Saturday, 2 April 2016

भगवा ध्वज बनाम राष्ट्रीय ध्वज - भैया जी जोशी का तर्क - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

संघ के विचारक भैया जी जोशी का बयान आया है कि भगवा झंडा को राष्ट्रध्वज मानना गलत नहीं है । तिरंगा तो बाद में बना ।

भगवा ध्वज मूलतः धर्म के प्रतीक रंग का ध्वज है। यह रंग मूलतः सन्यासियों का है। हर व्यक्ति सन्यासी नहीं हो सकता था । स्त्रियों को सन्यास ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी । आश्रम व्यवस्था की बाध्यताएं जो ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के पड़ाव से गुज़रती थी, के नियम स्त्रियों पर लागू नहीं होते थे । संन्यास ब्रह्मचर्य आश्रम में भी लिया जा सकता था। आदि शंकराचार्य ने स्वयं 12 वर्ष की अल्पायु में ही संन्यास ले लिया था। संन्यास लेने की भी एक निर्धारित प्रक्रिया और  विधि थी । अपने जीवित रहते हुए ही संन्यास लेने को इच्छुक व्यक्ति द्वारा अपने अंत्येष्टि , जो प्रतीक रूप से ही की जाती थी, कर ली जाती थी । और साथ ही तेरह दिन बाद होने वाला त्रयोदशाह और बरसी भी उसकी हो जाती थी। सन्यासी का इस दुनिया में रखा हुआ नाम और वल्दियत भुला दी जाती थी और संन्यास के बाद एक नया नाम रखा जाता था और वल्दियत में गुरु का नाम होता था । सन्यासी का यह पुनर्जन्म होता था और संन्यास पूर्व के सभी सामाजिक रिश्ते समाप्त हो जाते थे। ऐसे ही सन्यासियों का पहचान के लिए यह रंग विशेष  जो भगवा होता था  निश्चित किया गया है । सनातन धर्म के सन्यासियों का यही रंग उनकी ध्वजा का हो गया । आज भी कुम्भ या जहाँ भी धर्म संगमन आयोजित होता है, यह ध्वजा फहरायी जाती है ।

सनातन धर्म अपने बाद आये हुए सभी धर्मों से अलग है । यह अकेला धर्म है जिसका कोई प्रवर्तक नहीं है, कोई एक पुस्तक नहीं है, कोई एक प्रतीक नहीं है, कोई एक देवता नहीं है और न ही कोई एक पवित्रतम स्थल। सेमेटिक धर्मो  यहूदी, ईसाई और इस्लाम तथा भारतीय धर्म जैन बौद्ध और सिख धर्मों के कोई न कोई प्रवर्तक हैं। सेमेटिक धर्मों में, ओल्ड टेस्टामेंट, न्यू टेस्टामेंट, जो बाइबल के ही अंग हैं और कुरआन अपने अपने धर्मों यहूदी, ईसाई और इस्लाम के सर्वोच्च ग्रन्थ है । इन धर्मों का मानने वाला, कोई भी व्यक्ति हो इन पुस्तकों की सवोच्चता और वैधानिकता पर प्रश्न नहीं उठा सकता है । जब कि सनातन धर्म में आप ईश्वर और धर्म के अस्तित्व पर भी प्रश्न ही नहीं बल्कि उन्हें नकार कर भी रह सकते हैं । जैन और बौद्ध तो निरीश्वर वादी धर्म हैं ही और चार्वाक तो एक अलग ही दर्शन है ।

वेदों को भी अपौरुषेय कहा गया है । पर इस धर्म की कोई एक निश्चित पुस्तक  नहीं है । यह उन प्राकृतिक शक्तियों जिन्हें उनकी उपादेयता के कारण देवता मान लिया गया है, की स्तुतियाँ हैं । कहीं कहीं तत्कालीन इतिहास भी है। जैसे ऋग्वेद के सप्तम मंडल का देवासुर संग्राम । पुराण तो इतिहास की गाथा है ही । उपनिषद दर्शन का श्रोत है और रामायण तथा महाभारत तो साहित्य की कोटि में आते हैं । गीता तो कठिन और द्वंद्व के समय में कैसे उस दुविधा से पार पाया जाय , का एक अद्भुत दर्शन है । इन सभी ग्रंथों को इनमे बिखरे हुए सद्विचारों के कारण हम धार्मिक ग्रन्थ मान लेते हैं । पर यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक ग्रन्थ ही सर्वोच्च है । वेद चूँकि सृष्टि की सबसे प्राचीन ग्रन्थ परम्परा है अतः उसका महत्व सबसे अधिक है ।

आर एस एस के भैया जी जोशी, जिस भगवा ध्वज की बात करते हैं वह आर एस एस द्वारा अंगीकृत किया हुआ भगवा ध्वज है । यह ध्वज दो मुंहा होता है और इसे अग्नि ज्वाल कहते हैं । यह ध्वज शिवाजी जिन्हें हिन्दू पद पादशाही का प्रतीक समझा जाता है वहाँ से लिया गया है । शिवाजी ने औरंगज़ेब को कड़ी चुनौती दी और वर्तमान महाराष्ट्र के काफी बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित किया । उनके राज्य की व्यवस्था अष्ठ प्रधान संभालते थे और उनका प्रमुख पेशवा होता था । यह परंपरागत प्राचीन राज्य व्यवस्था जहां राजा तो क्षत्रिय होता था पर उसका महामंत्री ब्राहण होता था के ही अनुरूप था। ब्राह्मण राजा नहीं हो सकता था , चाहे वह कितना भी सबल और प्रभावी हो जाय । पेशवा के नेतृत्व में दक्षिण से मराठा साम्राज्य का विस्तार उत्तर तक हुआ पर 1761 के अंतिम पानीपत के युद्ध में मराठा फौजों की हार हुयी और फिर तो देश को एक नये प्रकार के साम्राज्यवाद से रू ब रू होना था, जो घोड़ों की पीठ पर तलवार ले कर नहीं बल्कि, सागर पार से तिज़ारती शातिरपने से भरा हुआ था। वह था ब्रिटिश साम्राज्यवाद ।

आर एस एस की विरासत मराठा राज्य की विरासत रही है । शिवाजी के हिन्दू पदपादशाही के ही सिद्धांत को इसने अंगीकार किया और विराट हिन्दू वांग्मय और परम्परा से , सनातन धर्म के एक नए रूप को आसुत किया जिसका नाम दिया गया हिंदुत्व। 1857 के विप्लव को अँगरेज़ कभी भूल नहीं सकते थे । अगर उस विप्लव के समय गुरखे, सिख और मराठों के सिंधिया ,होलकर आदि साथ आ गए होते तो इतिहास किसी और राह पर चल पड़ता। पर इतिहास के साथ ऐसा नहीं होता है । अंग्रेजों ने एक रणनीति के अंतर्गत कभी मुस्लिमों को तो कभी मुस्लिम विरोध में हिन्दू संगठनों को खड़ा किया । कांग्रेस जो इनकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थी को इन्होंने कभी मुस्लिम लीग से लड़ाया तो कभी इनके खिलाफ हिन्दू संघटनों हिन्दू महासभा और आर एस एस को खड़ा किया । इसी लिए जब आज़ादी के लिए अंतिम संघर्ष 1942 में भारत छोडो आंदोलन के रूप में प्रारम्भ हुआ तो , उस समय मुस्लिम लीग और आर एस एस तथा हिन्दू महासभा ने अंग्रेजों का साथ दिया । दो विपरीत ध्रुव एक साथ खड़े हैं जो इस सिद्धांत का ही प्रतिपादन करते हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता है और यह संभावनाओं का खेल है । इस साथ देने के एवज़ में मुस्लिम लीग को तो पाकिस्तान मिला पर हिन्दू महासभा और आर एस एस , वह नहीं पा सके जो ये चाहते थे । क्यों कि कांग्रेस शुरू से ही धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत चाहती थी, और अँगरेज़ कांग्रेस को ही देश का प्रतिनिधि मानते थे । गांधी से आर एस एस की यही खुन्नस है । जनता में आर एस एस या बाद में बने इसके राजनीतिक अवतार भारतीय जनसंघ को जनता का कोई समर्थन न तो आज़ादी के संघर्ष के दौरान प्राप्त था और न ही आज़ादी के बाद ही। आर एस एस ने या तो भारतीय परम्परा और संस्कृति के बहुलतावादी स्वरुप को समझा ही नहीं या समझने की कोशिश नहीं की  ।

भैया जी जोशी इसी ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के बराबर मानते हैं । राष्ट्रीय ध्वज के विकास का इतिहास देखेंगे तो पाएंगे कि वर्तमान ध्वज , कभी कांग्रेस का झंडा जिसमे चरखा बना था से ही लिया गया है । रंगों का अर्थ किसी सम्प्रदाय या धर्म की और इंगित नहीं करता है वरन् उसकी अलग ही व्याख्या है । केसरिया रंग शौर्य और बलिदान का प्रतीक, सफ़ेद रंग शान्ति का तो, हरा रंग शस्य श्यामला का प्रतीक है । चक्र जिसमे 24 तीलियाँ होती हैं  , प्रगति और निरंतर गतिमान रहने का प्रतीक है । आप इसकी व्याख्या चरैवेति चरैवेति से भी कर सकते हैं । वैसे यह सम्राट अशोक के मशहूर चार सिंह के स्तम्भ के नीचे बने चक्र से लिया गया है । इस तिरंगे को देश के संविधान के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में मान्यता दी गयी है । इसके आरोहण और उतारने की एक निश्चित ड्रिल और बिगुल ध्वनि होती है । इसका अपमान करने वालों को दण्डित करने का भी प्राविधान भी है । पर भगवा ध्वज एक संगठन का ध्वज है जिसका भारत के वर्तमान स्वरुप में कोई भी योगदान नहीं हैं । अगर जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लिए पागलपन भरा उन्माद न दिखाया होता तो  आर एस एस और हिन्दू महा सभा एक अल्पज्ञात संगठन ही बना रहता । भारत के बंटवारे और तत्समय हुए भयानक दंगे जो पाकिस्तान के अंदर एकतरफा हुए और जिन्हें वहाँ रोकने वाला कोई नहीं था ने , की स्वाभाविक और व्यापक प्रतिक्रिया भारत में हुयी। परिणामस्वरूप एक वर्ग यह तर्क देने लगा कि जब मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान बना तो  भारत या हिन्दुस्तान जिसे वे बेहद चालाकी से हिन्दुस्थान कहते हैं, को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिये । यह कुछ नहीं बल्कि जिन्ना के दिमाग की उपज द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के सिक्के का दूसरा पहलु ही था ।

सभी राजनीतिक दलों और संगठनों के अपने अपने ध्वज होते हैं । सबको अपनी अपनी रूचि के अनुसार ध्वज डिजाइन करने और उनकी व्याख्या करने का अधिकार है । आर एस एस भी इस अधिकार के अंतर्गत अपना ध्वज भगवा रखने के लिए स्वतंत्र है।  पर उस भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज जैसा सम्मान या उसके बराबर माना जाय यह सर्वथा अनुचित और यह नॅशनल ऑनर एक्ट के अंतर्गत दंडनीय अपराध भी है ।

( विजय शंकर सिंह )

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