सरकार को अगर नेहरू के अध्ययन से फुरसत मिल गयी हो तो थोड़ा सीमा और देश के अंदरुनी हालात पर भी देख लें ।
* डोकलां में सड़क और पुख्ता कैम्प बनाने के बाद चीन ने वहां आगे बढ़ कर और टेंट लगा लिये हैं।
* मालदीव में आंतरिक उथल पुथल है और भारत की उदासीनता के कारण चीन वहां अपनी पकड़ मजबूत बना रहा है।
* श्रीलंका में भी उसके नौसैनिक अड्डे बन रहे हैं।
* नेपाल तो हमसे रूठ ही गया है। वह अब खुद को चीन के अधिक निकट पा रहा है। यह भी पहली बार ही है कि नेपाल और चीन दोनों ही साझा सैन्य अभ्यास कर रहे हैं।
* पाकिस्तान तो कमोबेश उसका एक उपनिवेश बन ही रहा है।
* कश्मीर में सेना के कैम्प पर आज फिर हमला हुआ है और 2014 से अब तक पूर्ववर्ती कालों की तुलना में बाद सबसे अधिक सैनिकों को दुश्मन देश ने मारा है। नागरिक भी मरे हैं। यह भी सही है कि आतंकी भी मरे हैं। पर खुद को शहीद कर के दुश्मन को मारना कोई अच्छी सैन्य रणनीति नहीं मानी जाती। दुश्मन का अधिक से अधिक और अपना कम से कम नुक़सान हो यही मान्य और स्थापित सैन्य नीति रही है।
* सरकार और सरकार के समर्थक मानें या न माने, चाहे मामला आर्थिक नीति का हो, या सीमा तनाव का, या विदेश नीति का या आंतरिक सुरक्षा का, या संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान और गरिमा का हर तरफ से संकेत उतने उत्साहवर्धक नहीं हैं जितने 2014 में सरकार से उम्मीदें थीं और जितने सुनहरे सपने दिखाए गए थे।
कश्मीर और चीन की समस्या के लिये अक्सर नेहरू को दोषी माना जाता है। बिना किसी बहस में पड़े और नेहरू के बचाव में एक भी शब्द न कहते हुये, उन पर लगा यह आरोप स्वीकार भी कर लिया जाय तो भी, मेरा यह कहना है कि उस लकीर को पीटने से क्या लाभ जो अब अतीत बन गया है। सरकार नेहरू का पुनर्मूल्यांकन या जांच कमेटी या इतिहास लेखन के लिये नहीं चुनी गयी है बल्कि उन समस्याओं के निदान के लिये बनी है जो हमारे सामने है। कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है। कोई भी शासक त्रुटिहीन नही होता है। नेहरू भी अपवाद नहीं थे।
9 फरवरी की रात कहते हैं कि अफजल गुरु जो कश्मीरी आतंकी था का एक जश्न मनाया जा रहा था। यह भी कहा गया कि उस दिन ' भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह का नारा भी कुछ लोगों ने लगाया था। बहुत शोर मचा था। पूरा विश्वविद्यालय ही देशद्रोही करार दे दिया गया । यह नारा सच मे देशद्रोही था , है और रहेगा। तीन छात्र गिरफ्तार किये गये। कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान। उनकी गिरफ्तारी भी हुयी। देशद्रोह का मुक़दमा भी चला। अब तीनों जमानत पर है। मुक़दमा अभी भी जेरे तफ़्तीश है। घटना की वीडियो है। गवाह भी हैं। मुल्ज़िम भी है। पर आज तक चार्जशीट पुलिस दाखिल नहीं कर पायी। क्यों ? यह सरकार जाने।
पंद्रह बीस दिन पहले एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान कश्मीर के दूसरे बड़े मुफ़्ती ने खुले आम देश के बंटवारे की मांग धार्मिक आधार पर की, खूब बावेला मचा पर कश्मीर और देश मे एक ही दल भाजपा की सरकार रहते हुये भी मुफ़्ती के खिलाफ न तो कोई कार्यवाही हुयी और न ही कोई मुक़दमा कायम किया गया।
यह कैसी देशभक्ति है मित्रों ?
रहा सवाल #जवाहरलाल_नेहरू का तो उनकी कितनी भी आलोचना कर ले अब उनका तो कुछ बनना बिगड़ना नहीं है। उल्टे 2014 के बाद उनकी किताबों की बिक्री विशेषकर Discovery Of India की, दसगुना अधिक बढ़ गयी है। उनका पाठक वर्ग जितना भारत मे नहीं है उससे कहीं अधिक पश्चिमी देशों में है। नेहरू पर इस चर्चा से एक बदलाव यह भी आया है कि जो कभी नेहरू इंदिरा के नीतियों के आलोचक थे वे भी अब उन्हें कभी कभी सराहने लगे हैं। क्यों कि मूल्यांकन सदैव सापेक्ष होता है। आइंस्टीन वास्तविक विज्ञान में ही नहीं बल्कि समाज विज्ञान के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं !
© विजय शंकर सिंह
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