साइबेरिया एक सोया हुआ प्रदेश।
दुनिया के सबसे विशाल देश का सबसे बड़ा क्षेत्र, जहाँ लगभग उतने ही लोग रहते हैं, जितने भारत के एक राज्य पंजाब में। आज से सौ साल पहले वहाँ इसके दशांश रहते थे, जबकि इस क्षेत्र में चार भारत जैसे देश समा जाएँ।
मेरी इच्छा है कि कभी मॉस्को से व्लादीवॉस्तोक की वह दुनिया की सबसे लंबी ट्रेन यात्रा करूँ, जो लगभग छह दिन तक चल कर नौ हज़ार किलोमीटर से अधिक का सफर तय करती है। यूराल के पहाड़ों को पार कर एक ऐसे वीराने में ले जाती है, जहाँ पृथ्वी का कठिनतम मौसम है। जहाँ ठंड होती है तो -70 डिग्री का तापमान, और गर्मी होती है तो 34 डिग्री।
कई वर्षों तक यह एक रहस्यमय प्रदेश रहा, जहाँ सभ्यता का ‘स’ भी नहीं पहुँच पाया था। जब रूस के ज़ार (सम्राट) का इस क्षेत्र पर कब्जा हुआ, उस समय भी यह इलाका ऐसा नहीं था जहाँ ‘मनुष्य’ रहते हों। किंवदंतियाँ प्रचलित थी कि यहाँ कुछ नरभक्षी तांत्रिकों और जंगली आदि-मानवों का वास है।
यहाँ का कानून दुनिया के कानून से अलग था। यह रूस में होकर भी रूस नहीं था। एशिया में होकर भी एशिया नहीं था। यहाँ ज़ार से लेकर स्तालिन तक के समय तक ‘काला पानी’ की तरह यातना देने के लिए भेजा जाता। एक साधारण मानव को अगर साइबेरिया में यूँ भी छोड़ दिया जाता; वह या तो मर जाता, या पशु बन जाता। जानवरों को मार कर कच्चा खाने का आदी बन जाता। धीरे-धीरे कुछ जुझारू शिकारी-किसान यहाँ आकर बसने लगे। जिन्हें लगा कि पृथ्वी का यह विशालतम वीरान भू-भाग आखिर वीरान क्यों रहे।
आज जो कहानी शुरू कर रहा हूँ वह इस मानव-रहित, सभ्यता-रहित जमीन से शुरू तो होती है, मगर खत्म आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी मानव-क्रांति से होती है। इस कहानी को सोचते हुए सत्तर के हिप्पी दशक का एक गीत सुनने लगा, जो किसी कारणवश अभी वायरल हो चला है।
गीत के बोल हैं-
There lived a certain man in Russia long ago
He was big and strong, in his eyes a flaming glow
Most people looked at him with terror and with fear
But to Moscow chicks he was such a lovely dear
He could preach the Bible like a preacher
Full of ecstasy and fire
But he was also the kind of teacher
Women would desire
‘सालों पहले रहता था रूस में एक आदमी,
वह था बड़ा और तगड़ा, उसकी आँखें थी चमकीली
उसे देख कर लोग खाते थे खौफ़, लेकिन
उससे प्यार करती मॉस्को की हर छोरी
वह पढ़ता था बाइबल जैसे कोई उपदेशक
उसकी वाणी में थी अग्नि, और था परमानंद
लेकिन वह था ऐसा शिक्षक
जिसे चाहती थी हर स्त्री’
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
#vss
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