बरसों पहले एक फ़िल्म आई थी. ‘वीर जारा’ . उसमें पाकिस्तानी मां की भूमिका अदा करने वाली कलाकार थीं किरण खेर , जो अनुपम खेर की पत्नी हैं और अब भाजपा से सांसद हैं . शाहरुख़ खान उस फ़िल्म में हीरो थे, और किरण खेर ने उनकी माँ की भूमिका उस फ़िल्म में निभाई थी. किरण खेर फिल्म में शाहरुख खान से पूछती हैं-
‘क्या भारत का हर बेटा तुम्हारे जैसा होता है?’
एक जज़्बाती उत्तर , फिल्म में शाहरुख एक देते हैं-
‘यह तो नहीं मालूम, लेकिन हर मां आप जैसी होती है.’
यह संवाद तो स्क्रिप्ट और कहानी की मज़बूरी है, लेकिन याद दिलाता है कि ज़िंदगी में भी रिश्तों की सरहद बहुत बड़ी होती है, वह राजनीति के भूगोल को नहीं पहचानती, वह राजनेताओं, तथाकथित धर्मगुरुओं और सांप्रदायिक संगठनों की नफ़रत के आगे जाती है. इसी फिल्मी दुनिया में साहिर जैसा शायर लिख पाता है-
तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा,
और शैलेंद्र कह सकते हैं कि
‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
मिल सके तो ले किसी का दर्द उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है.‘
बंटवारे और भारत पाक संबंधों पर बनी फिल्में बहुत लोकप्रिय होती है. गरम हवा से ले कर बजरंगी भाई जान सभी फिल्मों ने लोकप्रियता पाई है. कुछ फिल्में तो पाक प्रायोजित आतंकवाद, भारत पाक युद्धों पर, जैसे बॉर्डर, एल ओ सी , थीं पर बनी, बहुत ही लोकप्रिय हुईं, पर परस्पर मानवीय संबंधों को गहरे छूते हुयी फिल्मों ने भी बॉक्स ऑफिस पर कम नाम नहीं कमाया है.
बहुत सारे लोगों के लिए जीना इसी का नाम नहीं है. इंसान को हिंदू-मुसलमान बनाए बिना, हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी बताए बिना उनको चैन नहीं पड़ता, उनकी राजनीति का पेट नहीं भरता. इन दिनों शाहरुख खान ऐसे ही लोगों के निशाने पर हैं. भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि ,
" शाहरुख खान का दिल भारत के लिए नहीं, पाकिस्तान के लिए धड़कता है. वे यहां करोड़ों कमाते हैं, यहीं रहते हैं, लेकिन मन उनका पाकिस्तान में रमता है. "
हालांकि यह ट्वीट उन्होंने वापस भी ले लिया . भाजपा ने भी उनके बयान से किनारा कर लिया , पर विजयवर्गीय ने अपनी मानसिकता का परिचय दे दिया. इस से जो हानि और विवाद होना था वह हो भी गया. शाहरुख़ खान ने बस यह मान लिया है कि ,
" इस देश में फिलहाल असहिष्णुता बढ़ रही है, कि पुरस्कार लौटाने वालों ने जो हिम्मत दिखाई है, उसके लिए उनका सम्मान होना चाहिए और अगर उनके सम्मान लौटाने से कोई फर्क पड़ता है तो वे भी यह सम्मान लौटाने को तैयार हैं. "
आखिर यह कौन सा पाकिस्तान है जो भाजपा की मानसिकता में इस हद तक धंसा हुआ है, कि उसके नेताओं को और कोई मुल्क जंचता भी नहीं.
दरअसल यह पाकिस्तान बाघा बॉर्डर के पार नहीं बल्कि, शिवसेना के दिमाग में बसता है, भाजपा की प्रतिशोधी चेतना में बसता है, उसके राष्ट्र निर्माण ( ? ) की परियोजना में बसता है और एक हानिकारक वायरस की तरह उपस्थित रहता है. अज़ीब मानसिकता है, जिसने भी मोदी का विरोध किया, उनके वादों की याद दिलाई, संघ के एजेंडे से असहमति दिखाई , भाजपा का विरोध किया, वह देशद्रोही घोषित हो गया. हम क्या मध्ययुगीन राजतंत्र में रह रहे हसीन या हज़ारों साल की संगच्छद्वम की अमर विरासत समेटे एक लोकतांत्रिक देश में ? विरोध करने वाला अगर वह मुस्लिम हुआ तो अनिवार्यतः पाकिस्तानी हो जाता है. संस्कार की बात बात में बात करने वाले कुसंस्कारियों का यह कैसा गिरोह है, जिन्हें केवल अपशब्द और अतार्किक बात ही समझ आती है. भाजपा पाकिस्तान का विरोध भी करती है और हिंदुस्तान को उसी तरह का बनाने पर तुली भी हुई है.
पुस्तक का जवाब पुस्तक होना चाहिए . विचारधारा का सामना विचारधारा से किया जाना चाहिए। कालिख और गालियों से नहीं। नहीं। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री अगर कोई पुस्तक लिखेंगे तो , निशचय ही उसका झुकाव पाकिस्तान की और ही रहेगा। वह कभी भी समसामयिक इतिहास के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। यद कीजिये , जनरल परवेज़ मुशर्रफ का बयान , जब वे आगरा शिखर वार्ता के लिए आये थे और जब उनसे एक पत्रकार ने कश्मीर के मुद्दे के बारे में यह पूछा कि , कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान के लिए इतना अहम क्यों है ? मुशर्रफ ने जवाब दिया , अगर मैं यह मुद्दा छोड़ दूंगा तो फिर से मुझे पुरानी दिल्ली की उसी हवेली में रहना होगा जहां मैं पैदा हुआ था। ज्ञातव्य है कि परवेज़ मुशर्रफ का जन्म , पुरानी दिल्ली की ही एक हवेली में हुआ था। प्रश्न गंभीर था, पर उसका उत्तर भी परिहास से आवृत्त पर उतना ही गंभीर था. पाकिस्तान का एजेंडा कश्मीर ही नहीं है, पाकिस्तान का एजेंडा भारत को तोडना है. इसे बिखेर देना है. भारत के अंदर एक ऐसी परिस्थिति वे चाहते है जिस से देश के भीतर का साम्प्रदायिक सद्भाव छिन्न भिन्न हो और समाज एक ऐसे पड़ाव पर पहुँच जाए जहां यह लगे कि दोनों साथ साथ नहीं रह सकते हैं और तब बिखरने की एक नयी प्रक्रिया शुरू हो. हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है. पर देश तो अस्थिर होगा ही और विकास भी बाधित होगा. आज जो स्थित पाकिस्तान की है वैसी स्थिति भारत में कभी नहीं आये ऐसी संभावना से बचना चाहिए.
एक-दूसरे की कट्टरता या एक-दूसरे के बड़बोलेपन की नकल करके हुक्मरान सिर्फ अपने लिए एक कवच जुटाते हैं और अपनी जनता को कुछ और असुरक्षित छोड़ जाते हैं. हम यह उम्मीद करें कि, राष्ट्रवाद का अतीत बन चुका , फासिस्ट रोग, अंततः दूर होगा, और हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की नकली , दिमाग में बसी अवधारणाएं समाप्त होंगी.
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