एक छोटी कविता नागार्जुन की पढ़ें । यह कविता खामोशी और चुप्पियों के बारे में है । यह कविता जो कुछ हो रहा है उसे बस देखने और स्वीकार करने के बारे में है । यह कविता सत्ता के सार्वभौम दुर्गुण चाटुकारिता पसंदगीं के बारे में है । यह कविता कोउ नृप होहिं हमे का हानि , की मानसिकता पर है । कविता है, -
गुड़ मिलेगा
गूंगा रहोगे
गुड़ मिलेगा
गुड़ मिलेगा
रुत हँसेगी
दिल खिलेगा
पैसे झरेंगे
पेड़ हिलेगा
सिर गायब,
टोपा सिलेगा
दिल खिलेगा
पैसे झरेंगे
पेड़ हिलेगा
सिर गायब,
टोपा सिलेगा
गूंगा रहोगे
गुड़ मिलेगा !!
गुड़ मिलेगा !!
चुप्पियों पर आधारित है यह कविता । बोलना किसी भी अधिकार मद संपन्न व्यक्ति को सुहाता नहीं है । वह जब भी सुनना चाहता है मनमाफिक ही सुनना चाहता है । यह ठकुरसुहाती शब्द भी इसी अर्थ को व्यंजित करता है । ठाकुर यूँ हो क्षत्रियों के लिए एक सम्मान जनक सम्बोधन है , पर ठाकुर का अर्थ श्रेष्ठ भी होता है । मथुरा में ठाकुर जी कृष्ण को कहते हैं । ठाकुर का अर्थ अधिकार संपन्न भी है । ठाकुर स्वभावतः प्रशंसा सुनना पसंद करते हैं । यह उनकी एक प्रकार से जातिगत कमज़ोरी भी होती है । इसी लिए राजाओं के दरबार में विरूदावली गाने की प्रथा है । दरबारों में इसी लिए भाट रखे जाते थे । भाट , या चारण राजा की बड़ाई और उपलब्धियाँ खूब बखानते थे । हिंदी साहित्य का वीरगाथा काल इसका एक उदाहरण । प्रशंसा बिना अतिशय उक्ति के हो भी नहीं सकती है , इस लिए इस काल का सारा साहित्य ही अतिशयोक्ति अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण है । भाट और चारणों को इस विरुद गान हेतु इनामात भी मिलते थे । इसी प्रकार ईश्वर का रूप भी परम अधिकार संपन्न सत्ता का ही होता है । इसी लिए उसकी स्तुति की जाती है और उस स्तुति गान में उसकी क्षमता और उसके सर्वशक्ति भाव का ही वर्णन होता है । प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, राजा भी ईश्वर का ही एक रूप होता है । चाहे वह एक गाँव का हो या पूरे देश का, राजा , राजा होता है । उसमे देवत्व का अंश ही देखा जाता है । राजा अधिकतर क्षत्रिय ही होते थे । अक्षत्रिय राजा के राज्याभिषेक का अमूमन कोई शास्त्रीय विधान भी नहीं था । हालांकि इतिहास में अक्षत्रिय सम्राट और राजाओं के भी उल्लेख मिलते हैं । इतिहास में यह उल्लेख मिलता है कि शिवाजी का राज्याभिषेक कराने के लिये काशी के पंडितों ने मना कर दिया था । उनका कहना था कि शास्त्रोचित राज्याभिषेक केवल क्षत्रिय का ही संभव है । तब शिवाजी को अनुष्ठान के बाद क्षत्रिय घोषित किया गया तब उनका राज्यारोहण हुआ । शिवाजी मराठाऔर कूर्मि क्षत्रिय थे । कर्नल टॉड जिसने राजपूतों के इतिहास पर एक शोधपूर्ण ग्रन्थ , The annals and antiquities of Rajsthan लिखा है में उन्होंने राजपूतों के 12 दुर्गुण भी गिनायें है । उन पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी, उन दुर्गुणों में एक दुर्गुण प्रशंसा सुनने का भी है । आज भी यह दुर्गुण विद्यमान है । इसी प्रकार ठाकुरों को जो सुहाए वही ठकुरसुहाती है ।
इस प्रकार आज न राज्य हैं न राजा और न ही राजन्य बचे हैं । सत्ता लोकतांत्रिक हो गयी है । जिसे जनता चुनती है वह सत्ता संभालता है । पर आदिम और मध्ययुगीन मनोवृत्ति अभी भी नहीं गयी है । अधिकार का मद सबसे पहले अतीत के इसी हैंगओवर में ले जाता है, जहां तक मेरी हद ए निगाह है वहाँ तक मेरी ही चलती है और चलेगी । जब भी सत्ता निरंकुशता की और कदम बढ़ाती है वह आलोचना के के प्रति असहिष्णु होने लगती है । यह बात भारतीय सन्दर्भ में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सत्ता का स्थापित चरित्र भी है । यह प्रवित्ति हम अपने गाँव और अतीत बनते जा रहे संयुक्त परिवार के प्रमुख में भी ढून्ढ सकते हैं । नागार्जुन की यह कविता उसी चुप्पी को गूँगे और गुड़ के रुप में व्यक्त करती है । जब चुप्पी रहेगी और हर उस बात पर जो सत्ता के ही हित में हो तो लोग खामोश रहेंगे तो, वे उपकृत भी होंगे । नागार्जुन ने बेहद कम शब्दों में इस कविता के माध्यम से एक ध्रुव सत्य कहा है ।
( विजय शंकर सिंह )
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