Thursday, 30 March 2023

राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता को रद्द करने में, निर्धारित नियमों का उल्लंघन किया गया है / विजय शंकर सिंह

24 मार्च को लोकसभा सचिवालय ने इस फैसले को आधार बनाकर राहुल की संसद सदस्यता रद्द कर दी। लोकसभा सचिवालय की इस कार्रवाई पर सवाल उठे। कांग्रेस की लीगल टीम इसके खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में है। इस मुद्दे पर 'भास्कर' अखबार ने, लोकसभा के2004 से 14 तक महासचिव रहे पीडीटी आचार्य से बात की। पीडीटी आचार्य ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। लोकसभा का सचिवालय, लोकसभा के स्पीकर के आधीन होता है और सरकार से उसका कोई संबंध नहीं होता है। 

आचार्य ने मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर अपनी बात कही,
० सजा जब सेशन कोर्ट ने स्थगित है तो फिर सदस्यता रद्द करने का निर्णय अपरिपक्व और जल्दबाजी भरा है। 
० धारा 8(3), जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, में सदस्यता खत्म करने का प्राविधान है पर उस अधिनियम के अंतर्गत यह सदस्यता स्वतः खत्म नहीं होगी, उसकी एक प्रक्रिया है जिसका पालन नहीं किया गया है। 
० राष्ट्रपति की अनुमति अनिवार्य है। स्पीकर इसके लिए अधिकृत नहीं है। वह  सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश कर सकता है।  

इस पर पीडीपी आचार्य, का यह इन्टरव्यू पढ़ें, 
० सवाल: राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के फैसले के बारे में नियम क्या कहते हैं? जिस जल्दबाजी में लोकसभा सचिवालय ने नोटिस जारी किया, क्या ये सही था?

पीडीटी आचार्य: किसी संसद सदस्य की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8(3) के तहत रद्द की जाती है। इस नियम के तहत जब सदस्य को किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे 2 साल या उससे ज्यादा सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता रद्द की जाती है।

नियम के तहत, जिस दिन सदस्य को दोषी ठहराया गया है, उसी दिन से सदस्यता रद्द की जा सकती है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी इसी सेक्शन के तहत रद्द की गई है, लेकिन इसे ठीक से समझना होगा।

सजा पाए सांसद के लिए सेक्शन 8(3) में लिखा है- 'He/She shall be disqualified' यानी ‘अयोग्य करार दिया जाएगा।’ ये नहीं है कि ‘He/She shall stand disqualified’, जिसका मतलब होता कि जैसे ही जज ने दोष साबित होने के फैसले पर दस्तखत किए, उसी वक्त से संसद सदस्य अयोग्य घोषित हो गया।

‘He shall be disqualified’ का मतलब हुआ कि कोर्ट के फैसले से किसी की संसद सदस्यता नहीं जाएगी, कोई अथॉरिटी उसे अयोग्य घोषित करेगी। सांसद के अयोग्य होने का आदेश कोर्ट में दोष साबित होने की तारीख से ही लागू माना जाएगा।

० सवाल: राहुल गांधी की सजा जज ने ही 30 दिन के लिए सस्पेंड रखी है। उन्हें हाईकोर्ट में अपील का वक्त दिया गया था, ऐसे में सदस्यता रद्द करने की जल्दबाजी क्या सही है?

पीडीटी आचार्य: ये फैसला मुझे भी सही नहीं लगा। दोष साबित होने से ही संसद सदस्य को अयोग्य नहीं ठहराया जाता है। दोषसिद्धि के साथ 2 साल या उससे ज्यादा सजा हो, तभी सदस्यता जाती है। जज ने सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया, तो अयोग्य करार दिए जाने का कोई मतलब ही नहीं था। कानून के नजरिए से इस फैसले में खामियां दिखाई देती हैं।

० सवाल: सांसद की संसद सदस्यता रद्द करने में राष्ट्रपति की क्या भूमिका होती है, क्या राहुल गांधी के मामले में इसका पालन किया गया?

पीडीटी आचार्य: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8 (3) में लिखा है कि ‘He shall be disqualified’ इसका अर्थ हुआ कि कोई अथॉरिटी ही सदस्य को अयोग्य ठहराएगी। ये अथॉरिटी कौन है, ये समझने के लिए हमें संविधान के आर्टिकल-103 को देखना होगा।

आर्टिकल-103 के मुताबिक, जब भी किसी संसद सदस्य की सदस्यता पर सवाल उठता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति ही इस पर फैसला करेंगे। राष्ट्रपति भी फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग से पूछेंगे और चुनाव आयोग की राय पर राष्ट्रपति फैसला करेंगे।

इसका मतलब है कि जब कोई विवाद की स्थिति होगी, तब राष्ट्रपति इसमें दखल देंगे। आर्टिकल-102 में बताया गया है कि किन-किन आधारों पर किसी सांसद की संसद सदस्यता जा सकती है, इसमें बताया गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत, जिस भी सदस्य की सदस्यता रद्द की जाएगी, उस पर राष्ट्रपति ही फैसला लेंगे।

० सवाल: लोकसभा सचिवालय का राष्ट्रपति की सलाह न लेना, क्या इस पूरी प्रोसेस पर सवाल खड़ा करता है, क्या ये गलती जानबूझकर की गई लगती है?

पीडीटी आचार्य: साफ है कि फैसला लेने में गड़बड़ी हुई है। लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति के पास सुझाव के लिए ये केस भेजा ही नहीं। इस मामले में लोकसभा सचिवालय डिसीजन अथॉरिटी नहीं है।

सचिवालय को राष्ट्रपति को केस के बारे में बताना चाहिए था कि राहुल गांधी मानहानि के केस में दोषी पाए गए हैं और उन्हें दो साल की सजा हुई है, क्या ऐसे मामले में राहुल गांधी की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए या नहीं? इसके बाद राष्ट्रपति का फैसला आने के बाद ही लोकसभा सचिवालय नोटिस जारी कर सकता था। पूरे केस में लोकसभा सचिवालय ने ही फैसला ले लिया है, ये उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

० सवाल: आप खुद लोकसभा महासचिव रहे हैं, क्या ये राजनीतिक दबाव के तहत लिया गया फैसला दिखता है?

पीडीटी आचार्य: इस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मैंने अपने कार्यकाल में भी सारे नियमों का अच्छी तरह से पालन किया है।

० सवाल: क्या इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में केस टिक पाएगा?

पीडीटी आचार्य: इसे बिल्कुल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लोकसभा सचिवालय का फैसला संविधान के मुताबिक नहीं है।

० सवाल: NCP सांसद मोहम्मद फैजल की सजा पर केरल हाई कोर्ट ने रोक लगा दी, उनकी सदस्यता बहाल हो गई, क्या राहुल गांधी की सदस्यता भी बहाल हो सकती है?

पीडीटी आचार्य: हाईकोर्ट ने जो स्टे दिया है, उसके बाद अपने आप उनकी सदस्यता बहाल हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ये केस अजीब सा लगता है। सजा सस्पेंड होने के बाद ये न होना अजीब है।

० सवाल: राहुल गांधी को अगर बड़ी अदालत से राहत मिल जाती है, तो कितने दिन में सदस्यता बहाल हो सकेगी?

पीडीटी आचार्य: ऊपरी अदालत से राहुल गांधी को जैसे ही राहत मिलती है, उसके साथ ही लोकसभा में उनकी सदस्यता बहाल हो जाएगी। मान लीजिए अगर ऊपरी अदालत ने CJM के फैसले को पलट दिया, तो अपने आप ही लोकसभा सचिवालय नोटिफिकेशन जारी करेगा और राहुल की सदस्यता बहाल हो जाएगी।

० सवाल: सांसदों की सदस्यता निलंबन का कोई मामला आपके कार्यकाल में भी सामने आया था?

पीडीटी आचार्य: मैंने अपने कार्यकाल में इस तरह का कोई केस नहीं देखा। ये अपने आप में अनोखा है। कई सदस्यों को तो सदस्यता से कई बार बर्खास्त किया गया है। किसी सांसद की सदस्यता चली गई और कोर्ट ने स्टे दिया है, ऐसे में सदस्यता बहाल न हुई हो, ऐसा कोई केस याद नहीं आ रहा।

० सवाल: लोकसभा सचिवालय के कामकाज करने के तरीके में राजनीतिक दबाव कितना होता है?

पीडीटी आचार्य: लोकसभा सचिवालय को संविधान के आर्टिकल-98 के तहत बनाया गया है। ये पूरी तरह स्वायत्त संस्था है और ये सरकार के तहत नहीं आता। लोकसभा सचिवालय की बागडोर लोकसभा अध्यक्ष के हाथ में होती है।

राज्यसभा के लिए उप-राष्ट्रपति सर्वेसर्वा होते हैं। सरकार से इन सचिवालय का सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं है। कानून के मुताबिक, लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय निष्पक्ष तरीके से काम करता है और इनकी छवि भी अब तक निष्पक्ष ही रही है।

० सवाल: क्या राहुल गांधी के मामले से संसद सचिवालय की निष्पक्षता पर चोट लगी है?

पीडीटी आचार्य: मैं चोट शब्द का इस्तेमाल तो नहीं करूंगा, लेकिन इस तरह से सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया को लेकर कई अहम सवाल खड़े हुए हैं। हमें सिस्टम के अंदर इनका जवाब ढूंढना पड़ेगा।

(विजय शंकर सिंह)

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