बहुत कोसा गया है हामिद अंसारी को सैल्यूट न करने के कारण. बिना किसी दोष के. एक ऐसे व्यक्ति को जिसने पूरा जीवन देश के लिए दुनिया भर के देशों से कूटनीतिक सम्बन्ध बनाने में लगा रहा. उसे ही जब यह सुनना पड़े कि आज उसकी देशभक्ति पर सवाल उठ खड़ा हुआ है तो उसके मन में क्या प्रतिक्रिया हुयी होगी. अब एक नज़र इधर भी. इस चित्र में अटल जी को भी देखिये. वह भी ऐसे ही एक अवसर पर सावधान की मुद्रा में ही हैं. सलामी की मुद्रा में कलाम साहब ही सिर्फ हैं क्यों कि वह राष्ट्रपति थे.हामिद अंसारी देश के 1980 से 1985 तक विदेश मंत्रालय में चीफ ऑफ़ प्रोटोकॉल रहे हैं. चीफ ऑफ़ प्रोटोकॉल का ही यह प्रथम दायित्व होता है कि वह विदेशी अतिथि का देश की तरफ से सबसे पहले स्वागत करे. विदेश सेवा के प्रतिभाशाली अफसरों में इनका नाम रहा है. वह जिस परिवार से आते हैं उसी परिवार के ब्रिगेडियर उस्मान भी थे. 1948 में जब देश पर पाकिस्तान ने हमला किया था, तो भारतीय सेना का नेतृत्व इन्होंने ही किया था. पाकिस्तान की सरकार ने इन्हें पाकिस्तानी सेना का प्रमुख बनाने की बात भी की थी. पर उन्होंने इसे ठुकरा दिया था. धर्म, जाति, सम्प्रदाय, और क्षेत्र किसी भी व्यक्ति की आलोचना या निंदा का कारण नहीं बन सकता. रोज़ टी वी पर राष्ट्र गान बजता है. सिनेमा हॉल में भी बजता था. अभी भी कहीं कहीं बजता है. कितने लोग सम्मान देते है ? बहुतों को तो पूरा गान और वंदे मातरम् याद भी नहीं होगा.
किसी भी व्यक्ति को क्या यह साहस या उसकी सोच है कि वह अटल जी को इंगित कर के यह आरोप लगा दे कि वह राष्ट्रद्रोही है ? बहुत आरोप लगेगा तो यही लगेगा कि शायद वह भूल गए सलामी के लिए हाँथ उठाना. आखिर यही तर्क और सोच हामिद अंसारी के लिए कुछ लोगों के मन में क्यों नहीं आयी ? भूल तो वह भी सकते हैं. सलामी की कुल अवधि मात्र 52 सेकेंड्स ही तो होती है. लेकिन नहीं, निर्लज्ज पूर्वाग्रह से भरी सोच से राष्ट्र का ही अहित होता है. और यह अहित वही कर रहे हैं जो राष्ट्रप्रेम
को केवल तिरंगे, भारत माता के जयकारा, और वंदे मातरम् तक ही सीमित कर के देखते हैं. राष्ट्रप्रेम
प्रदर्शित करने के ये प्रतीक हैं. पर देश का ताना बाना मसके नहीं इसके लिए आवश्यक है आपसी विश्वास और भरोसा बढे.
उप राष्ट्रपति के कार्यालय को सामान्य शिष्टाचार के पालन करने पर , अपनी देशभक्ति पर उठे सवालों के सन्दर्भ में सफाई देना पड़े, यह देश का दुर्भाग्य है. यह प्रकरण यह भी बताता है कि ज़हर कितने सुनियोजित तरह से देश की मानसिकता में फैलाया जा रहा है. राष्ट्रप्रेम एक अच्छी बात है. पर राष्ट्रवाद और विशेषकर अंधराष्ट्रवाद की अवधारणा ने दुनिया में तबाही ही मचायी है. पिछली सदी में हुए दोनों विश्व युद्धों के मूल में अंध राष्ट्रवाद ही है. हमारे यहां राष्ट्र प्रेम का मतलब केवल तिरंगे को सलामी, और कुछ देशभक्ति के गीत और भारत माता का जयकारा ही है. ये प्रतीक राष्ट्रवाद की उद्घोषणा तो हो सकते हैं, पर यही राष्ट्रवाद है ऐसा कत्तई नहीं कहा जा सकता है.
अगर सच में हम राष्ट्रभक्त हैं तो ऐसा कोई क़दम न उठायें जिस से देश की एकता और अखंडता को कोई खतरा हो. देश की आर्थिक स्थिति सुधरे, करापवंचन और देश की योजनाओं से भ्रष्टाचार कम हो, सभी देशवासियों में सौहार्द बना रहे, इस हेतु कुछ कार्य करें. देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर आसीन हामिद अंसारी साहब के देश भक्ति पर जब सवाल कुछ उन्मादी उठाते हैं तो वह हामिद अंसारी का नहीं बल्कि देश की एकता का ही अपमान करते हैं.
-vss.
-vss.
No comments:
Post a Comment