एक नयी दुनिया
रच ली ही है हमने
थोड़ी अजब है और थोड़ी गज़ब
भीड़ भी है , हंगामे भी ,
उथला उथला समुंदर,
टखनों से घुटनों तक डूबे बस ,
इतना पानी लिए
ज्ञान का भण्डार भी ।
शोर तो है उसमें भी
खेल भी खेलते हैं बच्चे
पर उस शोर और खेल में
उनकी मासूमियत कहीं गायब है,
और शरारतों पर शातिरपना हावी है ।
वक़्त का तकाज़ा है,
या गर्द ओ गुबार,
जिसे, तेज़ी से भागती हुयी दुनिया,
खुद में समेटे दौड़ रही है ।
मासूमियत और भोलापन,
बच्चे जिनके लिए प्यार किये जाते थे,
अब कितनी भी तलाश करूँ,
उनमें नहीं मिलते !!
( विजय शंकर सिंह )
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