Monday, 23 November 2015

मुलायम सिंह यादव का जन्म दिवस समारोह - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह




मुलायम सिंह जी, आप को जन्मदिन की कोटिशः शुभकामनाएं !! आप दीर्घजीवी हों. स्वस्थ और सानंद रहें, यह मेरी मंगल कामना है.

आप के जन्म दिन का जश्न टीवी पर और अखबारों में देखा. आप के गाँव के उन बुज़ुर्गों को जिन्होंने आप का बचपन और किशोरावस्था देखा होगा, यह जश्न देख कर कैसा लगा होगा, इसका कुछ अनुमान लगाने की मैं कोशिश कर सकता हूँ. धरती से जुड़े व्यक्तित्व जिसे जिस किसी ने भी धरती पुत्र का नाम दिया है, वह इस आकाशीय और दिव्य जन्म दिन समारोह के अवसर पर उपस्थित है या नहीं मुझे नहीं पता. पर उसके चिंतन में आप के इस राजसी वैभव युक्त समारोह को लेकर कोई परिवर्तन तो ज़रूर ही आया होगा. आप एक धुर समाजवादी थे. दावा आज भी आप यही करते हैं. नाम से तो है हीं. आप ने किशोरावस्था में नहर रेट बढ़ने को लेकर आंदोलन किया था और जेल गए. लोहिया ने आप को प्रभावित किया। आंदोलन और जुझारूपन आप के विशिष्ट गुण है. राम जन्म भूमि आंदोलन के दौरान जो आप ने मुख्य मंत्री रहते झेला इसे सभी जानते हैं. आप के समर्थक भी और आप के अधिकारी भी और आप के विरोधी भी . आप मौलाना, मुल्ला, आदि उपाधियों से नवाज़े गए. निजी संबंधों को आप निभाते भी है और निभाना जानते भी हैं. इन सब गुणों और विशेषताओं के बावज़ूद , आज आप के जन्म दिन का उत्सव और इसका ठाठ मुझे अखर रहा है. यह आप की मौलिक विचारधारा, समाजवाद , जो आप को घुट्टी में मिली थी के बिलकुल प्रतिकूल है. बेमेल है.

गोरख पाण्डेय की कविता , समाजवाद , बबुआ धीरे धीरे आई. बहुत याद आ रही है. पर वह हांथी , घोड़े से आने के बजाय हवाई जहाज से भी समाजवाद के तीर्थ सैफई में उतर रही है , यह मुझे अब पता चला है. 50 ज़िले जिस प्रदेश में सूखा ग्रस्त घोषित हों, सालों से गन्ना किसानों का बकाया देना बाकी हो, विकास का अर्थ ही जब केवल बिल्डर लॉबी का विकास बन गया हो, समाजवाद का अर्थ ही जब अपने जाति समाज का विकास हो गया है, विकास का केंद्र विन्दु ही जब सिर्फ अपना गाँव, अर्जुन के चिड़िया के आँख के कथा के अनुसार ही दिख रहा हो, तब समाजवाद पर लिखी गयी बड़ी बड़ी पुस्तकें और 9 खण्डों का लोहिया समग्र तथा बहु खंडी लोकसभा में लोहिया , जैसी पुस्तकों के दिल पर क्या बीतती है , इसका अनुमान मैं आसानी से कर सकता हूँ. जब तक एक भी परिवार प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे है, तब तक इस तरह के चमक दमक भरे आयोजन , वह भी तब जब आप के दल की सरकार हो, चाहे सरकारी धन से आयोजित हों या किसी व्यक्ति के निजी अंशदान से, एक अपराध है. आप मुझ से असहमत हो सकते हैं पर मेरा यही मानना है.

धूमिल बनारस के एक अत्यंत प्रतिभावान कवि रहे है. उनके साथ थोडा बहुत मेरा भी उठना बैठना रहा है. युवावस्था में ही वह चले गए. पर उनकी कवितायें आज भी बहुत याद आती हैं. दो कविताओं के अंश नीचे दे रहा हूँ, शायद आप को पसंद आये. यह समाजवाद पर तंज़ है.

" प्रजातंत्र और समाजवाद , का
यह कौन सा नुस्खा है कि,
जिस उम्र में मेरी माँ का चेहरा,
झुर्रियों की झोली बन गया था ,
उसी उम्र में,
देश के प्रधान मंत्री के चेहरे पर,
मेरी प्रेमिका का लोच है ! "
- यह कविता इमरजेंसी के दौरान , इंदिरा गांधी के ऊपर लिखी गयी थी. मित्रगण झोंक में इसे मोदी जी से न जोड़ लीजियेगा और फिर नून सतुआ ले कर मेरे पीछे पड़ जाइयेगा !!

" समाज वाद,
माल गोदाम में लटकी हुयी,
बाल्टियों की तरह है ,
जिन पर लिखा तो आग है,
पर भीतर, बालू और पानी भरा है "

एक और पढ़ें , यह इस आयोजन पर थोडा सटीक लगेगा..
" जनता, अपने देश की जनता,
उस भेड़ की तरह है ,
जो दूसरों की ठण्ड के लिए,
अपनी पीठ पर
उन की फसल ढोती है. "

हम सब अपनी अपनी पीठ पर ऊन की फसल ढो रहे है. आप और आप के क़बीले के लोगों द्वारा दिखाए गए बाज़ीगरी वादों में खिंचे चले जा रहे हैं. साहिर की बेहद लोकप्रिय नज़्म, वह सुबह कभी तो आयेगी, की उम्मीद में वाबस्ता हम आप को जन्म दिन की शुभकामनाएं दे रहे है. आज रात जब सारे मेहमान विदा हो जाएँ, तो ऐश्वर्य से युक्त अपने ख्वाबगाह में जब आप अकेले हों तो सोचियेगा 75 साल के इस बहुरंगी सफ़र के बारे में . लोहिया के चित्र को भी देखिएगा. चश्मे के भीतर से झांकती उनकी संघर्षशील आँखों में क्षोभ है, रोष है, घृणा है या आशीर्वाद है. या है सिर्फ एक पथराया समाजवाद ?
( विजय शंकर सिंह )

1 comment:

  1. आदरणीय सिंह साहब,
    आपने जिस तरह से बेबाक हो कर सत्य बात लिखी है वो काबिले तारीफ़ है

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