काशी हिंदू विश्वविद्यालय में गोडसे पर एक नाटक हुआ है और उस नाटक में गांधी हत्या का औचित्य साबित किया गया है। ऐसे नाटकों के मंचन के रोके जाने के पक्ष में मैं नहीं हूं। क्यों कि गोडसे ने जिस महामानव की हत्या की थी, उसके विचार ऐसे हज़ारों नाटक मंचन कर के खत्म नहीं कर सकते हैं। यह वही मधुर मनोहर अतीव सुंदर परिसर है जहां 1916 की वसन्त पंचमी के दिन, महात्मा गांधी एक विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। आज एक सदी के बाद जब उनके हत्यारे के कृत्य का मंचन हुआ और जब इस पर बीएचयू के डीन ऑफ स्टूडेंट्स से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमे सभी महापुरुषों को याद करना चाहिये। तो महामना के परिसर में गोडसे को याद किया गया । गोडसे एक रोल मॉडल हैं।
रोल मॉडल के अभाव में उन्हें तलाश एक रोल मॉडल की हैं। इसी लिये कभी गोडसे में, कभी शम्भू रैगर में तो कभी किसी न किसी अपराधी में वे रोल मॉडल ढूंढ रहे हैं। रोल मॉडल की तलाश कचरे के डिब्बे में हो रही है। कचरा यानी इतिहास का उच्छिष्ट। इतिहास जिन्हें झटक कर फेंक चुका है। डस्टबिन में गंधाते कचरे के ढेर में जब कभी बहुत उत्कंठित होते हैं उतर कर अपने रोल मॉडल खोजने लगते हैं। कभी कभी अचानक भगत सिंह से वे प्यार करने लगते हैं। पर जब घुसते हैं उस शहीद ए आज़म के जेहन में तो बिलबिला कर बाहर निकल आते हैं। वो ताब और वो आग जो भगत सिंह में सिमटी हैं उसे ये कहाँ सह पाएंगे।
फिर इनकी तलाश खत्म होती है सुभाष बाबू पर। पर जैसे ही इन्हें पता चलता है कि सुभाष तो वामपंथी विचारधारा से प्रभावित है। उनके द्वारा गठित राजनीतिक दल फॉरवर्ड ब्लॉक दरअसल कांग्रेस के समाजवादी आंदोलन का एक हिस्सा था। बस जहां लाल परचम दिखा, बिदकना शुरू।
फिर ये पकड़ते हैं सरदार पटेल को। लेकिन सरदार तो सरदार थे। वे नेहरू तो थे नहीं। लौह इच्छा शक्ति और स्पष्ट चिंतन वाले। उन्होंने आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया और गोलवलकर को जो चिट्ठी लिखी वह आज तक इनके विचारक राकेश सिन्हा को अपच किये हुये है। पटेल तो इन्हें इस लिये पसंद थे कि, उनका नेहरू से कुछ मामलों में मतभेद था। इसीलिए अब भी वे पटेल के साथ भी ये कभी नीम नीम कभी शहद शहद जैसे ताल्लुकात रखते हैं।
अब कहाँ से लाएं ये रोल मॉडल। हेगड़ेवार और गोलवलकर ज़रूर हैं। पर उनके बारे में कुछ बोलते भी नहीं। न तो बंच ऑफ थॉट जिसका हिंदी अनुवाद विचार नवनीत है, के बारे में और न ही 1940 से ले कर 46 तक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जिन्ना से यारी, और अंग्रेज़ों से दोस्ती के बारे में। फिर क्या करें ।
रोल मॉडल भी इन्हें गांधी का विरोधी चाहिये। गाँधी के सिद्धांतों का खूब विरोध हुआ है। वे मुझे भी काल्पनिक आदर्शवाद की तरह लगते हैं। वे यूटोपिया हैं। पर इन सब के लिये उन्हें गांधी का जीवन और दर्शन पढ़ना पड़ेगा। पर जब पढ़ने से बैर हो तो क्या किया जाय। जब किसी के विचार भयभीत करने लगें और जब उन विचारों की कोई तार्किक काट न हो तो, उसी आदमी को ही काट दो, जिसके विचार से भयाक्रांत हो। फिर गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी। और एक नया रोल मॉडल मिल गया, नाथूराम गोडसे।
लेकिन जैसे ही कहिये कि गोडसे आरएसएस का था, तो तपाक से डिनायल मोड़ में आ जाएंगे कि वह तो हमारा नहीं था, हमने उसे निकाल दिया था। हद यह है कि राकेश सिन्हा ने टीवी डिबेट पर यह तक कह दिया कि वे बंच ऑफ थॉट जो संघ की गीता कही जाती है, को भी नकार दिया। यह गैरजिम्मेदारी की पराकाष्ठा है। अब वे गोडसे की मैंने गांधी वध क्यों किया को पढ़ रहे हैं, तालियां बजा रहे हैं, कुर्सियों पर महामना के प्रांगड़ में उछल रहे हैं। अपनी चचेरी बहन के बलात्कारी शम्भू रैगर में धर्म ध्वजा ढूंढ रहे हैं। यह कौन सी संस्कृति है, यह तो वही जानें।
© विजय शंकर सिंह
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