Friday 10 February 2017

09 फरवरी 16, एक साल पहले - जेएनयू का एक प्रकरण / विजय शंकर सिंह

एक साल पहले 9 फरवरी 2016 को जेएनयू पूरे देश के लिए खतरा बन गया था । वहाँ छात्रों के एक आयोजन में देश की अखंडता के खिलाफ कुछ अत्यंत आपत्तिजनक नारे लगाये गए थे । बड़ा शोर मचा । लोगों की भावनायें आहत हुयीं । जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर यह इलज़ाम लगा कि वे इस राष्ट्र विरोधी कृत्य में शामिल है । सारे टीवी चैनेल उसी और लपक गए । खबरों की बहुतायत जो थी । थाने में मुक़दमा कायम हुआ । कन्हैया के साथ दो और छात्र थे । एक अनिर्बान और दूसरा खालिद उमर । ये दोनों तो फरार हो गये । कन्हैया गिरफ्तार हुआ और पुलिस ने उसे रिमांड पर लिया । मामला संगीन था । लोग उत्तेजित थे । आरोप गंभीर था । पुलिस कस्टडी रिमांड यूपी पुलिस को छोड़ कर सभी प्रांतों की पुलिस को विवेचना के दौरान आसानी से मिल जाता है । कन्हैया की पेशी अदालत में हुयी । वकीलों का खून भी खौला । उसके साथ मारपीट हुयी । एक विधायक जी ने देशद्रोही को देखते ही गोली मारने की भीष्म प्रतिज्ञा की नकल भी कर ली । टीवी चैनेल पर , कानून के पहरुओं का यह नंग और गैर कानूनी कृत्य पूरे देश ने देखा । न्यायपालिका ने भी इस कृत्य की निंदा की । नोटिस आदि जारी हुयी। मामला आगे बढ़ा । अदालत में रिमांड के समाप्त होने पर मुल्ज़िम की पेशी हुयी । पुलिस से सुबूत माँगा गया । सुबूत था ही नहीं । बस्सी सर पुलिस आयुक्त थे । उनका रिटायरमेंट नज़दीक था । वे भी दिन ही गिन रहे थे । सुबूत पुलिस इकठ्ठा करती रही । पर जब सुबूत नहीं मिला तो अदालत ने जमानत दे दी । कन्हैया जेल से रिहा हो कर फिर अपने जेएनयू में । मुक़दमा अभी चल रहा है ।

फिर शुरू हुआ जेएनयू के खिलाफ दुष्प्रचार का दौर । सोशल मिडिया पर जिसका एडमिशन किसी कसबे के डिग्री कॉलेज में भी न हो सकता हो वह भी जेएनयू की प्रतिभा, वहाँ के प्रोफेसरों और उसके योगदान पर छींटाकशी करने लगा । किसी माननीय को वहां कंडोम दिखा, तो किसी की आँखे वहाँ की सस्ती फीस से चौड़ी हो गयीं । किसी को मुक्त विचार से परहेज़ हुआ तो किसी को मुक्त रूप और सम भाव से विचरण करती लड़कियां अखरने लगीं । किसी को वामपंथी चुभने लगे तो किसी ने यह भी मशविरा उछाल दिया कि जेएनयू से जवाहरलाल नेहरू का नाम हटा कर सुभाष बाबू का नाम रख दिया । यानी देश की साझी विरासत और एकता को तोड़ने की फितरत अभी भी गयी नहीं है । बस किसी तरह अलगाओ और विलगाओ । पर धीरे धीरे बादल हटा और सब कुछ साफ़ हुआ तो माहौल शांत हुआ । वही एक साल पहले देशद्रोह की नर्सरी कहा जाने वाला जेएनयू आज देश का अकेला विश्वविद्यालय है जो विश्व के मानक पर उतरता है ।

अब किस्सा सुनिए उन सुबूतों का जो कन्हैया के खिलाफ इकठ्ठा किये गए थे । एक टीवी चैनेल ने एक वीडियो टेप दिखाये जिसमे कुछ लड़के मुंह ढंके भारत की बरबादी और टुकड़े होंगे के नारे लगा रहे थे । यह फंक्शन अफज़ल गुरु जो संसद पर हमले ( 2001ई ) का सज़ायाफ्ता था और जिसे फांसी दे दी गयी है के सम्बन्ध में था । बड़ा शोर मचाया विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रवादी पार्टी के लोगों ने कि इन छात्रों पर कार्यवाही की जाय । अफज़ल गुरु का महिमामंडन गलत है और इसे सभी निंदनीय मानेंगे । पर लोकतंत्र और राजनीति की यह विडंबना भी देखिये जो अफज़ल प्रेमी गैंग कह कर अपने विरोधियों को कोसते नहीं थकते थे, वे खुद ही अफज़ल प्रेमी पार्टी के साथ जम्मू कश्मीर में सरकार के भागीदार हो गए । सत्ता का चरित्र अजब होता है । कब, कौन , कहाँ , किसके साथ कल होगा, देवो न जानाति कुतो मनुषयः ! तो अफज़ल अब भुला दिया गया है । वह उसी दिन उन्हें याद आयेगा, जब महबूबा बेवफा हो जाएंगी । अभी तो वे जवान हैं !

अब सुबूतों पर आइये । किस्सागोई बहकाती बहुत है । यह पहाड़ी नदी की तरह बल खाती और मचल जाती है । जो वीडियो टेप मिला उसके बारे में यह बचाव पक्ष ने कहा कि वह टेम्पर्ड है । यानी उसके साथ छेड़छाड़ की गयी है । उसकी जांच हुयी । दो दो फोरेंसिक लैब ने जांच की । कन्हैया के खिलाफ अभी तक तो सुबूत नहीं मिला है । अभी मुक़दमा जेरे तफ्तीश है । सो इस पर कोई बात नहीं । बस्सी सर के दिन पूरे हुए । वे रिटायर हुए और तुरंत नौकरी भी पा गये । वे संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य बन गए । सरकारें वफादार अधिकारियों का बहुत ख्याल रखती हैं । इनका भी ख्याल रखा । कोई नयी बात नहीं है । यह सनातन प्रक्रिया है सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक भी । गणेश और कार्तिकेय की कथा इस सन्दर्भ में आप याद कर सकते हैं ।

अब सवाल है,  जो नारे लगा रहे थे , वे कौन थे । एनआईए , दिल्ली पुलिस , आदि आदि लगी रही पर वे बदमाश लड़के कौन थे उनका पता नहीं चल पाया । किसी ने कहा न्यूज़ चैनेल वाले ले कर आये थे । किसी ने कहा वे वामपंथी थे तो किसी ने कहा कि वे कश्मीरी थे । राम तक समझ न पाये इन मायावी लोगों को , खुद ही गच्चा खा गये, तो मेरी पुलिस बेचारी क्या समझेगी । अभी कोई ख़ास प्रगति नहीं है , विवेचना जारी है । यह हमारा बोध वाक्य है । जो सदैव असहज सवालों के समय रेनकोट के रूप में काम आता रहा है । पर थोडा मज़ाक छोड़ें तो यह दिल्ली पुलिस और उन सब लोगों के लिए जो इस मामले में तलाश ए मुल्ज़िम थे, और हैं के लिए चुनौती भी है । आशा है सच सामने आएगा और सत्यमेव जयते की विजय होगी । 

आज भोपाल में एसटीएफ ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया है जो आईएसआई को सूचना देते हुए पकड़े गए । उनमे एक ध्रुव भी हैं जो राष्ट्रवादी विचारधारा के दल और संघटन से जुड़े हैं । पकडे जाने वाले तमाम लोग मुस्लिम नहीं है बल्कि हिन्दू हैं। यहाँ भी धर्म , जासूसी के लिए पेटेंट नहीं है जैसा कि अक्सर कहा जाता है । इन सब अभियुक्तों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिये और साथ ही साथ , जेएनयू के उन नक़ाब पोश नारेबाज़ों का भी पता लगाया जाना चाहिए ताकि सच सामने आ सके । ऐसा तो नहीं कि जेएनयू को बदनाम करने का वह एक षडयंत्र था । एक साल बीत गया था । सोचा एक रिमाइंडर जारी कर दूँ ! वैसे भी अपराध कहीं भी , किसी भी समय, किसी के साथ और किसी के द्वारा भी हो सकता है । अपराध एक मनोवृत्ति है । यह मनोवृत्ति इंसान में तब से आयी है जब न धर्म था और न ही राजनीति । आदिम समाज में भी अपराध रहा है । जैसे ही विवेक का संज्ञान हुआ , अपराध का जन्म हुआ होगा । गुनाह फितरत ए आदम है ।

( विजय शंकर सिंह )

No comments:

Post a Comment