Tuesday 28 September 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास (4)

यूरोपीय मूर्तिपूजकों का स्वेच्छा से ईसाई बनना या जबरन बनाया जाना यूरोप की शक्ल-सीरत बदल रहा था। ख़ास कर वाइकिंग योद्धाओं का यूँ ईसाई धर्म अपनाना एक स्थायी सांस्कृतिक बदलाव दे गया, जो आज तक नज़र आता है।

इसका एक लाभ यह हुआ कि बिखरे हुए कबीलों को बाइबल के रूप में एक मार्गदर्शक किताब मिल गयी। उनकी जीवनशैली कम आक्रामक और अधिक सुनियोजित हो गयी। जहाजी लूट की प्रवृत्ति जाती रही, और कुछ हद तक आर्थिक और सामाजिक उन्नति हुई। 

हानि यह हुई कि उनकी शक्ति घट गयी। रूस के राजा व्लादिमीर के पुत्र बोरिस, जो ईसाई प्रचारक बने, उनके अपने भाई ने ही उन्हें मार डाला। भले ही वे ईसाई शहीद की तरह पूजे गए, लेकिन खून का बदला खून की वाइकिंग प्रवृत्ति नहीं रही। हाथ में फरसा लिए युद्ध करने वाले वाइकिंग अगर बाइबल लिए घूमने लगें तो क्या होगा? भारतीय संभवत: सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद मौर्य वंश के पतन से इसे जोड़ सकें।

प्रश्न यह उठ सकता है कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद रूस पर आक्रमण कौन करता? ईसाई तो नहीं ही करते। अगर मुसलमान करते तो ईसाई देश सहयोग करने आते। लेकिन, हम भूल रहे हैं कि एक तीसरी शक्ति भी थी, जिनसे लड़ने की क्षमता सिर्फ खूँखार वाइकिंगों में ही थी। वही अंदाज़। वही लूट-पाट करते, मार-काट मचाने की प्रवृत्ति। वही कबीलाई निर्दयता।

हाँ! मैं बात कर रहा हूँ मंगोलों की। तेरहवीं सदी में चंगेज़ ख़ान से लड़ने की क्षमता किसे थी? वह चीन की दीवार लाँघ कर पूरे चीन को गुलाम बनाते हुए, आज के इरान-इराक पर कब्जा कर चुका था। अब वह यूरोप में दस्तक दे रहा था। रूस का भाग्य कि 1227 ई. में चंगेज़ ख़ान की मृत्यु हो गयी।

लेकिन, यह भाग्य अल्पकालिक था। अगले ही दशक में चंगेज़ ख़ान का पोता बातू ख़ान एक लाख घुड़सवारों के साथ रूस में दाखिल हुआ। वह बुल्गारिया को लूटते हुए आया और कीव शहर को नेस्तनाबूद कर दिया। रूस की ज़मीन खून से सन गयी, नगर के नगर समतल हो गए, रूसी गुलाम बना कर बेचे गए। मंगोल तो जर्मनी तक पहुँच चुके थे, और संभवत: पूरे यूरोप पर कब्जा कर लेते; लेकिन तभी मंगोल राजा ओगेदी ख़ान (चंगेज़ ख़ान के पुत्र) की मृत्यु की खबर मिली। सेना वापस लौट गयी, और ईसाई यूरोप कुछ हद तक बच गया। 

लेकिन रूस नहीं बच सका। वहाँ मंगोलों का शासन रहा, जिनका हिंदी नाम दूँ तो ‘स्वर्ण मंडली’ कहलाएगी। दुनिया उन्हें ‘गोल्डन होर्ड’ (Golden Horde) के नाम से जानती है। रूस के बड़े हिस्से पर इनका दबदबा लगभग डेढ़ सौ वर्ष तक रहा। विडंबना यह कि इन मंगोलों से रूस को मुक्ति दिलाने में जिस व्यक्ति का बड़ा हाथ था, वह चंगेज़ ख़ान का ही एक स्वघोषित उत्तराधिकारी था। नाम था तैमूर लंग!
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रूस का इतिहास (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/09/3_27.html
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