Sunday, 11 January 2015

एक कविता अहंकार./ विजय शंकर सिंह


तुम भी बेचैन, 
हम भी हैं बेचैन, 
तुम भी हो बेक़रार, 
करार हमें भी नहीं ! 

इसे जिद कहूं, 
या कहूं ग़ुरूर, 
तूफ़ान ए अना से तुम भी परेशान, 
और सुकून मुझे भी कहाँ !

वे भी दफ़न हुए, 
जो राज करते थे लहरों पर, 
जिन्हें गुमां था, कि
आफताब उनका है. 
लगा डूबने एक दिन सूरज, 
दहलीज़ पर उनके भी ! 

कितन किस्सेे कैद हैं, 
इतिहास के ज़र्द पन्नों में, 
बिखरे बिखरे, फड फडाते हुए, 
क़फ़स में फंसे परिंदों की तरह ! 

खा गया अहंकार 
न जाने कितनों को,
फिर भी रगों में खून के मानिंद,
दौड़ता यह गुरूर, 
न तुम्हे चैन लेने देता है, 
और न मुझे ! 

आओ सोचें कोई तरकीब, 
निजात पायें इस से, 
बगूले में उड़ते हुए धूल की तरह, 
हम तुम, 
इस अनंत कायनात में, 
सिर्फ फानी हैं ! 
और क्षणभंगुर भी !! 
-vss. 

A poem. 
Ahankaar. 

Tum bhee, bechain, 
Ham bhee hai bechain.
Tum bhee ho beqaraar, 
Qaraar hamen bhee naheen ! 

Ise zid kahoon, 
Yaa kahoon guroor,
Toofaan e anaa se tum bhee pareshaan, 
Sukoon mujhe bhee kahaan !

Wey bhee dafan huye,
Jo raaj karte the laharon par,
Jinhe gumaan thaa, ki
Aaftaab unkaa hai.
Lagaa doobane sooraj ek din,
Dahaleez par unke bhee ! 

Kitne kisse qaid hain, 
Itihaas ke zard panno mein,
Bikhre, bikhre, phad'phadaate huye,
Qafas mein fanse parindon kee tarah ! 

Khaa gayaa ahankaar,
Na jaane kit'no ko,
Phir bhee ragon mein khoon kee tarah, 
Daudataa yah guroor,
Na tumhe chain lene detaa hai, 
Aur na mujhe ! 

Aao sochen koi taraqeeb,
Nizaat paayen is se,
Bagoole mein udte huye dhool kee tarah, 
Ham, tum,
Is anant qaayanaat mein, 
Sirf faanee hain ! 
Aur kshan'bhangur bhee !! 
-vss.

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 6 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  3. सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति...

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