Thursday, 15 January 2015

Kiran Bedi and BJP .... किरण बेदी का भाजपा में आना. / विजय शंकर सिंह.

किरण बेदी जैसी पुलिस अधिकारी को अमित शाह ने राजनीति की दीक्षा दी. राजनीति विडंबनाओं और संभावनाओं का खेल है. संसद ने किरण बेदी से कभी माफी मांगने के लिए कहा था. जब किरण बेदी ने सांसदों का मज़ाक बनाया था। जब अरविन्द केजरीवाल ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन से अलग हट कर एक नयी राजनीतिक पार्टी बनायी थी तो किरण बेदी ने राजनीति में जाने से इनकार कर दिया था. अच्छे लोगों का राजनीति में आना ज़रूरी है. वह एक अच्छी और लोकप्रिय अधिकारी रही हैं. आशा है राजनीति भी उनके लिए काजल की कोठरी नहीं साबित होगी.

वह 1972 बैच की आई पी एस अधिकारी हैं . वह दिल्ली में डी सी पी यातायात रहते हुए , यातायात नियमों के कड़ाई से पालन कराने के लिए प्रसिद्ध हुईं. उन्हें मज़ाक में क्रेंन बेदी कहा गया. तिहार जेल की प्रमुख रहीं. जेल सुधार के लिए बहुत काम किया और इस हेतु उन्हे एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाने वाला मैगासेसे पुरस्कार मिला. दिल्ली की पुलिस आयुक्त न बन पायीं तो उन्होंने पुलिस सेवा से समय से पूर्व मुक्ति पा ली.

वह विवादित भी कम नहीं रही हैं. विशेषकर वकीलों के बीच में. उनके कार्यकाल में तीसहज़ारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच काफी झगड़ा हुआ. वकीलों की हड़ताल लंबी चली. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल दिया. इनका तबादला हुआ. फिर जब जब दिल्ली पुलिस में आने की इनकी कोशिश हुयी यह विवाद बार बार उछला. मिज़ोरम में अपनी पुत्री के मेडिकल में दाखिले को लेकर भी विवादित हुईं. पुलिस अफसर विवाद से मुक्त नहीं रह सकते यह भी एक प्रोफेशनल हेज़ार्ड है.

किरण बेदी सार्वजनिक जीवन में अपने एन जी ओ तथा अन्य गतिविधियों के साथ काफी पहले से ही सक्रिय रही है. पर उन्हें सुर्खियां तब मिली जब वह अन्ना आंदोलन से जुड़ीं . अन्ना हज़ारे का आंदोलन, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले 2012 में एक बेहद लोकप्रिय आंदोलन बन गया था. उस आंदोलन ने भ्रष्टाचार को ही मुख्य मुद्दा बनाया था. उस समय तक यू पी ए 2 के कई घोटाले उजागर हो चुके थे और इस सम्बन्ध में कई मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल भी रहे थे. सरकार की क्षवि अत्यंत खराब हो रही थी. उस समय किरण बेदी ने राजनीतिक दलों को खूब आड़े हांथों लिया था. बाद में जब अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और चुनावी राजनीति में उतरने का निर्णय किया तो, किरण बेदी ने किसी प्रकार की चुनावी राजनीति में जाने से इनकार कर दिया. इस प्रकार तब किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल के रास्ते अलग अलग हो गए. अब जब पुनः किरण बेदी ने चुनावी राजनीति की शुरुआत की और भाजपा की सदस्यता ग्रहण की तो किरण बेदी के पूर्व और आज के बयानों पर चर्चा का होना स्वाभाविक है.

अब देखना यह है कि किरण बेदी जिन आदर्शों के लिए प्रतीक रूप बन चुकी हैं वे आदर्श भी राजनीति में बरकरार रहते हैं या वह भी महाजनो येन गतः स पन्थाः हो जाती है. यह ग्रुप अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा हुआ था. क्या अब भी वह जज़्बा है या उस नाव पर सवार होने की रणनीति जो फिलहाल मज़बूत दिख रही है. अभी तो वह आईं है. थोड़ा वक़्त गुज़रे तो कुछ कहा जा सकता है.फिलहाल तो उनके सफल होने और राजनीति के इस मायाजाल में वह खुद के आदर्शों को बचाये रख सकें यही शुभकामना है.

आई पी एस अफसरों का राजनीतिक दलों में अवकाश ग्रहण के बाद जाना कोई अनहोनी घटना नहीं है.उत्तर प्रदेश के चार आई पी एस अधिकारी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत कर संसद में पहुँच चुके हैं. जिनमे से तीन तो अवकाश प्राप्त पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं.

सबसे पहले भाजपा में जाने वाले आई पी इस अधिकारी, उत्तर प्रदेश के पूर्व डी जी, श्रीश चंद्र दीक्षित रहे है. वह विश्व हिन्दू परिषद् के राम मंदिर आंदोलन से जुड़े फिर भाजपा से. उन्होंने 1989 और 1991 में वाराणसी से चुनाव लड़ा और दो बार सांसद रहे.अब वह दिवंगत हो चुके हैं. इनके साथ ही साथ एक अन्य पूर्व पुलिस महानिदेशक और सेंसर बोर्ड के चेयरमैन रहे श्री बी पी सिंघल भी भाजपा के सांसद थे. श्री सिंघल सीधे चुनाव से नहीं संसद गए बल्कि वह राज्य सभा के सदस्य के रूप में संसद पहुंचे. श्री बी पी सिंघल, विश्व हिन्दू परिषद् के प्रमुख श्री अशोक सिंघल के छोटे भाई थे. अब श्री बी पी सिंघल भी जीवित नहीं है. पूर्व पुलिस महानिदेशक, श्री श्याम लाल, भी 1991 में बस्ती , यू पी, से भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. श्री श्याम लाल किसी अन्य आंदोलन से नहीं जुड़े थे, बल्कि उन्होंने सीधे चुनाव लड़ा और जीते. अब श्री श्याम लाल भी नहीं रहे.

सबसे महत्वपूर्ण नाम इस कोटि में श्री देवेन्द्र बहादुर राय का है. श्री डी बी रॉय, सुल्तानपुर से 1996 में लोकसभा का चुनाव जीते और सांसद बने. वह 1992 में 6 दिसंबर को जब अयोध्या स्थित विवादित ढांचा ढहाया गया था तो अयोध्या के एस एस पी थे. इस घटना के बाद वह डी एम सहित निलंबित किये गए और निलंबन की अवधि में ही वह नौकरी छोड़ कर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. लेकिन 1999 के लोक सभा के चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला. अब श्री रॉय भी जीवित नहीं है.

उत्तर प्रदेश से ही एक अन्य आई पी एस अधिकारी भी भाजपा से सांसद हैं पर वह यू पी कैडर के नहीं हैं. वह है श्री सत्य पाल सिंह, जिन्होंने बागपत से अजीत सिंह को पराजित किया. पर यह महाराष्ट्र कैडर के हैं. चुनाव लड़ने के पूर्व वह मुम्बई के पुलिस आयुक्त थे. जहां तक मुझे स्मरण है गुजरात कैडर के एक पूर्व आई पी एस, श्री जसवंत सिंह, जो अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर थे भी चुनाव लड़ कर अहमदाबाद के मेयर रह चुके है. लेकिन यह भाजपा के नहीं बल्कि कांग्रेस के थे. ऐसा नहीं कि आई पी एस अधिकारियों ने सिर्फ भाजपा की ही सदस्यता ग्रहण की हो. उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थय मंत्री श्री अहमद हसन, भी एक आई पी एस अधिकारी रहे हैं. वह लंबे समय से समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं. और पहले भी सपा की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. हो सकता है अन्य प्रांतों में भी आई पी एस अधिकारी हों पर मुझे उनके बारे में ज्ञात नहीं है.

- विजय शंकर सिंह.
   16/01/15.

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