Friday, 14 June 2013

A trojan horse at the judiciary’s door | The Hindu

देश में तमाम घोटालों , अकर्मण्य होती जा रही नौकरशाही , और बाजारू राजनीती के बावजूद न्यायपालिका ने देश के कुछ मामलों में उम्मीदों की लौ जलाए राखी है . यह सत्य है कि , पिछले सारे घोटाले न्यायिक सक्रियता से ही उजागर हुए हैं . मा उच्च   न्यायालयों और सर्वोच्च नयायालय  के न्यायाधीशों के नियुक्ति की एक प्रक्रिया है .सुप्रीम कोर्ट के  वरिष्ठ न्यायधीशों का एक कोलेजियम न्यायाधीशों का एक पैनल चुनता है . लेकिन सरकार को इस नियुक्ति की प्रक्रिया में दोष दिखायी दे रहे हैं . सरकार किसी न किसी प्रकार से न्यायालयों पर अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश में हैं . नियुक्ति प्रक्रिया के लिए सरकार ने सात सदस्यीय न्यायिक नियुक्ति आयोग  बनाने का प्रस्ताव किया है . इस में  सुप्रीम कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश , दो  वरिष्ठ न्यायाधीश , क़ानून मंत्री , नेता विरोधी दल ,और राष्ट्रपति द्वारा नामित दो जूरिस्ट रखे जाने का प्रस्ताव है .

सरकार के इस क़ानून का क्या असर पडेगा , इसे इस लेख के लेखक अनिल दीवान ने विस्तार से समझाया है . पूर्व क़ानून मंत्री अश्विनी कुमार , वही जिन्होंने सी बी आई रिपोर्ट ,जो कोयले घोटाले के बारे में थी का व्याकरण ठीक करते करते अपना व्याकरण बिगाड़ बैठे , ने कैबिनेट को प्रस्तावित बिल का एक नोट भेज था . इस बिल की भनक लगते ही , फली नारिमान , शांति भूषन , अशोक देसाई ,के के वेणुगोपाल , के एन भट्ट जैसे वरिष्ठ वकीलों ने इस पर बहस किये जाने की मांग की . पर सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रया नहीं हुयी .
अगर सरकार का दखल न्यायिक नियुक्ति में हो गया तो इसके परिणाम  घातक होंगे'......
A trojan horse at the judiciary’s door | The Hindu

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