Wednesday, 9 April 2014

केजरीवाल के अतिरिक्त क्या सभी नेताओं ने जनता से किया वादा पूरा किया है ? - विजय शंकर सिंह

क्या देश में सबसे ज्यादा झूठफरेब और धोखा देने की राजनीति केजरीवाल ने ही की है. कांग्रेस और अन्य दल जो शासन में हैं या थे वे सबसे पाक साफ़ हैं. जी नहीं हूटर बजाते हुएमहंगी गाड़ियों का काफिला लेकर गुज़रते हुएबन्दूको के प्रदर्शन को ही शान समझते हुए नेताओं के देखने की आदत हमें हो गयी हैउस बीच में जब पढ़ा लिखाऔर शांत तथा जुझारू कोई दिखता है यो ऐसे नेताओं को वही भान होता होगाजो कभी अहंकार से पीड़ित किसी सर्वसमर्थवान व्यक्ति को किसी सामान्य व्यक्ति को देख कर होता है. केजरीवाल ने 49 दिन में दिल्ली के मुख्य मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया. पद छोड़ने के उनके और उनके समर्थकों के अलग तर्क हो सकते हैऔर आप उस तर्क से असहमत भी हो सकते हैं. लेकिन इसका इलाज़ थप्पड़ तो नहीं है. 

दुःख होता है जब मैं सोशल साइट्स पर उनके थप्पड़ खाने को भी उचित ठहराते हुएकुछ मित्रों को देखता हूँ तो. आप उनकी खिलाफत करेंउन्हें दोषी पाए जाने परउन्हें जो भी सज़ा दे सकते हैं दें. लेकिन इस तरह की हरकत को कभी भी प्रश्रय न दें . यह एक बेहद गलत और अलोकतांत्रिक परम्परा की शुरुआत है. कुछ दिनों पहले दुनिया में प्रतीकात्मक हिंसक विरोध की शुरुआत हुयी थी. सबसे पहले पत्रकार वार्ता के दौरान जॉर्ज बुश पर जूता फेंका गयाफिर भारत में चिदंबरम पर भी प्रेस वार्ता के दौरान जूता फेंका गया. शरद पवार पर थप्पड़ जड़ा गयाऔर फिर केजरीवाल पर तीन हमले हुए. 


केजरीवाल पर पिछले दिनों रोड शो के दौरान कई हमले हुए. उन पर कभी तमाचा पडा तो कभी घूँसा. कुछ ने लोकतंत्र को कोसाकुछ ने सुरक्षा का सवाल उठाया. कुछ ने यह भी बेहूदगी भरा तर्क दिया कि वे हमले प्रायोजित हैं और खुद ही कराये गए हैं. कुछ ने कहा कि वह अपने किये की सज़ा भुगत रहे हैं.जैसे कि ऐसा कहने वाले अब तक सारे काम पुण्य के ही किये हों. किसी ने फोर्ड फाउंडेशन का पेड बतायातो किसी ने पाकिस्तानी एजेंट घोषित कर दिया. पर किसी के पास इतना साहस नहीं रहा कि वह इसे साबित करते. 
यह सवाल मेरे दिमाग में भी उठने लगा है कि आखिर यही क्यों थप्पड़ खा रहे हैं. देश में किस सरकार ने किये वाद कभीे पूरे किये हैं शायद किसी भी सरकार ने नहीं किये होंगे. लेकिन किसी को भी थप्पड़ नहीं पडा. क्या वे इतने सुरक्षा में रहते हैं कि उन तक पहुंचना आसान नहीं होता या केजरीवाल े सॉफ्ट टारगेट हैं यह जांच सुरक्षा एजेंसियां कर रही होंगी. और वे कुछ एहतियात बरत रही होंगी. लेकिन ऐसी घटनाओं पर आनंद प्रदर्शित कर अपने को नीचा न दिखाएँ. अगर आप इस महा बे ईमानमहा भगोड़ापाकिस्तान के एजेंट को नापसंद करते हैं तो वोट से रिजेक्ट कीजियेलेकिन इस तरह से नहीं. 



कोई भी व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं होता हैसमय और मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं. इतिहास में शिखर से शून्य तक उतारने और फिर शून्य से शिखर तक पहुंचाने की अजब कला है. 1971 की दुर्गा इंदिरा 77 के चुनाव में रद्दी की टोकड़ी में फेंक दी गयी. राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है से स्वागत प्राप्त करने वाले वी पी सिंहजिस गति से चढ़े थे उसी गति से उतर भी गए. किसी ज़माने में आर्थिक सुधारवाद के जनक के रूप में ख्याति पाने वाले मन मोहन सिंह का सारा का सारा अर्थ शास्त्र का ज्ञान आज धरा का धरा रह गया. मोदी आज जितने लोकप्रिय हैं उस लोक प्रियता के पीछे कांग्रेस का निकम्मापन भी है.जैसे जैसे मुद्दे बदलते गएजन आकांक्षाएं बढ़ती गयीनेतृत्व उभरता गयाऔर जैसे ही बदलाव आयानेतृत्व भी अपनी प्रासंगिकता खोता चला गया. 
यही इतिहास की गति है. यही काल चक्र है. 


यह लोकतंत्र का महापर्व है. इसे भी शालीन और शान्ति से पूरा होने दें. जिसे जनता चाहेगी वह सफल होगा. ऐसी घटनाएं किसी के साथ हों निंदा करें . क्यों कि राजनीतिक वादे हमेशा अधूरे ही रहेंगे क्यों की मनुष्य की अपेक्षाओं का कोई अंत नहीं है.
-vss

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