Monday, 2 November 2015

31 अक्टूबर, सरदार पटेल की जयन्ती पर, विनम्र स्मरण / विजय शंकर सिंह



अक्सर एक काल्पनिक प्रश्न उछाल दिया जाता है, हम सब के सामने कि, सरदार पटेल अगर नेहरू के स्थान पर देश के प्रधान मंत्री होते तो देश की तस्वीर ही अलग होती. इसका उत्तर क्या होगा, यह तो मुझे नहीं पता, पर यह हो नहीं पाया. और सरदार पटेल के किसी भी बयान और अभिलेख से यह ज्ञात नहीं होता है कि उनके दिल में इस बात का मलाल था. बारदोली में सफलता पूर्वक किसान आन्दोलन चलाने से ख्याति प्राप्त करने के कारण, गांधी ने उन्हें सरदार कहा था, और वे सच में, देश के अत्यंत संकटकालीन दौर में सरदार की ही तरह , सरदार की भूमिका में नज़र आये. उन्होंने देसी रियासतों का विलय जिस अदम्य इच्छा शक्ति से कराया वह अभूतपूर्व था. संभवतः नेहरू अपनी तमाम मेधा और लोकप्रियता के यह कार्य संपन्न नहीं कर पाते. पर सरदार ने इसे संपन्न कराया.

गांधी की हत्या पर आर एस एस को प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि आर एस एस ने खुद को गोडसे से अलग कर दिया था.
पर गोडसे और आर एस एस के सम्बन्ध जग जाहिर हो गए थे. पटेल के इस कदम पर कहा जाता है कि उन्होंने यह कदम नेहरू के परामर्श पर उठाया था. निश्चित रूप से यह मंत्रिमंडल का सामूहिक निर्णय रहा होगा. पर पाकिस्तान के धर्म आधारित राष्ट्र के रूप में बँट जाने के बाद भी देश का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप बना रहा. धार्मिक आंधी के उस पागलपन भरे दौर में, देश का बहुत धार्मिक सहिष्णु रूप बचा रह गया यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. पटेल कांग्रेस की परंपरा के नेता थे. नेहरू से कम कद उनका नहीं था और न ही उनका सम्मान कम था. दृढ निश्चयी भाव , उनमे नेहरू से अधिक था. धर्म निरपेक्षता पर उनके विचार स्पष्ट थे. लेकिन अब ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की जाती है, जैसे नेहरू और पटेल में धर्म निरपेक्षता को ले कर कोई वैचारिक मतभेद हो.
हालांकि मूलभूत रूप से दुनिया में किसी भी देश, सरकार और सम्विधान को धर्मनिरपेक्ष होना ही चाहिए।लेकिन सवाल ये है कि दुनिया के तमाम देशों में इस प्रकार की भौगोलिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता नहीं है, जैसी कि भारत में है। इसलिए साम्प्रदायिकता से आज़ादी पाना हमारे लिए सबसे बड़ी आवश्यकता और चुनौती है। इसी विविधता के एक देश में होने के कारण ही आज़ादी की लड़ाई, किसी धर्म के लोगों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि एक साझा लड़ाई थी, जो कि धर्म-पंथ  और संस्कृति की तमाम भिन्नताओं के बावजूद एक साथ लेकिन एक-दूसरे से अप्रभावित रहने की आज़ादी की लड़ाई थी। साम्प्रदायिकता को लेकर आज़ादी के आंदोलन के नायकों का नज़रिया, क्या था और वह इसको लेकर किस कदर गंभीर थे। इसका अंदाज़ा बंटवारे के समय की एक घटना से लगाया जा सकता है। सितंबर 1947 में सरदार पटेल को पता लगा कि अमृतसर से गुजरने वालेमुसलमानों के काफिले पर वहां के सिख हमला करने वाले हैं। सरदार पटेल अमृतसर गए और वहां करीब दोलाख लोगों की भीड़ जमा हो गई जिनके रिश्तेदारों को पश्चिमी पंजाब में मार डाला गया था। उनके साथ पूरा सरकारी अमला था और उनकी बहन भी थीं। भीड़ बदले के लिए तड़प रही थी और कांग्रेस से नाराज थी। सरदार ने इस भीड़ को संबोधित किया और कहा,
”इसी शहर के जलियांवाला बाग की माटी में आज़ादी हासिल करने के लिए हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों का खून एक दूसरे से मिला था। …………… मैं आपके पास एक ख़ास अपील लेकर आया हूं। इस शहर से गुजर रहे मुस्लिम शरणार्थियों की सुरक्षा का जिम्मा लीजिए ………… एक हफ्ते तक अपने हाथ बांधे रहिए और देखिए क्या होता है।मुस्लिम शरणार्थियों को सुरक्षा दीजिए और अपने लोगों की डयूटी लगाइए कि वे उन्हें सीमा तक पहुंचा कर आएं।”

इस घटना से समझा जा सकता है कि देश की बुनियाद सिर्फ एक आधार पर है, जो कि धर्मनिरपेक्षता है, क्योंकिधर्मनिरपेक्षता के बिना लोकतंत्र भी संभव नहीं है। किसी एक धर्म के प्रभाव, राज या नियमों के अंतर्गत, जब बाकी धर्मावलम्बियों या नास्तिकों के अधिकार सुरक्षित ही नहीं, तो लोकतंत्र कैसे हो सकता है? महात्मा गांधी को पढ़ते हुए आप पाते हैं, कि वह एक धर्म में आस्था रखते हुए, भी बाकी धर्मों की आज़ादी को लेकर किस कदर चिंतित थे। क्योंकि वह जानते थे कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता, दरअसल धर्म की नहीं, मानवमात्र की स्वतंत्रता और निजता की लड़ाई है। वह कहते है,
”अगर हिंदू माने कि सारा हिंदुस्तान सिर्फ हिंदुओं से भरा होना चाहिए, तो यह एक निरा सपना है. मुसलमान अगर ऐसा मानें कि उसमें सिर्फ मुसलमान ही रहें, तो उसे भी सपना ही समझिए. फिर भी हिंदू, मुसलमान, पारसी, ईसाई जो इस देश को अपना वतन मानकर बस चुके हैं, एक देशी, एक-मुल्की हैं, वे देशी-भाई हैं और उन्हें एक -दूसरे के स्वार्थ के लिए भी एक होकर रहना पड़ेगा.”

( विजय शंकर सिंह )

1 comment:

  1. When India and Pakistan were being created on the lines of religion, would it not have been better to declare India as a Hindu nation...?

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