अंकित की हत्या उसी मानसिकता का परिणाम है जिस ने देश की आबोहवा खराब कर रखी है। यह आबोहवा है धर्म के कट्टरता की, धर्म से जुड़े मिथ्याभिमान की, धर्म के मध्ययुगीन आक्रामक सोच की, जाति और नस्ल के श्रेष्ठता के भ्रम की । अंकित दिल्ली का एक फोटोग्राफर था। वह एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था। धर्म के फैलते ज़हर से संक्रमित मस्तिष्क ने उस अंकित की हत्या कर दी। हत्या का कारण जो बताया गया वह ऑनर किलिंग यानी ' सम्मान बचाने के लिये हत्या ' थी। किसका सम्मान इस हत्या से बढ़ा है ?हत्यारे का ? अंकित का ? अंकित की प्रेमिका का ? समाज का ? हत्यारे के धर्म, इस्लाम का ? या ईश्वर, अल्लाह आदि अनदेखे उस अस्तित्व का जिसके सम्मान और नाम पर हम घृणित से घृणित कुकर्म करने के लिये तत्पर हो जाते हैं ? संसार मे धर्म या पंथ या सम्प्रदाय जो भी कह लीजिये और ईश्वर, अल्लाह, गॉड जिस भी भाषा मे तर्जुमा कर के पढ़ लीजिये ,के नाम और एक अनदेखे जन्नत की उम्मीद पर जितनी हिंसा, बर्बरता, और निर्दोषों के खून हमने बहाए हैं उतने तो किसी और कारण से कभी नहीं बहाए हैं। ढाई आखर का शब्द प्रेम की पैरवी करते धर्म और धर्म से जुड़े लोग कभी नहीं थकते पर जैसे ही यह व्यवहार में दिख जाता है तो लोग खुद ही इसके विरुध्द खड़े हो जाते हैं। जहाँ सजातीय प्रेम विवाह पर भी लोग नाक भौं सिकोड़ते दिख जाँय वहां अंतरजातीय और अंतर्धार्मिक विवाह तो आत्मघात ही लगेगा।
लेकिन अन्तर्धामिक विवाह और प्रेम भरतीय समाज मे नए नहीं है। पर यह सभी तबके में स्वीकार्य भी नहीं है। अत्यंत उच्च वर्ग में जो धन संपदा से समृद्ध हैं में यह कभी भी कोई समस्या नहीं रहे है। आप सिने जगत को देखिये। वहां यह कोई समस्या ही नहीं है। वहां के समाज से इस प्रेम और विवाह को स्वीकार कर लिया है। हिन्दू अभिनेताओं की मुस्लिम अभिनेत्रियों से और मुस्लिम अभिनेताओं की हिन्दू अभिनेत्रियों से खूब विवाह हुये हैं और आज भी हो रहे हैं। पर समाज के अपेक्षाकृत निचले पायदान पर खड़े समाज के लोगो के मन ने धर्म और जाति के मिथ्या अहंकार का संक्रमण अधिक होता है। वे इस ग्रन्थि से सदैव आशंकित और पीड़ित रहते हैं कि लोग उनके बारे में क्या कहेंगे , क्या सोचेंगे, आदि आदि। जब यही भाव हद से अधिक बढ़ जाता है तो वह अपराध का प्रेरक भाव या मोटिव हो जाता है। यह मोटिव दो धर्मों के बीच ही नहीं है बल्कि दो जातियों के बीच भी है। ऑनर किलिंग के कई उदाहरण अंतरजातीय विवाहों के संदर्भ में भी बहुतायत से हैं।
यह हत्यायें इस धारणा का परिणाम हैं कि कोई भी व्यक्ति जिसके किसी कृत्य के कारण यदि उसके कुल या समुदाय या जाति या धर्म का अपमान होता है तो उस कुल या समुदाय या जाति या धर्म के सम्मान की रक्षा के लिए उस व्यक्ति विशेष की हत्या जायज़ है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (#यूएनएफपीए) का अनुमान है कि, दुनिया भर में सालाना 5000 के लगभग हत्यायें, सम्मान हत्यायें होती है। मानव अधिकार संस्था ह्यूमन रॉइट्स वॉच, सम्मान हत्या को निम्न रूप में परिभाषित करती है:
“सम्मान की रक्षा के लिये किये गये अपराध, हिंसा के वो मामले हैं, जिन्हें परिवार के पुरुष सदस्यों ने अपने ही परिवार की महिलाओं के खिलाफ इसलिये अंजाम दिया है, क्योंकि उनके अनुसार उस महिला सदस्य के किसी कृत्य से समूचे परिवार की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंची है। इसका कारण कुछ भी हो सकता है जैसे कि: परिवार द्वारा नियत शादी करने से इंकार, किसी यौन अपराध का शिकार बनना, पति से (प्रताड़ना देने वाले पति से भी) तलाक की मांग करना या फिर अवैध संबंध रखने का संदेह। केवल यह धारणा ही उस महिला सदस्य पर हमले को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त है कि उसके किसी कदम से परिवार की इज्जत को बट्टा लगा है।”
अक्सर हम अपराध और हत्याओं को हम सापेक्ष भाव से देखते है। एक हत्या हमे विचलित करती है तो ऐसी ही ऐसे ही कारणों से की गयी एक अन्य हत्या हमे कहीं न कहीं कभी न कभी तोष प्रदान करती है। कभी हत्यारे का हम महिमामंडित कर उसमें हम अपना रोल मॉडल खोजने लगते है तो कभी वैसे ही हत्या के अपराधी को हम फांसी देने और गोली मार देने की मांग करने लगते हैं। अपराध और हत्या को भी सुविधा भाव से देखने की यह प्रवित्ति एक बीमार समाज की पहचान है। यह व्याधि बीमार समाज को और अधिक संकीर्ण बनाएगी। हत्या , हत्या है। यह भारतीय दंड विधान का सबसे नृशंस अपराध है। पुलिस हत्या के हर अपराध को इसी दृष्टिकोण से देखती है और अपना प्रोफेशनल दायित्व निभाती है । लेकिन धर्म और जाति के कठघरे में जैसे जैसे समाज बंटता जाएगा, लोग मानसिक रूप से अलग थलग पड़ते जाएंगे वैसे वैसे हम रुग्ण समाज मे बदलते जाएंगे। पुलिस के पास इसका कोई इलाज नहीं है। पुलिस भी उसी समाज से आती है जो समाज इस बुराई से रूबरू हो रहा है।
अंकित की हत्या बहुत ही नृशंस भाव से की गयी है। हत्या के तरीके से हत्यारे की मनोदशा, प्रतिशोध भाव और हत्या का कारण जाना जा सकता है। जैसी बीभत्स फ़ोटो सोशल मीडिया पर तैर रही हैं, उस से हमलावर की दरिंदगी साफ जाहिर है। पुलिस ने हमलावरों को पकड़ लिया है और अब यह देखना है कि सभी सुबूत एकत्र कर अदालत के सामने रखे जाँय ताकि कड़ी से कड़ी सजा दी जा सके। अंकित की बर्बर हत्या एक बीमार समाज की पहचान है। पुलिस ऐसी हत्याओं को रोक भी नहीं सकती है बस हत्यारे पकड़ कर सज़ा भले दिला दे । समाज को खुद ही इस व्याधि से मुक्त होना होगा।
© विजय शंकर सिंह
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