मिर्ज़ा ग़ालिब , एक महान शायर ही नहीं एक अद्भुत पत्र लेखक भी थे . उन्होंने जो पत्र लिखे हैं उनसे 1857 के ग़दर के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है . अपने पत्रों के बारे निम्न शेर कहा है सौ कोस से बेजुबान -ए -कलाम बातें किया करो ,
और हिज्र में विसाल के मज़े लिया करो ...
गालिब का खत .. नवाब अलाउद्दीन खाँ अलाई के नाम
खुशी है यह आने की बरसात के
पिएँ बादा-ए-नाब और आम खाएँ।
सरागाजे मौसम में अँधे हैं हम
कि दिल्ली को छोड़ें लोहारू को जाएँ।
सिवा नाज के जो है मकलूबे जाँ
न वाँ आम पाएँ न अँगुर पाएँ।
हुआ हुक्म बावर्चियों को कि हाँ
अभी जाके पूछो कि कल क्या पकाएँ।
वो खट्टे कहाँ पाएँ इमली के फूल
वो कड़वे करेले कहाँ से मगाएँ।
फकत गोश्त सो भेड़ का रेशादार
कहो इसको हम खाके क्या हज उठाएँ।
बादा-ए-नाब-खालिस शराब. सरागाजे-शुरूआत
पिएँ बादा-ए-नाब और आम खाएँ।
सरागाजे मौसम में अँधे हैं हम
कि दिल्ली को छोड़ें लोहारू को जाएँ।
सिवा नाज के जो है मकलूबे जाँ
न वाँ आम पाएँ न अँगुर पाएँ।
हुआ हुक्म बावर्चियों को कि हाँ
अभी जाके पूछो कि कल क्या पकाएँ।
वो खट्टे कहाँ पाएँ इमली के फूल
वो कड़वे करेले कहाँ से मगाएँ।
फकत गोश्त सो भेड़ का रेशादार
कहो इसको हम खाके क्या हज उठाएँ।
बादा-ए-नाब-खालिस शराब. सरागाजे-शुरूआत
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