अभी पिछले साल ही असीम त्रिवेदी का एक कार्टून छपा था. उस कार्टून में संसद को अच्छे भाव से नहीं दिखाया गया था. इतना हंगामा हुआ संसद में कि असीम के खिलाफ मुकदमा कायम हुआ और उन्हें जेल में डाल दिया गया. देश भर में कड़ी प्रतिक्रया हुयी. अदालत के दखल के बाद उनके विरुद्ध कायम अभियोग वापस लिया गया.
इसी प्रकार, राम लीला मैदान में अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान किरन बेदी, अरविन्द केजरीवाल. और ओम पुरी ने सांसदों के आचरण पर उनकी कथनी और करनी में अंतर को लक्षित करते हुए कुछ कहा था. संसद में दो दिन तक अपनी गरिमा की दुहाई देते हुए इस सब के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की धमकी दी गयी. ओम पुरी ने तो माफी मांग ली. किरन बेदी और अरविन्द केजरीवाल ने विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने और खुद को संसद में बुलाने की बात कही. लेकिन कुछ नहीं हुआ. लेकिन आज जो हुआ है वह बेहद शर्मनाक और दुखद है. ऐसा लगता है अब संसद में चीर हरण ही बाकी है.
आज संसद ,विशेष कर लोकसभा के लिए बहुत शर्मनाक दिन रहा है. पहली बार संसद ने आंसू गैस का स्वाद चखा. पहली बार सत्ताधारी दल के 17 सांसद बहिष्कृत किये गए. संसद में विरोध पहले भी हो चुका है और आगे भी होता रहेगा. लोकतंत्र में विरोध के स्वर अनिवार्य है. बिना विरोध और मतभेद के लोकतंत्र के अवधारणा की कल्पना नहीं की जा सकती. लेकिन जैसा आज संसद में हुआ है वह विरोध था, या क्या था हम सब उस की अलग अलग व्याख्या कर रहे हैं.
तेलंगाना राज्य का विवाद ,आंध्र प्रदेश के गठन के पहले से है. तेलंगाना की भाषा तेलुगु है. भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन 1957 किया गया. राज्य और भाषा को लेकर जितनी संवेदनशीलता दक्षिणी राज्यों में है, उतनी उत्तर भारत में नहीं होती है. क्यों कि उत्तर भारत और मध्य भारत की भाषा हिंदी का विस्तार व्यापक है. आप को स्मरण होगा रामुलू ने एकीकृत आंध्र के लिए आमरण अनशन किया था और इसी अनशन के कारण उनकी मृत्यु अनशन के समय ही हो गयी थी. देश का यह पहला उदाहरण था जिस में किसी आमरण अनशनकारी की मृत्यु अनशन से हुयी हो. देश में व्यापक प्रतिक्रया हुयी और उस समय प्रधान मंत्री नेहरू थे. इस के बाद आन्ध्र का गठन हुआ. हैदराबाद तेलुगु भाषी क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध शहर था इस लिए वह आंध्र की राजधानी बना. लेकिन भाषाई एकता के बावजूद भी प्रदेश में क्षेत्रीयता की भावना बनी रही. तेलंगाना की मांग गाहे बगाहे उठाती रही. कांग्रेस ने अपने हर घोषणापत्र में इस राज्य को बनाने की बात भी की. लेकिन लोकतंत्र की एक सबसे बड़ी कमजोरी यह भी है कि अक्सर फैसले जनता के हित के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक जोड़ तोड़ से होते है. इसी को देखते हुए कांग्रेस ने टी एन सी से समर्थन लिया फिर टी एन सी ने समर्थन वापस लिया और दबाव की राजनीति चलने लगी.
जैसे परीक्षा नज़दीक आ जाने पर साल भर मटरगश्ती करने वाले विद्यार्थी जल्दी जल्दी सब पढ़ लेना चाहते हैं वही हाल कांग्रेस का भी हुआ है. तेलंगाना गठन की मांग स्वीकार कर के इस से राजनीतिक लाभ लेने की योजना धरी कि धरी ही रह गयी. विरोध इतना बढ़ा कि सत्ताधारी दल ही सदन के चलने में बाधा बन गए. आज जो हुआ है, वह शायद संसदीय इतिहास में कभी नहीं हुआ था और प्रार्थना है कि अब ऐसा आगे कभी न हो. राजगोपाल नाम के एक सांसद ने जो कांग्रेस के ही थे ने सदन में हंगामा किया और मिर्ची पाउडर स्प्रे किया. जिस से न सिर्फ अफरा तफरी मच गयी बल्कि कई सांसद बीमार भी हो गए. जैसा अक्सर होता है, इसकी तीव्र निंदा हुयी और जितनी आलोचना भर्त्सना हो सकती है वह सब हो रही है.
इस घटना से कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं. सांसदों के कुछ विशेषाधिकार है. उन्हें उनकी जिम्मेदारी और मह्त्व देखते हुए ये विशेषाधिकार दिए गए हैं. उनकी सुरक्षा जांच न हो. यह भी एक प्रकार का विशेषाधिकार है. लेकिन इस विशेषाधिकार पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. एक कल्पना मैं करता हूँ. भयावह है थोड़ी. कोई सांसद किसी विदेशी ताक़त द्वारा खरीद लिया जाए और अत्याधुनिक विस्फोटक सामग्री आदि ले कर संसद भवन में आ जाय तो क्या होगा ? यह कल्पना ही भयावह है. लेकिन यह सच भी हो सकती है. अब जिस तरह अति विशिष्ट से अति निकृष्ट होने की और ये मह्सनुभाव गिर रहे हैं उनपर किसी और को नहीं बल्कि सांसदों को ही विचार करना होगा. हमारे पास बहुत से योग्य और कर्मठ जन प्रतिनिधि हैं. पर एकाध ही ऐसे होते हैं जिनके कारण ऐसी शर्मनाक स्थिति आई है.
जो कृत्य लोकसभा में माननीय सांसद ने किया है , वह अगर किसी सरकार विरोधी आंदोलन के दौरान किया गया होता तो सारे माननीय दिन भर बहस करते और कड़ी कार्यवाही की मांग करते। यह कृत्य भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत एक अपराध है 1994 में संसद में सांसदों की तलाशी और सुरक्षा जांच के बारे में विचार हुआ था। उस समय देश के कुछ भागों में हालात बहुत खराब थे , संसद पर भी खतरे की आशंका थी। पर सांसदों ने अपने विशेषाधिकार का हवाला देकर इस प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया। लेकिन अब बदले हालात और बदल रही मानसिकता को देखते हुए इस पर विचार की आवश्यकता है. सांसदों को चाहिए कि वह सुरक्षा के सारे मापदंड माने और उनकी नियमानुसार फ्रिस्किंग और तलाशी हो. सुरक्षा से जुड़े सारे विशेषाधिकारों पर पुनर्विचार हो और जिस भी सांसद ने यह किया है उस के खिलाफ आपराधिक धारा में मुक़दमा कायम कर कानूनी कार्यवाही की जाय. एक सांसद पर आरोप है कि वह चाकू ले कर आ गए . इस की भी जांच की जाय. मैं यह समझ रहा हूँ कि संसद के अन्दर इस प्रकार की घटना के विरुद्ध कोई कार्यवाही लोक सभा अध्यक्ष के आदेश और निर्देश पर ही की जायेगी. लेकिन अगर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हुयी तो भविष्य में स्थिति बिगड़ेगी.
( विजय शंकर सिंह )
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