Monday, 27 February 2017

अपशब्दों के बिना भी असहमति प्रकट की जा सकती है / विजय शंकर सिंह

आरएसएस के कई बड़े पदाधिकारी और उससे जुड़े लोग जो कानपुर के हैं वे मेरे पुराने परिचित हैं और आज भी उनसे बात चीत होती रहती हैं । यहां के स्वर्गीय बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह तो संभवतः संघ के बहुत ही महत्वपूर्ण शख्शियत रहे हैं । अब वे नहीं पर उनके घर परिवार के अनेक लोग अभी भी हैं जो मिलते जुलते रहते हैं । आरएसएस की विचारधारा से मेरी सहमति प्रारम्भ से ही नहीं रही है और आज भी नहीं है । लेकिन कानपुर में ही स्थित एक प्रतिष्ठित विद्यालय, दीन दयाल इंटर कॉलेज , जो जब मैं आया तो , मेरे ही क्षेत्र स्वरूपनगर जहाँ का मैं सीओ सिटी था के थाना नवाबगंज  में था । मेरा आना जाना वहाँ लगा रहता था । विद्यालय में आने जाने और यहां से जुड़े अन्य गणमान्य लोगों से मिलने जुलने का सिलसिला भी खूब चला । कुछ तो मिलने जुलने की आदत भी मेरी थी और कुछ कानपुर में ही मेरा लंबा सेवाकाल रहा तो जो भी सम्बन्ध वहाँ के लोंगों से बने वे आत्मीय और पारिवारिक बन गए । अवकाश प्राप्ति के बाद आज भी यह सम्बन्ध उस समय के लोगों से हैं। कुछ तो फेसबुक पर ही हैं । यही सम्बन्ध, कांग्रेस, बीजेपी, वामपंथी , सपा, बसपा, व्यापार मंडल और पत्रकारों से भी रहे । उस समय आरएसएस के जो भी पदाधिकारी मिलते थे उनसे बात करने में , असहमति के बावजूद भी अच्छा लगता था क्यों कि उनमे बदजुबानी नहीं थी । जी लगा कर बात करना, और विनम्र व्यवहार का प्रदर्शन अच्छा और प्रभावपूर्ण लगता था । वे यह भली भाँति जानते थे कि उनकी विचारधारा से मेरी सहमति नहीं है पर उनके आत्मीयपूर्ण व्यवहार में कोई कमी नहीं थी । पर इधर सोशल मिडिया पर जब संघ प्रभावित मित्रों को कुछ लिखते देखता हूँ तो यह सोचता हूँ कि यह गाली गलौज, अमर्यादित भाषा, आक्षेप, धमकी भरा स्वर , यह किस संस्कार शाला से इन्होंने सीखा है ? अपने परिवार और विद्यालय से सीखा है या एक रणनीति के अनुसार कभी स्थान स्थान के अनुसार अमर्यादित होते रहते हैं । बहुत कम ही इस मानसिकता के मित्रों का कमेंट बिना अपशब्दों या अहंकार उवाच के पूरा नहीं होता । असहमति तो किसी भी सभ्य समाज और लोकशाही का स्थायी भाव है । आप यह कैसे सोच सकते हैं कि आप की हर भ्रू भंगिमा से सभी सहमत ही होंगे ।

यह बात मैं गुरमेहर कौर के एक वीडियो और उसके एक फ़ोटो जिसमे उन्होंने युद्ध को दोषारोपित करते हुए उसे अपने पिता का हत्यारा कहा । उन्होंने रामजस कॉलेज में हाल ही में हुए एबीवीपी और अन्य छात्रों के बीच एक सेमिनार को रोकने के लिये हुए झगड़े, जिसमे एक अध्यापक बुरी तरह घायल हो गए हैं और कुछ लड़कियों के साथ बदसलूकी और मारपीट हुयी, के सम्बन्ध में एबीवीपी की आलोचना की । यह आलोचना एबीवीपी या समान विचारधारा के लोगों को बर्दाश्त नहीं हुयी और वे उसका तार्किक जवाब देने के बजाय सोशल मिडिया पर गाली गलौज और बलात्कार तक की धमकी देने लगे । यह संस्कार जिसे वे बड़े सम्मान के साथ ओढ़ते हैं उन्होंने कहाँ पाया है ? संघ से या अपने परिवेश से या अपने परिवार से ? गुरमेहर कौर के पिता कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुये थे और 1999 में गुरमेहर कुल 2 साल की थीं । पिता की क्या याद होगी उन्हें इसकी कल्पना भी की जा सकती है । आज वे बड़ी हैं और सब कुछ देख समझ रही हैं । उन्होंने अपने पिता के मृत्यु की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर न  डाल कर युद्ध पर डाल दी । यह उनका दृष्टिकोण है । अपने दृष्टिकोण के अनुसार वे किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये वे स्वतंत्र हैं । युद्ध एक परिणाम है । युद्ध अपने आप तो शुरू हुआ नहीं, बल्कि वह पाकिस्तान के करगिल में घुसपैठ के बाद शुरू हुआ । यह घोषित युद्ध नहीं था पर इसमें जनहानि किसी भी घोषित युद्ध से कम नहीं हुयी । ऐसा सरकार द्वारा एलओसी पार न करने देने के निश्चय के कारण हुआ । गुरमेहर के पिता की शहादत पाक द्वारा किया गया युद्ध ही था । यह सच भी है । लेकिन उन्होंने अगर युद्ध को ही जिम्मेदार ठहराया और इसी कारण उनके अनुसार उनके पिता दिवंगत हुए तो उनसे नाराज़गी कैसी ? और वे देशद्रोही कैसी ?  युद्ध और शहादत क्या होती है , इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होता है यह मैं भी अनुमान नहीं लगा पाउँगा क्यों कि मेरे घर परिवार का कोई भी व्यक्ति सेना में नहीं है । पर जिन मित्रों ने अपने परिजन युद्धों में खोये हैं वे इसे ज़रूर महसूस कर रहे होंगे ।

गुरमेहर ने रामजस कॉलेज के घटनाक्रम और हिंसा की निंदा की है । दिल्ली पुलिस ने भी अपनी ज्यादती मानी है और अपने कुछ कर्मचारियों को निलंबित भी किया है । गुरमेहर की इस बात का विरोध सोशल मिडिया पर हुआ और हो रहा है । विरोध का अधिकार हर व्यक्ति को है पर गुरमेहर के विरुद्ध गाली गलौज करने और उनकी देशभक्ति पर संदेह करने का अधिकार किसी के पास नहीं है ।  उन्हें धमकी भी मिली है और धमकी भी बलात्कार करने की । बलात्कार मेरी सोच के अनुसार किसी भी महिला के विरुद्ध जघन्यतम अपराध है । यह कौन सा संस्कार है, कौन सी सोच है और कौन सा आचरण है और कौन उन्हें सिखा रहा है तथा कहाँ से सीखा है उन्होंने जब यह सवाल मेरे जेहन में उठ रहे हैं तो आप सब के मन में भी उठ रहे होंगे । यह संघ प्रदत्त संस्कार है या अन्य प्रदत्त यह मैं नहीं जानता हूँ । अपशब्द , गाली गलौज, धमकी,  ट्रोल आदि तर्क क्षीणता और आत्म विश्वास के क्षरण का द्योतक है । यह क्षरण न सिर्फ इन मित्रों में है बल्कि इनके नेताओं में भी है । बिना गाली और अपशब्दों के भी आक्रामक हुआ जा सकता है, आगर तर्क क्षमता और तर्क योग्य सामग्री हो तो ।

देश द्रोह और देश भक्ति का पैमाना क्या है । जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी, पाकिस्तान को छोटा भाई कहते हैं , तो उन्हें कोई देश्द्रोही नहीं कहता है । देशद्रोही का प्रमाणपत्र बांटने वाले, एक शब्द भी नहीं बोलते हैं । कसमसा के रह जाते हों तो मुझे पता नहीं हैं। 
डॉ वेद प्रताप वैदिक जब अंतरास्ट्रीय पाक आतंकी हाफ़िज़ सईद के साथ बैठ कर उनसे गुफ्तगू करते हैं तो भी कोई उनकी देश भक्ति पर संदेह नहीं करता है । 
जब अडानी पाकिस्तान में बिजली का कारखाना लगाते हैं और वहां अपने व्यावसायिक हित तलाशते हैं तो, उन्हें भी कोई देशद्रोही नहीं कहता है । 
लेकिन, 
जब गुरमेहर कौर एक प्लेकार्ड ले कर, जिस पर यह लिखा है कि, मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा है तो वे तुरंत देशद्रोही बना दी जाती हैं । 
यह कौन सा तर्क है, यह कौन सी सोच है, यह कौन सी मानसिकता है, यह तो वही जानें जो यह सोच के बैठे हैं कि , उनकी सोच, उनके तर्क, और उनकी मानसिकता के अतिरिक्त और विपरीत हर सोच, हर तर्क, हर मानसिकता देशद्रोह है ! 
जब कभी मन शांत हो तो ज़रा सोचियेगा कि देशद्रोह और देशभक्ति का पैमाना क्या है ?

( विजय शंकर सिंह )

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