Monday 2 November 2015

31 अक्टूबर 84 , विनम्र स्मरण , इंदिरा गांधी / विजय शंकर सिंह



1984 का आज का ही दिन था. 31 अक्टूबर. मैं चुनार में पुलिस उपाधीक्षक के पद पर नियुक्त था. चुनार क्षेत्र में एक थाना आता है, अदलहाट. इस थाने के एक गाँव , कोलना में , सरदार पटेल के नाम पर एक विद्यालय है. वहाँ के विधायक थे राज नारायण सिंह.वह उसी गाँव के रहने वाले थे, और विद्यालय के प्रबंधक थे. हर साल वह 31 अक्टूबर को पटेल जयन्ती पर विद्यालय में एक उत्सव आयोजित करते थे. इस बार का आयोजन थोडा विशिष्ट था. सरदार पटेल की एक मूर्ति बनी थी, उसके अनावरण का दिन 31 अक्टूबर को रखा गया था. मूर्ति के अनावरण के लिये, उत्तर प्रदेश के मंत्री स्वर्गीय लोकपति त्रिपाठी को आना था. विधायक जी भी कांग्रेसी थे. मंत्री जी को हेलीकाप्टर से ही आना था. गाँव में अतिथि से अधिक अतिथि के वाहन का चार्म होता है. हेलीकाप्टर तो वैसे भी भीड़ खींचता है. और देवदूत आकाश से ही उतरते हैं !



कार्यक्रम दोपहर 11 बजे का था. मैं सुबह 9 बजे पहुँच गया था. सारी व्यवस्थाएं हो गयी थी. मेरे सहयोगी एस डी एम, गणेश शंकर त्रिपाठी थे. वह मिर्ज़ापुर शहर में रहते थे. मैं चुनार में ही रहता था. आवास मुझे मिला नहीं था तो, मैं चुनार के किले में स्थित डाक बंगले में रहता था. चुनार के एस डी एम एक डी डी वर्मा थे, जिनके अवकाश पर रहने के कारण , गणेश जी मेरे साथ थे. 11 बजा. 12 बजा. विधायक जी ने कहा कि ज़रा मंत्री जी का लोकेशन लीजिये. संचार की उतनी सुलभता नहीं थी, जितनी आज है. संचार का एक ही माध्यम था गाड़ी में लगा हुआ वायरलेस सेट, जो थाने के माध्यम से जिला कण्ट्रोल रूम से जुड़ा था. ज़िला मुख्यालय को भी कोई सूचना नहीं मिल रही थी. वह " जैसे ही कोई इत्तला मिलेगी , आप को बता दी जायेगी " का एक सन्देश दुहरा रहा था. 1 बजे सूचना मिली कि मंत्री जी का कार्यक्रम स्थगित हो गया और वह मुख्य मंत्री के साथ दिल्ली निकल गए हैं. कोलना का उनका कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया है.



अब अटकलों का दौर शुरू हुआ. पर किसी को कोई सूचना नहीं थी. आने वाली आपदा का लेश मात्र भी भान किसी को नहीं था. उत्सव स्थल पर देशभक्ति के गीत बज रहे थे. मूर्ति का अनावरण एक बुज़ुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से करा दिया गया था. ड्यूटियां समाप्त कर दी गयीं. हम लोग भी वहाँ से अपने अपने घर दफ्तर के लिए रवाना हुए. वायरलेस से ही गणेश जी एस डी एम जो मिर्ज़ापुर में थे को बता दिया कि अब आने की ज़रुरत नहीं है. उनको भी तब एक कुछ पता नहीं था. थोड़ी देर तक घूमते फिरते जब मैं चुनार पहुंचा तो पता लगा कि दिल्ली में इंदिरा गांधी को गोली मार दी गयी है और वह एम्स में हैं. मृत्यु की कोई पुष्टि नहीं कर रहा था. रेडियो समाचारों का एक माध्यम था. पर उस पर भी कोई सूचना नहीं थी. शाम तक इस वज्रपात का पता चला कि वह नहीं रहीं. तब तक पूरा विवरण नहीं था. 8 बजे की बुलेटिन में सूचना मिली कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधान मंत्री की शपथ दिला दी है. इंदिरा गांधी के निधन की आधिकारिक घोषणा हो चुकी थी. वह अब दिवंगत थी.
नियति कैसे मंच पर अकस्मात अंक परिवर्तित करती है. यह उसका एक उदाहरण है.



देश की अत्यंत प्रतिभावान प्रधानमंत्री , जो विवादित और निन्दित भी कम नहीं रही हैं को , उनके शहादत पर विनम्र श्रद्धांजलि.

( विजय शंकर सिंह )

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