Wednesday 29 September 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास (5)

          ( चंगेज खान, काल्पनिक चित्र )

चंगेज़ ख़ान, कुबलाई ख़ान या तेरहवीं सदी के कोई भी ख़ान मुसलमान नहीं थे। यह स्पष्ट रखना भारतीय पाठकों के लिए जरूरी है, क्योंकि यह आधुनिक भारत-पाकिस्तान का प्रचलित मुस्लिम उपनाम है। अरब, इरान, इराक या अन्य अधिक रूढ़ मुस्लिम देशों में यह उपनाम शायद कम या नहीं मिलें। 

चंगेज़ ख़ान का मूल नाम तेमूझिन था, और चंगेज़ ख़ान नाम बाद में अपनाया, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘विश्व का राजा’ बनता है। एक धारणा यह है कि ख़ान शब्द की उपज चीन के प्राचीन राजवंश ‘हान’ वंश से है, जो वहाँ की हानशुई नदी से लिया गया। जब मंगोल कबीलों ने पश्चिम एशिया पर कब्जा किया तो कई अन्य कबीलाई सरदार खागन, काघन आदि प्रयोग करने लगे। कालांतर में पश्तून (पठान) समुदाय ने ख़ान उपनाम अधिक अपनाया, और बहुधा वहीं से भारत आया। 

आखिर चंगेज़ ख़ान का धर्म क्या था, और रूस के इतिहास में इसकी क्या भूमिका है?

चाहे वाइकिंग हों, उत्तरी मंगोल हों, या साइबेरिया के रूसी, इनमें तांत्रिक (शामन) और कुछ विचित्र ‘कल्ट’ का प्रभाव रहा है। यह बात इस लेखन के शीर्षक किरदार रासपूतिन की चर्चा के साथ भी स्पष्ट होगी। चंगेज़ ख़ान के समय कई मंगोल एक ऐसी ही तेंग्री (शामन) और बौद्ध मिश्रित धर्म पालन करते थे।

यह मानने में कोई गुरेज नहीं कि मंगोलों का ‘गोल्डेन होर्ड’ विश्व इतिहास के सबसे बड़े एकत्रित साम्राज्य पर राज करता था। चंगेज़ ख़ान के बाद उनके पोतों ने यह चार हिस्सों में बाँट लिया। जैसे रूस का हिस्सा बातू ख़ान को मिला, चीन कुबलाई ख़ान और बग़दाद का हिस्सा हलाकू ख़ान को। इन्होंने न सिर्फ रूसी ईसाईयों बल्कि पश्चिम एशिया के मुसलमानों को खदेड़ दिया। 

इन मतवाले हाथियों का भी वही हल था, जो वाइकिंग का किया गया। धर्म-परिवर्तन!

बहरहाल, रूस के रुरिक राजवंश का केंद्र कीव तो ध्वस्त हो चुका था। एक गिरजाघर, एक इमारत नहीं बचा। मंगोलों ने उन्हें कहीं का न छोड़ा। वे तो ख़ानाबदोशी कबीले थे। उन्हें बस तंबू गाड़ना आता था, घर बनाना नहीं। ऐसा ही एक तंबूओं का नगर उन्होंने वोल्गा नदी के किनारे बसाया। यहाँ जब आस-पास व्यापार (अथवा लूट-पाट) कर आते तो घुड़सवार सुस्ताते। इस शहर का नाम पड़ा- सराय (आज के स्तालिनग्राद निकट)।

बचे-खुचे रूसी ईसाइयों ने सुदूर उत्तर में नोवगोरोड राज्य बसाया और उनके राजा दिमित्री मंगोलों से लड़ने के लिए कमर कसने लगे। मोस्कवा नदी के किनारे क़िलाबंदी की गयी, नगर का नाम पड़ा- मॉस्को। वहीं सफ़ेद पत्थर से बना एक किला खड़ा किया गया, जिसका नाम पड़ा- क्रेमलिन!

जब मंगोलों तक यह खबर पहुँची, उनके एक सरदार मेमई एक टुकड़ी लेकर मॉस्को की ओर बढ़े। मगर दिमित्रि से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यह हार मंगोलों को बरदाश्त नहीं हुई। 1382 में तोख्तमिश ख़ान की सेना ने मॉस्को पर आक्रमण कर पूरे नगर में आग लगा दी। दिमित्रि को नगर छोड़ कर भागना पड़ा।

मगर अब मंगोल तंबूओं में सेंध लगनी शुरू हो गयी थी। उनके कई कबीलों ने इस्लाम धर्म कबूल लिया था। हलाकू ख़ान को पहले ही मिस्र के बहरी ममलूक हरा चुके थे। तैमूर लंग नामक एक अमीर पश्चिम एशिया में उभर चुका था, जो धीरे-धीरे मंगोल साम्राज्य पर अपना अधिकार जमा रहा था। मूल मंगोल नहीं होने के कारण उसे ‘ख़ान’ पदवी के प्रयोग की इजाज़त नहीं थी। 

तैमूर लंग इस्लाम की तलवार लिए एक लाख़ घुड़सवारों के साथ मॉस्को की तरफ़ बढ़ा। उसने सराय शहर को पूरी तरह नष्ट किया और तोख्तमिश ख़ान को भागना पड़ा। मंगोलों का आत्मविश्वास इस घटना के बाद टूटने लगा, और धीरे-धीरे उनका साम्राज्य समाप्त हुआ। इस शक्ति के खत्म होते ही, दुनिया फिर से ग्राउंड ज़ीरो पर आ गयी। भविष्य यीशु मसीह और पैग़म्बर मुहम्मद के अनुयायियों के मध्य सत्ता-संघर्ष का था। 

पंद्रहवीं सदी से रूस अपने अधिक ऑर्थोडॉक्स ईसाई रूप में जमने लगा। वह रूस के बदले कहलाने लगा ‘रोशिया’ (रशिया)! 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास (4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/09/4_28.html
#vss 

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