Thursday 30 September 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास (6)

रूस ईसाई धर्म की धुरी है। कम्युनिस्ट छवि के कारण यह बात अजीब लग सकती है, लेकिन यूरोप के सबसे अधिक ईसाई रूस में ही बसते हैं। धुरी वाली बात कुछ खुल कर लिखता हूँ। 

यीशु मसीह ने जब ईसाई धर्म की स्थापना की, तो वह एक झटके में पूरी दुनिया में नहीं फैल गया। उसे तो रोमन साम्राज्य में ही मान्यता नहीं मिली। ईसाई प्रचारकों को सूली पर लटकाया जाता, सजा दी जाती। जब तक राजनैतिक प्रश्रय नहीं मिलता, आखिर यह आगे कैसे बढ़ता? 

ईसा के तीन सदी बाद पहली बार आर्मीनिया नामक छोटे राज्य ने इसे राजधर्म घोषित किया। रोम के गिरने के बाद जब कुस्तुंतुनिया नयी राजधानी बनी, तो चौथी सदी में जाकर वहाँ यह राजधर्म बना। क़ायदे से धर्म का विस्तार करने के लिए ग्रंथ बनने शुरू हुए, गिरजाघर बने, विमर्श परिषद बने। वे स्वयं को परंपरावादी (ऑर्थोडॉक्स) ईसाई कहते, और ताम-झाम के साथ हागिया सोफ़िया गिरजाघर बनाया। यहीं से यह धर्म रूस भी पहुँचा जिसकी चर्चा मैंने की है। 

वहीं दूसरी तरफ फ्रांस के शार्लेमन (748-814) नामक राजा ने पश्चिमी यूरोप में ईसाईयत लाने में बड़ी भूमिका निभायी। लेकिन, वे रोम के पोप को अधिक महत्व देने लगे। उनका कहना था कि चूँकि यीशु के शिष्य संत पीटर ने वहाँ नींव रखी थी, तो वहीं के पोप सर्वमान्य होने चाहिए। वे कैथॉलिक कहलाए। 

इस तरह ईसाई दो खंडों में बँट गए। एक जो सीधे यीशु मसीह की शिक्षाओं और अपने स्थानीय गिरजाघर को महत्व देते थे। दूसरे वह जो रोम के पोप को ही सर्वोच्च मानते थे। यह विभाजन तेरहवीं सदी में खुल कर आ गया, जब रोमन पोप के आदेश पर ‘क्रूसेड’ (धर्मयुद्ध) हुआ। पश्चिम यूरोप की सेनाएँ मुसलमानों से इस्तांबुल वापस छीनने आई थी, मगर उसके बाद ईसाई कुस्तुनतुनिया भी रौंद कर चली गयी।

धीरे-धीरे ऑर्थोडॉक्स ईसाई का परचम गिरने लगा। जिस साम्राज्य ने इसे राजधर्म बनाया था, वही डूबने लगा। पंद्रहवीं सदी में महमद द्वितीय के नेतृत्व में हमेशा के लिए कुस्तुनतुनिया पर मुसलमानों का कब्जा हो गया। हागिया सोफ़िया गिरजाघर को मस्जिद बना दिया गया। 

कुस्तुनतुनिया के गिरने के बाद रोमन पोप सभी ईसाइयों को उनकी सत्ता स्वीकारने कहने लगे। रूस ने रोम के पोप को ईश्वर का दूत मानने से इंकार कर दिया। उनके लिए अब भी ऑर्थोडॉक्स ईसाई ही मूल ईसाई धर्म था। कुस्तुनतुनिया गिर चुका था, तो मॉस्को ने झंडा उठा लिया।  

अब ईसाई धर्म की दो धुरियाँ थी- रोम और मॉस्को। कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स की ये प्रमुख धुरियाँ आज तक कायम हैं। (सोलहवीं सदी में प्रोटेस्टेंट रूप में तीसरा विभाजन हुआ, कई अन्य छोटी-बड़ी शाखाएँ हैं।)

ऑर्थोडॉक्स ईसाईयत का झंडा सदियों से बिखरते, लुटते रूस के लिए संजीवनी साबित हुआ। राजा वैसिली के नेतृत्व में रूस पुन: एकत्रित और जागृत हुआ। अब उनके पास ईसाई धर्म का ठेका था, विशाल समृद्ध जमीन थी, मंगोल कमजोर पड़ चुके थे, और क्या चाहिए था? कोई फ़ंतासी नाम? 

एक दिन राजा इवान तृतीय (1462-1505) ने बैठे-बैठे सोचा होगा, “जैसे रोमन सीज़र कहलाते थे, मंगोल ख़ान, हम आज से कहलाएँगे - ज़ार (Tsar)!”
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास (5)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/09/5_29.html 
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