भीगे चोटी, भीगे कान।
पंडित जी हो गए असनान।।
हमारे एक दोस्त थे वीर सिंह गुर्जर। सवा छह फ़िट की काया और खूब श्याम रंग, बाल घुंघराले। स्वभाव से एकदम बच्चे, निर्मल और निर्दोष। नोएडा के गाँव चौड़ा रघुनाथ पुर (अब सेक्टर 22) के निवासी थे। पक्के कांग्रेसी थे और उसमें भी बहुगुणा ख़ेमे वाले। लेकिन राजीव गांधी को बहुत पसंद करते थे। उनके पास एक जिप्सी गाड़ी थी। जिसे लेकर वे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आवास पर गए और राजीव जी ने वह गाड़ी ड्राइव भी की। राजीव जी भी उनके भोलेपन के मुरीद थे। वीर सिंह अक्सर मेरे आईटीओ स्थित जनसत्ता के दफ़्तर आते और हम लोग उस मारुति जिप्सी में दिल्ली दर्शन को निकल जाते थे। कभी किसी लाल बत्ती पर न रुकते और क्या मजाल कि कोई पुलिस वाला उन्हें रोक ले। इतनी ज़ोर से हड़काते थे कि डीपी वाला सिपाही पैंट गीली कर देता। लेकिन शाम को हर हाल में एक अंग्रेज़ी शराब की बोतल और पूरे एक मुर्ग़े का गोश्त उनकी दिनचर्या का हिस्सा थे।
एक दिन मुझसे बोले कि सर जी, बुंदेलखंड घूमने की इच्छा है, घुमा दो। मैंने कहा ठीक है, यहाँ से झाँसी चलते हैं वहाँ से पंडित विश्वनाथ शर्मा वाहन का प्रबंध कर देंगे। बोले, नहीं इसी जिप्सी से चलते हैं। एक सुबह हम निकले। पहले दिल्ली से आगरा और फिर वहाँ से बाग़ी-मार्ग पकड़ा। बाग़ी-मार्ग यानी डकैतों वाला रास्ता। यमुना और चम्बल के बीच का बाह वाला मार्ग। तब यह रास्ता ऊबड़-खाबड़ तो था ही, यहाँ डकैतों के मिल जाने का भी डर था। किंतु वीर सिंह निडर आदमी थे। हम शाम सात बजे ऊदी पहुँचे। वहाँ से इटावा आए। इटावा में तब नई-नई मुलायम सिंह सरकार का रौब था। मैंने उनसे कहा, कि यहाँ अपने नोएडा के अंदाज़ में बात न करना। लेकिन उन्होंने एक यादव जी से अबे-तबे कर ही थी। किसी तरह उनको संकट से निकाला। शाम को वहाँ के एक दबंग और मुलायम सिंह के प्रतिद्वंदी दर्शन सिंह यादव ने भोजन पर बुलाया। हम लोग गए। उनके यहाँ प्रवेश के पूर्व उनके अंगरक्षकों ने हमारी पूरी तलाशी ली। जब हम उनके ड्राइंग रूम में पहुँचे तो भगवान श्रीकृष्ण की एक विशालकाय प्रतिमा रखी थी। वीर सिंह जी प्रतिमा के समक्ष दण्डवत लेट गए। लेकिन भोजन के पूर्व वीर सिंह जी ने इशारा किया कि बिना ‘पान’ के वे भोजन नहीं करेंगे और भोजन में सिर्फ़ बटर चिकेन खाएँगे। अब दर्शन सिंह जी विशुद्ध शाकाहारी। दोनों ही चीजें निषिद्ध। इसलिए मैंने कहा कि हमारे मित्र तो मंगल वार का व्रत करते हैं। मुझे भी ज़्यादा भूख नहीं है। वहाँ से निकलने के बाद उन्होंने अपना पसंदीदा ब्रांड ख़रीदा और पूरी बोतल ख़ाली कर गए। रेलवे स्टेशन के पास एक सरदार जी के ढाबे पर बटर चिकेन मिल गया, जिसे उन्होंने उदरस्थ किया। हम लोग वहाँ से निकले ही थे कि सामने से दर्शन सिंह यादव का क़ाफ़िला गुजरा। मुझे देख कर उनका क़ाफ़िला रुका। ढाबे का मालिक भाग कर आया और उनके पाँव छुए। मैंने कहा, कुछ नहीं बस सरदार जी से पुराना परिचय है इसलिए हम लोग मिलने आ गए। सरदार जी कुछ बोलते उसके पूर्व ही उनका क़ाफ़िला रवाना हो गया, तब ज़ान में ज़ान आई।
रहने के लिए इटावा में ज़िला परिषद का गेस्ट हाउस मिल गया। उस समय ज़िला परिषद के अध्यक्ष राम गोपाल यादव जी थे। सुबह वीर सिंह जी जब स्नान को गए तब घंटे भर बाद लौटे। मैंने कहा, यहाँ पानी की कमी है, इतनी देर नहाओगे तो हो चुका। और मैं बाथरूम गया तो नल से बस एक बाल्टी पानी निकला। बाहर आया तो वीर सिंह बोले-
“भीगे चोटी, भीगे कान,
पंडित जी हो गए असनान।।”
(जारी)
© शंभूनाथ शुक्ल
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