की जांच करो और झूठे हिसाब पकड़ो। सख्त से सख्त सजा दो।
इधर व्यापारियों में हड़कंप मच गया। कहने लगे – अरे भैया, अब तो मरे। हनुमान जी इनफोर्समेंट ब्रांच के डायरेक्टर नियुक्त हो गए। बड़े कठोर आदमी हैं। शादी-ब्याह नहीं किया। न बाल, न बच्चे। घूस भी नहीं चलेगी।
व्यापारियों के कानूनी सलाहकार बैठकर विचार करने लगे। उन्होंने तय किया कि खाता-बही बदल देना चाहिए। सारे राज्य में ‘ चेंबर ऑफ़ कामर्स ‘ की तरफ से आदेश चला गया कि ऐन दीपोत्सव पर खाता-बही बदल दिए जाएं।
फिर भी व्यापारी वर्ग निश्चिन्त नहीं हुआ। हनुमान को धोखा देना आसान बात नहीं थी। वे अलौकिक बुद्धि संपन्न थे। उन्हें खुश कैसे किया जाए ? चर्चा चल पड़ी –
– कुछ मुट्ठी गरम करने से काम नहीं चलेगा?
– वे एक पैसा नहीं लेते।
– वे न लें, पर मेम साब?
– उनकी मेम साब ही नहीं हैं। साहब ने ‘मैरिज ‘ नहीं की। जवानी लड़ाई में काट दी।
-कुछ और शौक तो होंगे ? दारु और बाकी सब कुछ ?
– वे बाल ब्रह्मचारी हैं। काल गर्ल को मारकर भगा देंगे। कोई नशा नहीं करते। संयमी आदमी हैं।
– तो क्या करें ?
– तुम्हीं बताओ, क्या करें ?
किसी सयाने वकील ने सलाह दी – देखो, जो जितना बड़ा होता है वह उतना ही चापलूसी पसंद होता है। हनुमान की कोई माया नहीं है। वे सिन्दूर शरीर पर लपेटते हैं और लाल लंगोट पहनते हैं। वे सर्वहारा हैं और सर्वहारा के नेता। उन्हें खुश करना आसान है। व्यापारी खाता-बही लाल कपड़ों में बांध कर रखें।
रातों-रात खाते बदले गए और खाता-बहियों को लाल कपड़े में लपेट दिया गया।
अयोध्या जगमगा उठी। राम-सीता-लक्ष्मण की आरती उतारी गई। व्यापारी वर्ग ने भी खुलकर स्वागत किया। वे हनुमान को घेरे हुए उनकी जय भी बोलते रहे।
दूसरे दिन हनुमान कुछ दरोगाओं को लेकर अयोध्या के बाज़ार में निकल पड़े।
पहले व्यापारी के पास गए। बोले, खाता-बही निकालो। जांच होगी।
व्यापारी ने लाल बस्ता निकालकर आगे रख दिया। हनुमान ने देखा – लंगोट का और बस्ते का कपड़ा एक है। खुश हुए,
बोले – मेरे लंगोट के कपड़े में खता-बही बांधते हो?
व्यापारी ने कहा – हां, बल-बुद्धि निधान, हम आपके भक्त हैं। आपकी पूजा करते हैं। आपके निशान को अपना निशान मानते हैं।
हनुमान गद्गद हो गए।
व्यापारी ने कहा – बस्ता खोलूं। हिसाब की जांच कर लीजिए।
हनुमान ने कहा – रहने दो। मेरा भक्त बेईमान नहीं हो सकता।
हनुमान जहां भी जाते, लाल लंगोट के कपडे में बंधे खाता-बही देखते। वे बहुत खुश हुए। उन्होंने किसी हिसाब की जांच नहीं की।
रामचंद्र को रिपोर्ट दी कि अयोध्या के व्यापारी बड़े ईमानदार हैं। उनके हिसाब बिलकुल ठीक हैं।
हनुमान विश्व के प्रथम साम्यवादी थे। वे सर्वहारा के नेता थे। उन्हीं का लाल रंग आज के साम्यवादियों ने लिया है।
पर सर्वहारा के नेता को सावधान रहना चाहिए कि उसके लंगोट से बुर्जुआ अपने खाता-बही न बांध लें।
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