Sunday, 23 October 2016

सेना को भयादोहन से प्राप्त धन की आवश्यकता नहीं है / विजय शंकर सिंह

सरकार इक़बाल से चलती है । इक़बाल साख से बनता है । साख कानून के प्रति निष्ठा से धीरे धीरे उभरती है । निष्ठा , क़ानून का बिना किसी भी भय या लोभ के पालन का नाम है । पर 22 अक्टूबर 16 को जो मुम्बई में एक निर्वाचित सरकार के मुखिया के सामने एमएनएस के राज ठाकरे और फिल्मोद्योग के कुछ फिल्मकारों के बीच हुआ , यह एक निंदनीय दुःखद और सरकार , तंत्र , सारे ताम झाम का राज ठाकरे जैसे एक न्यूसेंस के समक्ष नॉनसेन्स भरा आत्म समर्पण है । राज ने शर्तें रखी। फिल्मकार भी क्या करते ? जिस निज़ाम के भरोसे वे इस उम्मीद में हैं कि वह उनकी सुरक्षा करेगा , वही बिचौलिया बना है तो उन्होंने स्वीकार कर लिया । उनका धन लगा है । उन्हें आगे भी फ़िल्में करनी है । सरकार का आलम यह है , तो ठीक ही है, कुछ पैसे रंगदारी के ही सही । मोहल्ले का निम्न कोटि का चौकी इंचार्ज जैसा सेटल कराता है वैसा ही यह सेटलमेंट हैं। यह बिलकुल नहीं होना चाहिए था । और मुख्य मंत्री के सामने उन्ही के निमंत्रण पर उनके ही कक्ष में । यह तो बिलकुल नहीं । हाँ राज और अन्य फिल्मवाले भले ही बैठ कर आपस में तय कर लें तो कोई बात नहीं । यह तो होता रहता है । गुंडे तो पिछले पचास साल से यह टैक्स वसूल रहे हैं । लोग देते भी हैं । इस लिए कि उनका पुलिस पर यकीन नहीं । वे यह मानते हैं कि उनके ही धन से कुछ अंश पुलिस के पास भी पहुँचता है । यह पुलिस की प्रोटेक्शन मनी है ! पर जब सरकार का मुखिया ही सारे मामले सेटल करा रहा है तो, उनके पास न तो कुछ कहने के लिए शेष बचा और न ही कुछ न मानने के लिए ।

किस्सा की शुरुआत यूँ होती है । ऐ दिल है मुश्किल एक फ़िल्म है करण जौहर की । फ़िल्म में एक पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान ने काम किया हैं। फवाद कोई नामचीन नाम नहीं है । पर फ़िल्म में हैं तो हैं वे । फ़िल्म जब बन रही थी तो भारत पाक के रिश्ते प्रत्यक्षतः सामान्य थे । प्रधान मंत्री जी वहाँ सरकारी और निजी रूप से भी एक दो बार जा चुके थे । संघ प्रमुख जिनकी प्रेरणा के बिना इस सरकार के मंत्री कोई काम नहीं करते , भी पाकिस्तान को छोटा भाई कह चुके थे । पर पाकिस्तान के रिश्ते भी बिलकुल पहाड़ी मौसम की तरह हैं । कब धूप खिल जाए और कब आंधी तो कब बादल फट जाए, यह कयास ही नहीं लगाया जा सकता । उसने पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमला करा दिया और दोनों देशों के सम्बन्ध बिगड़ गए । फिर उड़ी में एक बड़ी आतंकी घटना हो गयी । बस अचानक पूरा देश आक्रोशित हो गया और इसका गुस्सा पाकिस्तान पर निकलने लगा । कभी सिंधु जल संबंधी समझौते को तोड़ने की बात चली तो कभी मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्ज़ा समाप्त करने का , और कभी उसे आतंकवादी राज्य घोषिन कराने का अभियान , सरकार चला ही रही है । विश्व जनमत पाक की आतंकी हरकतों को समझ भी रहा हैं। इसी बीच  पाक घृणा पर जीवित रहने वाला मुम्बई के ठाकरे परिवार के एक सदस्य और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने एक फरमान जारी किया कि, पाक से आये हुए सभी कलाकार मुम्बई छोड़ कर तीन दिनों में चले जाएँ । वे चले भी गए । पर जिन फिल्मों में उन्होंने काम किया है, वे फिल्में अब प्रदर्शन के लिए तैयार हुईं है । अब यह फरमान निकला कि जिन फिल्मों में पाक कलाकार हैं, उन फिल्मों को प्रदर्शित नहीं होने दिया जाएगा । यह इस व्यवसाय के लिए एक झटका जैसा था । सोशल मीडया पर भी देशभक्ति ब्रिगेड सक्रिय हुयी, टीवी डिबेट भी हुआ और जिसने भी कला संस्कृति की बात करते हुए इसे भौगोलिक सीमाओं से परे रखने की बात की, वह  देशद्रोही करार दे दिया गया । फिर सरकार का बयान आया कि पाक कलाकारों की आवाजाही पर रोक लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है । इसके बाद सरकार ने फ़िल्म के प्रदर्शन पर किसी भी प्रकार की रोक न लगाते हुए उसे पर्याप्त सुरक्षा देने का आश्वासन दिया ।

अब मुम्बई में राज ठाकरे पर दबाव पड़ा । तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने फिल्मकारों और राज ठाकरे के बीच बात करायी और यह फैसला हुआ कि,
- कोई भी फ़िल्मकार भविष्य में किसी भी पाक कलाकार को भारतीय फिल्मों में काम करने के लिए साइन नहीं करेगा ।
- ₹ 5 ,करोड़ , फ़िल्म निर्माता करण जौहर आर्मी रिलीफ फण्ड में देंगे ।
सरकार का इस बातचीत में पड़ना और स्वयं मुख्य मंत्री का इन सभी शर्तों से सहमत होना और बाद में राज ठाकरे का न्यूज़ चैनेल्स पर प्रकट हो कर इन सारी शर्तों का खुलासा करना यह बताता  हैं कि जो उस अराजक संगठन ने चाहा वह उस संगठन ने किया । मुख्यमंत्री मूक दर्शक बने रहे या यह सब उनकी भी सहमति से होता रहा यह समय ही बताएगा। समझौता गुंडों और फिल्मकारों के बीच था । वे कोई मज़दूर संगठन के हैं नहीं कि इनसे भिड़ते । और सरकार जिस पर उन्हें उम्मीद थी वही वहाँ बिचौलिया बनी बैठी है ।  उनसे तो उठक बैठक भी कराइये उस समय तो भी वह राज़ी हो जाएंगे । उनका धन, उनकी फ़िल्म सब तो दांव पर लगी हुयी है । पर सरकार ने जिस सुरक्षा का आश्वासन उन्हें दिया था, उसका क्या रहा ? अब इस से यह निष्कर्ष निकलता है कि फ़िल्में  सेंसर से भले बच जाएँ पर एमएनएस के गुंडों के कैंसर से नहीं बच पाएगी ।

सरकार को इस सम्बन्ध में मनसे के गुंडों और राज ठाकरे को कड़ा सन्देश देना चाहिये था । उन्होंने बहिष्कार का आह्वान किया था । कोई भी बहिष्कार का आह्वान कर सकता है । वह प्रदर्शन, मानव श्रृंखला , बैनर पोस्टर आदि का अभियान आदि चला सकता है । यह सब लोकतांत्रिक विरोध के तरीके हैं । पर '  फिल्म चली तो मल्टीफ्लेक्स वाले अपने नुकसान के स्वयं जिम्मेदार होंगे '  यह कथन यह बताता है कि देश और सेना तो बहाना है । मूल मुद्दा है फिल्मकारों को, जहां काला धन सबसे अधिक उपजता और खपता है, यह सन्देश देना है कि आमची मुम्बई मेरी ही है । समझते बूझते रहिये । गुंडों , माफियाओं और इसी नस्ल के राजनीतिक दलों का यह एक पुराना और आजमाया हुआ दांव है । सरकार को उन सभी एमएनएस के अराजक तत्वों की पहचान कर के उनके खिलाफ आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए थी । पर एक भी धमकी देने वाला गुंडा न तो गिरफ्तार हुआ और न ही उनके खिलाफ मुक़दमा कायम हुआ । और तो और सरगना सरकार की गोद में बैठ कर शर्तें डिक्टेट कर रहा है । और जो वह कह रहा है, उसे ही सब मान भी रहे हैं और किसी का यह साहस भी नहीं कि यह पूछे कि आप ने धमकी क्यों दी और क्यों न आप की धमकी पर आप के खिलाफ भारतीय कानून के अन्यर्गत कार्यवाही की जाय ? यह वही राज ठाकरे हैं जिन्होंने दो साल पहले टोल प्लाज़ा पर कर्मचारियों से मार पीट की थी और आगज़नी की थी । तब भी इन गुंडों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुयी और राज ठाकरे तब भी महाराष्ट्र के इन्ही मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के साथ चाय पी कर मुस्कुराते निकल आये थे । यह सरकार और कानून का कुछ गुंडों के विरुद्ध साष्टांग दंडवत है ।

इस सेटलमेंट की प्रतिक्रिया तत्काल ही हुयी । अवकाश प्राप्त एयर वाइस मार्शल , बहादुर ने कई ट्वीट कर के इस सेटलमेंट की निंदा की और कहा कि सेना को ऐसे राजनीतिक मामलों में नहीं घसीटा जाना चाहिए । सेना ने राज - सरकार फ़िल्म सेटलमेंट फीस स्वीकार करने से मना कर दिया । सेना के कई भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारीयों ने भी इस क़दम की निंदा की सेना के वर्तमान और भूतपूर्व कई जनरल ने इसे अपमानजनक बताया । ले.जनरल जसवाल ने बताया कि
" सेना कोई भीख का कटोरा ले कर नहीं घूम रही है । जिसे स्वेच्छा से आर्मी रिलीफ फंड में धन देना हो तो जो निर्धारित प्रक्रिया है उसके अनुसार वह धन दे । "
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि, भारतीय सेना एक अराजनीतिक और धर्म निरपेक्ष संस्था है और वह इस तरह की राजनीतिक गतिविधियों से उसका कोई सरोकार नहीं है ।
आज अभी समाचार पत्र में यह खबर भी है कि 5 करोड़ रूपये की कोई शर्त नहीं थी । यह उन्होंने स्वेच्छा से माना है । स्वेच्छा दबाव युक्त है या दबाव मुक्त, यह इन खबरों के बीच खो गया है । पर राज ठाकरे और मनसे का ट्रैक रिकार्ड मुम्बई में गुंडई और भयादोहन करने वाले संगठन का रहा है । और इसे सभी जानते हैं ।

( विजय शंकर सिंह )

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