आज दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुयी थीं। एक तो आज संविधान स्वीकार किया गया था , दुसरे मुम्बईं पर पाकिस्तान का हमला हुआ था. मुझे कभी कभी संदेह होता है, कि 26 नवम्बर की तिथि , चुनने के पीछे , पाकिस्तान के अवचेतन में संविधान स्वीकार करने की तिथि भी थी या यह सब महज एक तिथि संयोग, या मेरे पुलिसिया दिमाग का फितूर. जो भी हो , मुम्बई हमले में अगर पुलिस तत्परता से सक्रिय न हुयी होती तो जितने लोग इस हमले में मारे गए थे, उस से कहीं बहुत अधिक जान का नुकसान होता.
पाकिस्तान के लिए धर्म निरपेक्ष भारत और संविधान सब से बड़ा खतरा है. जिन्ना जब मुस्लिम्स के लिए अलग राष्ट्र मांग रहे थे, तो उनके दिमाग में धर्म और राष्ट्र एक ही विचार थे. दुर्भाग्य से आर एस एस के दिमाग में भी धर्म और राष्ट्र एक ही था. जब पाकिस्तान का गठन लगभग तय हो गया, तो यह विचार प्रक्षेपित किया गया कि, पाकिस्तान मुसलामानों के लिए है तो हिन्दुस्तान हिंदुओं के लिए. बड़ी शरारत से हिन्दुस्तान को हिन्दुस्थान कहा गया और भारत , भारतीयों के लिए नहीं बल्कि हिन्दुस्तान हिंदुओं के लिए है का नारा बुलंद किया गया. पर जिस नेतृत्व के निर्देशन में आज़ादी की लड़ाई लड़ी गयी, उस ने इस बेवकूफी भरे सिद्धांत को खारिज कर दिया. पाकिस्तान भले ही मुस्लिम गणराज्य बने यह उसका सिर दर्द है, पर भारत अपनी बहुलवादी संस्कृति और परम्परा को नहीं छोड़ेगा. हमारा संविधान बहुलवादी भारतीय संस्कृति को ही प्रतिविम्बित करता है।
संविधान के प्रिएम्बल में 1976 में संशोधन कर के इंदिरा गांधी ने , आपात काल में, समाजवादी और सेकुलर शब्द जोड़े थे. इसका कारण केवल राजनीतिक और अपनी क्षवि समाजवादी और सेकुलर दिखाना था. राजाओं का प्रिवी पर्स उन्मूलन, और बैंकों का राष्ट्रीय करण, कर के इंदिरा गांधी ने अपने को समाजवादी दिखाने की कोशिश की थी. दर असल यह कोशिश सिंडिकेट, जो 1969 में पुराने कांग्रेसी नेताओं को कहा जाता था, जिसमें, कामराज, निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष, मोरारजी देसाई और राम सुभग सिंह आदि धुरन्धर नेता थे, के विपरीत खुद को प्रगति शील दिखाने एक दांव भी था. इन शब्दों के रहने या न रहने से संविधान की आत्मा पर कोई बहुत असर नहीं पड़ता है. समय और ज़रूरतों के आधार संविधान में संशोधन होते रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे. पर संविधान का मूल ढांचा बदला नहीं जा सकता है. केशवानंद भारती के एक मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट ने इसे तय कर दिया है.
जब पाकिस्तान का गठन हुआ तो , मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने पहले भाषण में, कहा कि, पाकिस्तान में सभी लोगों को अपने अपने धर्म और उपासना पद्धति के अनुसार, जीने की स्वतंत्रता है. जिन्ना साहब , जब यह कहना ही था, तो धर्म के नाम पर आप ने एक अलग राष्ट्र की ज़िद ही क्यों की ? आप तो ऐसे नहीं थे. खैर, इतिहास चक्र उल्टा नहीं चलता है. आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों , न केवल हिंदुओं और ईसाईयों का ही, बल्कि मुसलामानों में भी , शिया और अहमदियों का भी उत्पीड़न होता है.यह एक खुला तथ्य है. पाकिस्तान कभी भी उस तरह की धर्म निरपेक्षता या पंथ निरपेक्षता या सर्व धर्म सम भाव का संविधान स्वीकार ही नहीं कर सकता। यह उसके गठन और भारत विभाजन के मौलिक सोच के विपरीत है।
26 नवम्बर की तारीख भूली नहीं जा सकती है. मैं उस दिन खंडवा , मध्य प्रदेश में , विधान सभा के चुनाव के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश से पी ए सी की कंपनियां ले कर गया था. हम लोग फील्ड में थे इस लिए इस हमले के बारे में टी वी पर जो लाइव टेलीकास्ट हुआ था, वह नहीं देख पाये. पर अखबारों और फोन से घटना के बारे में काफी बातें पता चली. उस दिन के आतंकी हमले में 168 व्यक्ति मारे गए थे जिसमे 26 पुलिस जन थे. देश के लिए या किसी भी पुनीत कर्तव्य के लिए जीवन देना , सर्वोच्च समर्पण है। हमे और शहीद के परिजनों को गर्व भी होता है। पर मृत्यु की जो दारुण क्षति होती है, वह मुझे हिला देती है. मैंने कुछ शहीदों के परिवारों को गर्व करने के साथ साथ , उस अपूर्णीय क्षति पर शून्य में निहारती उनकी आँखों की वेदना भी पढी है। पर सुरक्षा बलों के साथ यह एक प्रोफेशनल हेजार्ड है. अपना कम से कम नुकसान कर के दुश्मन को तहस नहस करने की रणनीति पर इसी लिए अक्सर ट्रेनिंग सेंटर में सिखाया जाता है. पर जब सामना हो तो केवल एक ही मन्त्र स्मरण रखना चाहिए. न च दैन्यं, न पलायनम् !
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