Saturday 8 June 2013

हार गए नाराज आडवाणी, नरेंद्र मोदी की होगी ताजपोशी!



हार गए नाराज आडवाणी, नरेंद्र मोदी की होगी ताजपोशी!

बीजेपी के गोवा अधिवेशन में नरेंद्र मोदी को किसी बड़ी जिम्मेदारी देने का एलान बस होने ही वाला है. 11 साल पहले 2002 में गोवा में बीजेपी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था और उसमें गूंज थी गुजरात के दंगों की, तब आडवाणी ने बचाई थी नरेंद्र मोदी की कुर्सी. वक्त का फेर देखिए आज आडवाणी को दरकिनार करके बीजेपी कर रही है मोदी की ताजपोशी की तैयारी.

आडवाणी के घर के सामने जब शोर शुरू हुआ तो ये साफ हो चुका था कि बीजेपी की सियासत बदल चुकी है. साफ हो चुका था राम की राजनीति का योद्धा मैदान हार चुका है. हर गुरू की ख्वाहिश होती है कि एक दिन उसका शिष्य उसे मात देकर दिखाए. लेकिन बीजेपी का द्रोणाचार्य अपने लाक्षागृह में अफसोस में डूबा हुआ था. जो आडवाणी सवेरे गोवा के लिए रवाना होने वाले थे उन्हें संदेश मिल चुका था कि वो आएं या घर बैठें होना वही है जो तय हो चुका है.

गोवा में बीजेपी के दो धड़ों के बीच घमासान छिड़ा हुआ था, लेकिन आडवाणी के दूत समझ चुके थे कि लड़ाई का अंजाम पहले से तय है. इसलिए उन्होंने अपनी भूमिका सिर्फ प्रतिरोध तक समेट ली.

दोपहर होते-होते गोवा में बैठी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अंतिम संदेश साफ हो चुका था और वो संदेश ये था कि नरेंद्र मोदी के नाम का एलान अब सिर्फ एक औपचारिकता है.

आडवाणी, जसवंत या उमा भारती की बीमारी अपने लिए कम थी और गोवा के लिए ज्यादा, लेकिन गोवा में बैठे बीजेपी के डॉक्टरों के लिए पार्टी की बीमारी ज्यादा अहम थी. इसीलिए पर्चे पर उन्होंने मोदी का नाम लिख दिया था.

आडवाणी और मोदी के गुटों में बंटी टीम बीजेपी के लिए आगे का रास्ता चुनना आसान नहीं है, लेकिन राजनीति की बल्लेबाजी की इस पिच पर आडवाणी की एक न चली. एक-एक करके आडवाणी के धुरंधर आउट होते गए और मोदी-राजनाथ के गेंदबाज उनकी गिल्लियां उड़ाते रहे.

आडवाणी के समर्थकों और साथियों ने राजनाथ सिंह के साथ बहुत सिर खपाया. ये समझाने की कोशिश की कि इस माहौल में मोदी के नाम का एलान ठीक नहीं रहेगा और इससे कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा. लेकिन राजनाथ सिंह दम साधकर बैठे रहे. इस चुप्पी के जरिए राजनाथ बहुत कुछ बोल गए थे.

आडवाणी किस्तों में हार रहे थे. उमा भारती आहिस्ता-आहिस्ता मिल रही इस हार से घबरा गईं. उन्होंने फौरन गोवा के लिए एक चिट्ठी लिखी. और इस चिट्ठी में लिखा कि अध्यक्ष जी का फैसला उन्हें मंजूर होगा. मोदी ने ये मोर्चा भी फतह कर लिया था.

शाम होते-होते आडवाणी की सेना ने मोदी के साथियों के सामने स्वीकार कर लिया था कि अब मैदान छोड़ रहे हैं. कुछ अनुशासन के नाम पर और कुछ आवश्यकता के नाम पर. मोदी ने कार्यकारिणी के पहले ही दिन मैदान मार लिया था.

इस नई चाल के साथ ही बीजेपी का चेहरा भी बदल जाएगा और चरित्र भी, लेकिन सत्ता का चमत्कार तभी होगा जब ये चेहरा सबको साथ लेकर चलने का साहस दिखाएगा. लेकिन मोदी ने बादशाहत की शुरुआत ही बुजुर्गों से बिगाड़ से की है.
(Aj tak)

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