आज राम नवमी है । राम आज ही के दिन अयोध्या में जन्मे थे । अयोध्या , ईक्शाकु की धरती । भगीरथ , दिलीप , रघु, की धरती । दधीच की धरती जिनकी अस्थियों से वज्र बना जिस से इंद्र ने वृत्तासुर का नाश किया । इन राजाओं को छोड़ दें तो, ऋषभ देव भी , जो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर थे, अयोध्या के ही राजा थे । पता नहीं कब से अयोध्या आर्यावर्त का केंद्र बनी रही । वाल्मीकि का रामायण, तुलसी का राम चरित मानस, कृत्तिवास का बांगला रामायण, कंबन का तमिल रामायण, कालिदास का रघुवंश इस महान राज वंश की कथा समेटे हुए हैं । इसी वंश में दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में राम का जन्म हुआ था । वे पहले मनुजावतार थे । दुसरे कृष्ण हैं । राम आठ कलाओं के तो, कृष्ण सोलह कलाओं के यानी पूर्णावतार थे ।
राम का वंश सूर्यवंश था । पर इसी वंश में रघु जैसे प्रतापी राजा के जन्म लेने के कारण , यह वंश रघुवंश कहलाया । राम अयोध्या के आख़िरी राजा थे । फिर उनके वंश का अयोध्या में अंत हो गया । राम अपने सभी भाइयों सहित, सरयू में जल समाधि ले लिए और उसके बाद ही रघुवंशियों का वहाँ से पलायन हो गया । आज भी अयोध्या और फैज़ाबाद के आस पास के जनपदों में रघुवंशियों का कोई बड़ा गाँव या इलाक़ा नहीं है । इक्का दुक्का परिवार हो सकते हैं पर समूह के रूप में कोई गाँव नहीं है ।
संसार अपने सुख दुःख के चक्र से किसी को नहीं बख्शता है । राम भी अपवाद नहीं रहे । बनवास, पत्नी का अपहरण, रावण से युद्ध, झूठे आरोपों के कारण पत्नी का त्याग, और फिर अपने पुत्रों से ही युद्ध । कितना कोई दंश सहता । कितना दुःख झेलता कोई । एक ऐसे बनवास के आदेश का पालन , जो निर्गत ही नहीं हुआ था । सिर्फ पिता द्वारा अपनी विमाता को दिए गए वचन का पालन , इन्होंने किया ।यह सारे दुःख यह बतातें हैं कि मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है । सीता के हरण और लक्ष्मण के शक्ति लगने पर राम का भावुक उदगार , आँखें नम कर देता है । हम जिसमे अवतार और देवत्व ढूंढते हैं वह भी कितना निरीह हो जाता है । पर इसी निरीहता का सामना राम ने कितने चातुर्य और धैर्य से किया यह भी उल्लेखनीय है ।
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है । यह राम के प्रति हमारा अतिरिक्त सम्मान है । पर मर्यादा बराबर बनी रही हो ऐसा भी नहीं हुआ । बालि का पक्षपात पूर्ण वध, सीता की अग्नि परीक्षा, अयोध्या आने के बाद सीता का परित्याग, और शम्बूक का वध, मर्यादा भंग होने के उदाहरण हैं । लेकिन अगर व्यावहारिक पक्ष देखें तो, बालि का वध, सुग्रीव का साथ पाने के लिए आवश्यक था । लेकिन सीता की अग्नि परीक्षा, परित्याग और शम्बूक का वध , राम के आख्यान के कृष्ण पक्ष को ही उजागर करते हैं । लेकिन इस से राम के विराट चरित्र को लघुकाय कर के नहीं देखा जाना चाहिए ।
फिर भी इन कुछ मानवीय दुर्बलताओं के बाद भी राम का चरित अद्भुत है। यह दुर्बलताएँ हमें आभास कराती हैं कि हम संसार में कितने भी सबल हों, अतिमानव नहीं हैं। हम सब में दुर्बलताएँ हैं । ईश्वर भी जब मनुष्य रूप में धरा पर आएंगे तो वे भी मानवीय दुर्बलताओं से मुक्त नहीं हो पाएंगे । वेदों में देव या देवता बनने की बात कहीं नहीं कही गयी है । कहा गया है तो, मनुर्भव , मनुष्य बनो कहा गया है । कोई भी महान ऋषि मानवीय दुर्बलताओं से कभी भी मुक्त नहीं रहा है । राम का उत्तर से दक्षिण तक जाना, देस की राष्ट्रीय एकता का परिचायक है। अगस्तय पहले व्यक्ति थे, जो उत्तर से दक्षिण की ओर गए थे । फिर राम का उल्लेख मिलता है । आज उन्ही राम की जयन्ती है । उन्हें प्रणाम और आप सब मित्रों को शुभकामनाएं !!
( विजय शंकर सिंह )
Excellent
ReplyDelete