Wednesday, 6 April 2016

एन आई टी ( NIT ) श्रीनगर काण्ड - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

एन आई टी श्रीनगर में जो हुआ है वह घोर निंदनीय है । पर हुआ क्यों ? आज के पहले तो यह रोग नहीं था । यह आया कहाँ से ? इसकी पड़ताल भी ज़रूरी है और इसकी रोक थाम भी  । भारत माता हैं या पिता यह तो वे जाने जो भारत के अस्तित्व और स्वरूप को लेकर संशय में हों । मेरे लिए यह मेरा देश है और इस देश के सभी नागरिकों का दायित्व है कि वह देश के संविधान को अक्षरशः माने ।  जो नहीं मानना चाहता , उसकी बात भी सुनिए भले ही उसकी बात से सहमति हो या नहीं हो। अगर वह विधि विरुद्ध हो तो उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाय । कुछ सालों से माहौल में जो ज़हर कुछ लोगों ने इंजेक्ट करना शुरू किया था, वह अब फैलने लगा है । आग और ज़हर कभी नियंत्रित नहीं रह सकते हैं । वह जब अनियंत्रित हो जाते हैं तो किसी को भी नहीं बख्शते हैं। वेदों के काल से ही वैश्वानर की स्तुति का विधान है । अग्नि चाहे चूल्हे की हो या यज्ञ कुण्ड की इसे नियंत्रित रखना ही पड़ता है । और घृणा भी एक प्रकार की अग्नि का परिणाम है । वह अग्नि है इर्श्यग्नि। ईर्ष्या का एक रूप वैमनस्य भी है । यह वैमनस्य धर्म जनित भी हो सकता है और जाति से जुड़ा भी । वैमनस्य हिंसा का मार्ग भी अंत में ग्रहण करता है । चाहे वह परिवार में हो, या समाज में , या देश में , या विश्व में । युद्धों का इतिहास खंगालिए आप खुद ब खुद इसी निष्कर्ष पर पहुँच जाएंगे ।

भारत में रहना होगा तो वंदे मातरम् कहना होगा । जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा वह देश में नहीं रह पायेगा। इन नारों का जन्म किस दिमाग और मानसिकता की उपज है मित्रों ? जब मैं,  धवल वस्त्र धारण किये चन्दन सुशोभित मस्तक लिए, आँखों से चरण स्पर्श करने वालों को अत्यंत ओढ़ी गयी गरिमा और चरण न छूने वालों की और हिकारत की नज़र से देखते हुए कुछ लोगों को जब यह फतवा जारी करते हुए कि जो इन मन्त्रों का जाप नहीं करेगा वह देशभक्त नहीं माना जाएगा, देखता हूँ तो, वितृष्णा हो जाती है । वितृष्णा इस लिए नहीं कि उनके वस्त्र धवल हैं, इस लिए नहीं कि, उनके ललाट चंदनासुशोभित हैं, बल्कि इस लिए कि किसने उन्हें और कब यह अधिकार दे दिया कि वे यह तय करें कि क्या बोलना देश भक्ति का पैमाना है । दर असल यह एक प्रकार का स्वमहत्व बोध है । अंग्रेज़ी की एक कविता की प्रसिद्ध पंक्ति की तरह , I am the monarch , what I survey !  जहां तक मैं देखता हूँ  वहाँ का मैं सम्राट हूँ । यह कविता ग्रीक सम्राट सिकंदर के सन्दर्भ में है । इस प्रकार का भाव एक प्रकार का दम्भ है, अहमन्यता है ।

कभी कभी यह भी एक मानवीय प्रवित्ति होती है कि जो आप कहते हैं या कहना चाहते हैं, वही मैं भी कहता हूँ और कहना चाहता हूँ पर आप की ज़िद , घमंड और जिस टोन और टेनर से आप चाहते हैं कि मैं वही कहूँ, तो मैं उखड जाता हूँ। नहीं कहूँगा और आप के अहम् की संतुष्टि के लिए तो कदापि नहीं । मेरा विरोध उस वाक्य से नहीं है , मेरा विरोध आप की ज़िद से है, आप के दर्प से है और आप की मानसिकता से है। यह मैं अपनी बात कह रहा हूँ । मैं सिर्फ कोई बात इस लिए मान लूँ कि आप ने कहा है मानो और कहो तो वह मेरे और मुझ जैसे मानसिकता के लोगों के लिए संभव नहीं है । आज जो भारत माता की जय को एक मुद्दे के रूप में  प्रस्तुत कर रहे है और विवादित बना रहे हैं सच में वही लोग भारत माता के जाने या अनजाने , विरुद्ध हैं । भारत का अहित कर रहे हैं । यह एक बहु भाषी देश है। अनेक  भाषा परिवारों का देश है । भारोपीय, द्रविड़ , आदि प्रमुख भाषा परिवारों के अतिरिक्त अनेक भाषा परिवार हैं । मैं इन परिवारों के अलग अलग भाषाओं की बात अभी नहीं कर रहा हूँ। इसी प्रकार अनेक धर्म और उनके अनेक मत मतान्तर भी हैं। सबके रीति रिवाज़ अलग अलग हैं । फिर अगर कोई अपने देश के प्रति अपनी भावना , संस्कृति , भाषा और ऐतिहासिक विरासत के अनुसार भारत माता के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना चाहे तो किसी को आपत्ति क्यों है ? ज़िद क्यों है ? सनातन धर्म विभिन्नता में एकता का अनुपम उदाहरण है । जहां हर पूजा के पूर्व पुरोहित सबसे पहले आप का नाम, गोत्र पूछता है और फिर कहता है ईष्ट का ध्यान कीजिये, वह ईष्ट खुद नहीं बताता है , उसे चुनने का विकल्प व्यक्ति पर ही छोड़ देता है, इस से निजी स्वतंत्रता का अधिकार दुनिया के किसी भी धर्म या समाज में दुर्लभ है । ईष्ट , महादेव से ले कर गांव के बाहर एक चबूतरे पर स्थापित अनगढ़ से डीह बाबा भी हो सकते हैं । इसी लिए इस समाज में जब ज़िद और अहंकार से जुडी बातें होंने लगतीं हैं तो विरोध उठने लगता है।

यह सारी समस्याएं पिछले दो साल में ही क्यों जन्म ले रही हैं। इन्ही दो सालों में बीफ विवादित हुआ, तिरंगा और भगवा को एक कहा गया, प्रधान मंत्री की आलोचना को देश निंदा और कभी कभी ईशनिंदा भी कहा गया, भारत माता की जय न बोलने पर पाकिस्तान भेजने की बात की गयी , बिना दुर्गा सप्तशती पढ़े और तमिल संस्कृति सहित देश की आटविक संस्कृति जाने समझे महिषासुर पर विवाद खड़ा किया गया और अब विभुं विश्वनाथम् को पदावनत कर के राष्ट्रपिता बनाने और घोषित करने की बात होने लगी । यह बौद्धिक विपन्नता  , जितना ही यह बौद्धिक सुनते हैं उतना ही बढ़ती जा रही है । भारत माता की जय आज़ादी के संघर्ष का एक प्रिय उद्घोष रहा है।धरती को माँ लगभग सभी धर्मों में। कहा गया है। ऋग्वेद की अनेक ऋचाएं आकाश को पिता और धरती को माँ कहती हैं । इस से उपजे अन्न को हम खाते हैं । फिर  इस उदगार को ले कर राजनीति क्यों ? राजनीति तो जो इसे बोलने के लिए गर्दन पर छुरी रखने के बाद भी राजी नहीं होने की ज़िद पाले हैं वह भी और जो गर्दन पर छुरी रख कर सिर काट लेने की इच्छा केवल इस लिए रोक रहे हैं कि उनके सामने क़ानून आ जाता है , वह भी , कर रहे हैं । दोनों के अपने अपने एजेंडे हैं । दोनों ही घृणा के दलदल में डूबे हुए हैं और मेरी नज़र में दोनों ही देश का अहित कर रहे हैं । जैसे ओवैसी के 15 मिनट पुलिस हटाने और हिंदुओं के खात्मा की बात पर, उनके खिलाफ मुक़दमा कायम किया गया और वे जेल भेजे गए , वैसा ही मुक़दमा रामदेव जो पतंजलि उत्पाद के मालिक हैं के खिलाफ भी कायम किया जाना चाहिए। ऐसा उन्मादी व्यक्ति भला किस मुंह से योग की बात करता है ? योग पेट फुलाना और पचकाना तथा सिर्फ आसन ही नहीं है। अष्टांग योग आहार से समाधि तक की एक दिव्य यात्रा है। जहां तक आप जा सकें यह आप पर निर्भर करता है ।

आज एन आई टी श्रीनगर में सी आर पी ऍफ़ गयी और तिरंगा फहराया गया । अब यह स्थिति आ गयी है कि जिसके अभिन्न अंग होने का  दावा हम सब उठते ,बैठते ,सोते , जागते करते रहते हैं, वहाँ एक सामान्य से अवसर पर भी तिरंगा फहराने के लिए सी आर पी ऍफ़ को घुसना पड़े  , यह एक शर्मनाक स्थिति है । अफज़ल ज़िंदाबाद और भारत की बरबादी के नारे लगाने वाले आज तक न तो पकडे गए और न ही पहचाने जा सके । इन नारे लगाने वालों और उन सब को जिन्होंने एन आई टी श्रीनगर में , उन छात्रों को पीटा है जो तिरंगा फहरा रहे थे और भारत माता की जय का उद्घोष कर रहे थे की पहचान करना और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना आवश्यक है। कानूनी रूप से भी तिरंगा फहराने से रोकने पर कार्यवाही की जा सकती है । लेकिन  हर कार्यवाही निष्पक्ष करनी होगी। ऐसा नहीं कि ओवैसी धमकी के आरोप में जेल जाएँ और रामदेव् सी आर पी एफ के घेरे में सुरक्षित रहें । क़ानून के आँख पर बंधी पट्टी इस बात की प्रतीक है कि वह सबको निष्पक्ष भाव से देखे और निर्णय दे। वह चुपके से कनखिया के , जैसे हम सब बचपन में आईस पाईस खेलते समय जुगाड़ से कुछ देख लेते थे , वैसा न देखे ।

( विजय शंकर सिंह )

1 comment:

  1. बहुत सही ढंग से आपने अपनी बात कही और उद्देश्य भी इंगित किया।कभी - कभी राजनीतिक पार्टियों तुष्टीकरण के लिए हद पार कर जाती हैं।जो थोड़ा बहुत किसी पार्टी से आशा है,वो भी टूटती प्रतीत होने लगी है।

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