कल 30 जनवरी को एक टीवी चैनल पर मुफ़्ती नासिर उल इस्लाम जो कश्मीर का डिप्टी ग्रैंड मुफ़्ती है, और श्रीनगर के रहने वाला है ने एक अजीब तर्क दिया और प्रकारांतर से मुसलमानों के लिये एक अलग मुल्क की मांग कर दी। मुफ़्ती का कहना था कि, जब मुसलमान 17 करोड़ थे तो पाकिस्तान मिला अब जब वे 18 करोड़ हैं तो पाकिस्तान क्यों नहीं। यह बात चैनल पर कही गयी और दुनिया भर ने सुनी।
क्या मुफ़्ती के बयान पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिये ? मुफ़्ती का बयान न तो सभी मुस्लिम देशवासियों का बयान है और न ही यह किसी की इच्छा है। यह बयान देश को अस्थिर करने उसे तोड़ने और अराजकता फैलाने की एक चाल है।
सरकार को मुफ़्ती के बयान पर तत्काल संज्ञान ले कर कार्यवाही करनी चाहिये। यह बयान देशद्रोह का एक फिट केस है । देश के बंटवारे की बात करना देश के अखण्डता एकता और सम्प्रभुता के विरोध में उठा स्वर है । इसे अगर नज़रअंदाज़ किया गया तो ऐसी प्रवित्तियाँ बढ़ती जाएंगी और देश का अहित ही होगा। जेएनयू के देश तोड़ने का नारा लगाने वाले कौन थे आज दो साल बाद भी यह पता नहीं लग सका। कन्हैया , खालिद उमर, और अनिर्बान जिन पर यह आरोप है कि वे इस अभियान के अगुआ थे तो आज तक उनके खिलाफ आरोप पत्र क्यों नहीं पुलिस दे पायी ? दिल्ली पुलिस को तत्काल उनके खिलाफ सुबूत इकट्ठा कर के आरोप पत्र देना चाहिये।
टीवी चैनल का डिबेट शो कोई वाद विवाद या विचार विमर्श का मंच नहीं रह गया है यह शोर के डेसीबल नापने का एक स्थान बन गया है। पढ़े लिखे कहे जाने वाले अपने समाज और दलों के प्रवक्ता जिस तरह से उत्तेजित और अनियन्त्रित हो कर अपनी बात कहते हैं वह अभिव्यक्ति कम अभिनय अधिक लगता है। यह मंच विषवमन का या एक दूसरे के प्रति आक्षेप और कटाक्ष का स्थान बन गया है। बहुत कम ही टीवी डिबेट ऐसे होते हैं जो कुछ तथ्यात्मक चर्चा करते हों।
मुफ़्ती के बयान को अगर गम्भीरता से नहीं लिया गया और इस पर कोई कानूनी कार्यवाही नही की गयी तो इसका संदेश बहुत ही गलत जाएगा। अधिकतर लोग इसे इग्नोर करेंगे । पर नज़रअंदाज़ करने से समस्या का हल नही बल्कि समस्या का बीजारोपण हो जाता है। चौधरी रहमत अली को भी आज से अस्सी नब्बे साल पहले बहुत गम्भीरता से किसी ने नहीं लिया था पर बाद में जो हुआ वह सब को ज्ञात है।
1954 में जब कश्मीर में ही कश्मीर के सबसे कद्दावर नेता शेख अब्दुल्ला , जिनके जवाहरलाल नेहरू से बहुत करीबी सम्बन्ध भी थे को जब शेख अब्दुल्ला ने भारत विरोधी बात और आचरण करने शुरू किये तो, उनको भी गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया गया । वे लंबे समय तक जेल में रहे। ऐसा ही एक अन्य मुख्यमंत्री बख्शी ग़ुलाम मुहम्मद के साथ भी हुआ था।
अगर टीवी चैनल पर मुफ़्ती के दिये गए इस बयान पर कार्यवाही नहीं होगी तो ऐसे तत्वों का मनोबल और बढ़ेगा और टीवी चैनल डिबेट इस तरह के उन्मादित और पागलपन भरे प्रलाप के केंद्र बन कर रह जाएंगे।
डॉ प्रमोद पाहवा टीवी डिबेट में जाते रहते हैं और विदेशी मामलों के जानकार हैं का टीवी चैनलों के बारे में यह कहना है,
" इसमें चेंनेंल भी बराबर का दोषी है क्योकि एडिटर के पास इतना समय होता है कि वो विवादीत अंश को एयर न होने दे।
सम्भव है कि इस प्रकार के बयान जान बूझकर दिलवाए जाते हो क्योकि ध्रुवीकरण ही एकमात्र विकल्प है जो चुनाव में साथ दे सकता है और केवल चुनाव जीतना ही वर्तमान नेतृत्व का एकमात्र लक्ष्य नज़र आता है।"
धर्म के नाम पर अलग देश की सार्वजनिक रूप से मांग करने वाले मुफ़्ती पर अब तक कोई कानूनी कार्यवाही नहीं और सेना के मेजर के खिलाफ आत्मरक्षार्थ गोली चलाने पर मुक़दमा कायम किया गया है।
फिर भी इस सरकार और इसके समर्थकों का यह जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है कि वे चाहते हैं कि सभी यह मानें कि केवल वही देशभक्त है, बाकी सब देशद्रोही।
क्या मुफ्ती के विरुद्ध कार्यवाही करने से यह सरकार इस लिये पीछे हट रही है कि इसके वैचारिक पुरखे कभी द्विराष्ट्रवाद के मृत सिद्धांत के साथ थे ?
क्या ये स्वयं आज भी मान के चल रहे हैं कि धर्म के ही आधार पर राष्ट्र बनता है ?
© विजय शंकर सिंह
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